तबादले का आदेश आते ही मुजफ्फरपुर पुलिस के नेताजी की फूलने लगी सांसें

बदली के बाद जिले का मोह नहीं जा रहा। वर्दी की आड़ में खादी पहनकर पूरे दिन नेतागिरी झाड़ते रहे। संगठन से जुड़े रहने के कारण महकमे में नेताजी के नाम से जाने जाते थे। कभी वर्दी पहनना मुनासिब नहीं समझा जबकि वेतन वर्दी का ही मिलता है।

By Ajit KumarEdited By: Publish:Wed, 16 Jun 2021 11:48 AM (IST) Updated:Wed, 16 Jun 2021 11:48 AM (IST)
तबादले का आदेश आते ही मुजफ्फरपुर पुलिस के नेताजी की फूलने लगी सांसें
पुलिसकर्मी को तबादले के बाद दूसरे जिले में वर्दी पहनने के साथ साथ उठानी होगी राइफल।

मुजफ्फरपुर, [ संजीव कुमार]। नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए वर्षों जिले में जमे रहे। ठसक और धमक के साथ। मुख्यालय से बदली का जब फरमान आया तो बेचैनी बढ़ गई। मानो बेघर हो गए। यहां थे तो दबदबा कायम था। जो था, अपना ही तो था। जिस पर हाथ रखते, अपना हो जाता। बदली के बाद जिले का मोह नहीं जा रहा। वर्दी की आड़ में खादी पहनकर पूरे दिन नेतागिरी झाड़ते रहे। संगठन से जुड़े रहने के कारण महकमे में नेताजी के नाम से जाने जाते थे। कभी वर्दी पहनना मुनासिब नहीं समझा, जबकि वेतन वर्दी का ही मिलता है। वर्दी के बल पर जमीन के धंधे से लेकर मोटर व्यवसाय तक से जुड़ाव रहा। राइफल उठाने की आदत यहां पर छूट गई थी। नए जिले में वर्दी के साथ राइफल उठाने की भी मजबूरी होगी। 

थाने के भेदिया के कारण नहीं मिलती कामयाबी

थाने के भेदिया के कारण वर्दीधारियों को कामयाबी नहीं मिलती। कई थानों में पुलिस की गाड़ी चलाने के लिए आम आदमी को रखा गया है। अब ये भेदिया हो गए हैं। इनके जरिए किसी भी छापेमारी के पूर्व धंधेबाजों तक खबर पहुंच जाती है। इसके कारण वर्दीधारियों को खाली हाथ लौटना पड़ता है। हाल ही में चौराहे वाले थाना क्षेत्र में ऐसा मामला सामने आया। कहा जा रहा कि थाने से छापेमारी के लिए टीम के निकलते ही धंधेबाज के मोबाइल की घंटी बज गई। सूचना देकर उसे आगाह करा दिया गया। इसके कारण धंधेबाज ने लाल पानी की खेप को ठिकाने लगा दिया और खुद घर से भाग निकला। पुलिस को खाली हाथ लौटना पड़ा। दबाव बनाने के लिए घर की एक महिला सदस्य को पकड़ा। मगर जेब गर्म करने के बाद उसे भी छोड़ दिया। इन सब पर न तो हाकिम और न ही साहब की नजर है।

मुंशी से लेकर कोतवाल तक के बिगड़े बोल

थानों की स्थिति यह है कि मुंशी से लेकर कोतवाल तक के बोल बिगड़े हुए हंै। इससे आम जनता परेशान है। मगर कोई देखने वाला नहीं। कई थाने के कोतवाल की भाषा पूरी तरह से अमर्यादित है। थाने पर जाने वाले पीडि़त के साथ किस तरीके से बात करनी है, इसका प्रशिक्षण शायद उन्हें नहीं दी गई है। उन्हें घमंड है कि उनके शरीर पर वर्दी है। मगर जब वर्दी हट जाती है तो वे भी एक आम आदमी हो जाते हंै। कई कोतवाल शालीनता से बात करते हैं। जिले के अधिकतर कोतवाल के साथ वहां के तमाम कर्मियों के बातचीत का तरीका कुछ अलग ही रहता है। अक्सर इस तरह की शिकायत हाकिम व साहब तक पहुंचती रही है। मगर साहब भी इसे नजरअंदाज कर देते हंै। रेंज वाले साहब के पास जब शिकायत पहुंचती है तो कोतवाल जरा होश में आते हैं।

मधुर रिश्ते के कारण फीलगुड में कोतवाल

कई कोतवालों के लाल पानी के धंधेबाजों से मधुर रिश्ते हैं। इसके कारण वे फीलगुड में हैं। इनको न तो अपराध नियंत्रण से कोई मतलब, और न ही लाल पानी के धंधेबाजों पर कार्रवाई करने से है। अपराधियों के डाल-पात के खेल के साथ धंधेबाज कई थाना क्षेत्र में लाल पानी की खेप उतार रहे। मगर उन पर कार्रवाई करने से वे कतराते हैं। इन धंधेबाजों से उनके मधुर रिश्ते हंै। ऐसे कोतवाल न तो अपराधियों को पकड़ रहे और नहीं धंधेबाजों को सबक सिखा रहे हैं। इसके बदले उन्हें कागज का मोटा बंडल मिलता है। हाल के दिनों में कई थाना क्षेत्रों में सादे लिबास वाले दूसरे विभाग की टीम द्वारा लाल पानी की कई बड़ी खेप जब्त की गई। मगर संबंधित कोतवाल चैन की नींद सोते रहे। ऐसे कोतवालों को सिर्फ उनकी कुर्सी से प्यार है। मगर साहब की उनपर नजर है। 

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