कोरोना की लहर के बीच थारू आदिवासी प्रकृति के आंचल में जी रहे सुकून की जिंदगी
पिछली बार की तरह इस बार भी यहां संक्रमण पहुंच नहीं सका है। पश्चिम चंपारण के सात गांव कोरोना की दूसरी लहर से अब भी बचे हुए हैं। इन गांवों में बाहरी के प्रवेश पर रोक प्रवासियों की जांच के बाद करते होम क्वारंटाइन।
पश्चिम चंपारण, [दीपेंद्र बाजपेयी]। कोरोना की दूसरी लहर में इस बार गांव भी अछूते नहीं हैं। वहां भी संक्रमितों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इन सबके बीच सुखद बात यह है कि पश्चिच चंपारण के वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के आसपास रहने वाले थारू जनजाति के सात गांव कोरोना से दूर हैं। पिछली बार की तरह इस बार भी यहां संक्रमण पहुंच नहीं सका है। थारुओं की जागरूकता और प्रकृति के बीच सामंजस्य बिठाकर रहने से यह सब संभव हुआ है।
जिले के गौनाहा प्रखंड की मटियरिया पंचायत के टहकौल, काला पकड़ी व काला खुर्द शेरपुर गांव, महुई पंचायत का महुई व धुमली परसा गांव, बेलसंडी पंचायत का मितनी और सिट्ठी पंचायत का मंडीहा गांव कोरोना मुक्त हैं। यहां रहनेवाले थारुओं की आबादी तकरीबन 20 हजार है। प्रकृति को देवता मानने वाले थारू पेड़-पौधों की रक्षा करने के लिए जाने जाते हैं। पिछले साल जब कोरोना आया था, तब भी ये उससे अछूते थे। इस बार जब दूसरी लहर तेजी से आई तो थारू और भी सतर्क हो गए।
कोरोना को हराने के लिए कर रहे ये काम
टहकौल निवासी व भारतीय थारू कल्याण महासंघ के केंद्रीय प्रवक्ता दयाशंकर पटवारी कहते हैं कि इन गांवों में किसी बाहरी प्रवेश पर रोक है। किसी घर का कोई प्रवासी सदस्य आता है तो पहले उसकी कोरोना जांच कराई जाती है। इसके बाद उसे 15 दिन होम आइसोलेशन में रखा जाता है । हमारी दिनचर्या पूरी तरह से संतुलित है। सुबह चार बजे उठते हैं। इससे सुबह की स्वच्छ व ताजा हवा हमें मिलती है। सुबह से हमारा काम शुरू हो जाता है। रात आठ बजे तक भोजन कर सो जाते हैं। महुई के मुखिया जितेंद्र महतो का कहना है कि प्रकृति के साथ जीने-मरने के साथ आज की युवा पीढ़ी विज्ञान के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रही है। सरकार की ओर से जो गाइडलाइन जारी की गई है, उसका हम पालन कर रहे। मास्क लगाने के साथ शारीरिक दूरी का ध्यान रखा जा रहा। बिना वजह कोई घर से बाहर नहीं निकलता है। गिलोय का सेवन कर रहे। काढ़ा बनाकर पीते हैं। नीम, महुआ और बबूल को इस्तेमाल दातुन के रूप में कर रहे।
रेफरल अस्पताल, गौनाहा के प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डॉ. शशि कुमार कहते हैं कि थारू शारीरिक श्रम अधिक करते हैं। वे प्रकृति के साथ हैं। सिविल सर्जन डॉ. अरुण कुमार सिन्हा का कहना है कि कोरोना से बचाव के लिए गाइडलाइन का पालन जरूरी है। साथ ही शारीरिक श्रम व व्यायाम से संक्रमण पर विजय पाई जा सकती है।