भोजपुरी गाना 'मुजफ्फरपुर के लीची अखियां बलमा' लोगों के कानों में घाेल रहा मिठास
लीची की विशेषताओं को बताने वाले कई गाना इन दिनों ट्रेंड में हैं। मुंह में लीची और कान में लीची पर आधारित गाने मिठास घोल रहे हैं। इन्हीं गानाें में से एक मुजफ्फरपुर के लीची अखियां बलमा फिर से लोगों की पहली पसंद बन गया है।
मुजफ्फरपुर, ऑनलाइन डेस्क। Muzaffarpur ke leechee akhiyaan balama: लीची को मुजफ्फरपुर की आन-बान-शान कहना गलत नहीं होगा। दिल्ली, मुंबई, पुणे, हैदराबाद जैसे महानगर ही नहीं विदेशों में भी इसके कद्रदां कम नहीं हैं। लीची की इस शोहरत को भुनाने में फिल्मकार भी पीछे नहीं रहे हैं। खासकर भोजपुरी फिल्मकार। लीची की विशेषताओं को बताने वाले कई गाने इन दिनों ट्रेंड में हैं। मुंह में लीची और कान में लीची पर आधारित गाने मिठास घोल रहे हैं। इन्हीं गानाें में से एक 'मुजफ्फरपुर के लीची अखियां बलमा' फिर से लोगों की पहली पसंद बन गया है। गाना सुनने के साथ-साथ इसका वीडियो भी युवा खूब पसंद कर रहे हैं। एक-दूसरे को शेयर भी कर रहे हैं।
मुजफ्फरपुर की लीची की विशेषताओं को जीवन से जोड़कर बहुत से गाने इन दिनों बाजार में हैं। जिसे खेसारी लाल यादव से लेकर कई भोजपुरी गायकों ने अपना स्वर दिया है। 'मुजफ्फरपुर के लीची अखियां बलमा' को प्रतिभा पांडेय ने अपना स्वर दिया है। जबकि बोल रत्नेश चंचल के हैं। इस गाने को बेहतर ढंग से फिल्माया गया है। लीची इस तिरहुत क्षेत्र की कृषि का प्रमुख आधार है। हालांकि लॉकडाउन के कारण पिछले दो साल से किसानों को परेशानी से दो चार होना पड़ रहा है। वर्ष 2020 में कोरोना संक्रमण के कारण लीची किसानों को बहुत नुकसान उठाना पड़ा था। इस बार सरकार और किसान सचेष्ठ थे। कोरोना के कारण लाॅकडाउन हाेने के बावजूद लीची किसानों को पूरी छूट दी गई। ट्रेन व हवाई जहाज से इसे देश के विभिन्न भागों में पहुंचाया गया। इसकी वजह से किसानों को अपेक्षाकृत कम परेशानी हुई। न केवल फिल्मों में वरन लोक गायन में भी मुजफ्फरपुर की लीची की चर्चा है, लेकिन रॉक व पॉप म्यूजिक के इस दौर में अब लोक गायन का सुनने की परंपरा खत्म होती जा रही है। युवा इससे लगभग अनजान हैं। इसको बचाने की दिशा में भी काम नहीं हो पा रहा है। ऐसे में इस तरह की चीजें यह एहसाल दिलाती हैं कि यहां से बाहर रहने वालों को अपनी मिट्टी की खुशबू की याद है।