Lockdown effect : पुस्तक विक्रेता झेल रहे दोहरी मार, 50 करोड़ से भी अधिक का हुआ नुकसान

Lockdown effect विभिन्न प्रकाशकों से कुछ नकद व कुछ उधार मंगवा कर स्कूलों को दे दिए पुस्तक । पैसे नहीं मिलने से बैंकों के नहीं दे पा रहे ब्याज। पुस्तक दुकानें बंद होने के कारण काम करने वाले सैकड़ों लोग बेरोजगार हो गए।

By Ajit KumarEdited By: Publish:Tue, 22 Sep 2020 12:51 PM (IST) Updated:Tue, 22 Sep 2020 12:51 PM (IST)
Lockdown effect : पुस्तक विक्रेता झेल रहे दोहरी मार, 50 करोड़ से भी अधिक का हुआ नुकसान
पुस्तक बाजार में उधार लगने से उनकी स्थिति दयनीय हो गई है।

मुजफ्फरपुर, [ गोपाल तिवारी ]। जिले के पुस्तक विक्रेता इन दिनों दोहरी मार झेल रहे हैं। लॉकडाउन के इस पांच महीने की अवधि में उनकी बिक्री खत्म हो गई। इसके कारण पुस्तक सप्लाई करने वाले करोड़ों के नुकसान में फंस गए हैं। पुस्तक बाजार में उधार लगने से उनकी स्थिति दयनीय हो गई है। पुस्तकों ट्रेडिंग से जुड़े लोगों ने करीब 50 करोड़ का नुकसान बताया है। कनक बुक ट्रेडर्स एजेंसी के अभिषेक कुमार द्विवेदी, पुस्तक सम्राट के ललित कुमार मिश्रा आदि पुस्तक विक्रेताओं ने बताया कि जिले में विभिन्न प्रकाशकों के यहां करोड़ों रुपये की पुस्तक का व्यापार चलता है। लॉकडाउन की इस अवधि में पुस्तक दुकानें बंद होने के कारण काम करने वाले सैकड़ों लोग बेरोजगार हो गए। शैक्षणिक संस्थानें नहीं खुलने के कारण कई पुस्तक की दुकानें अभी बंद पड़ी हुई हैं। बैंक को ब्याज देने का पैसा तक नहीं जुटा पा रहे। लॉकडाउन से पहले स्कूलों को देने के लिए विक्रेताओं ने पुस्तक मंगवा लिए। इस बीच कोविड-19 के कारण सरकार ने संस्थानों को बंद कर दिया। इसके कारण शैक्षणिक संस्थानों में किताबें डंप हो गई। लगातार पांच महीने तक शैक्षणिक संस्थान बंद होने पर पुस्तक विक्रेताओं के सामने गंभीर आर्थिक समस्या उत्पन्न हो गई है।

स्कूल वाले पूरे पैसे नहीं दे रहे

प्रकाशक उद्योग अब पुस्तक वापस करने को कह रहे। प्रकाशकों से पुस्तक विक्रेता आधा नकद आधार उधार पर पुस्तक मंगवा लिए और स्कूलों को क्रेडिट पर दे दिए। स्कूल वाले पूरे पैसे नहीं दे रहे। इसके कारण प्रकाशकों को पैसा नहीं भेजा जा रहा तो अब वे कह रहे पुस्तक वापस कर दो। इस कारोबार से जुड़े लोगों को मानना है कि प्रकाशन उद्योग को पूरे देश में करीब 26 हजार करोड़ का नुकसान हुआ है। इस टे्रड से पूरे देश में करीब 50 लाख लोग जुड़े हुए हैं। सबके सामने रोजी-रोटी का संकट पैदा हो गया है।  

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