Lockdown Effect: वक्त के कोरोना ने दी मंसूबे को मार, बहुरिया की खुशी पर बेचैनी का पहरा
बाहर से परिवार में लौटने के बाद संपत्ति के बंटवारे को लेकर भी विवाद होने लगे। खेती और परंपरागत फसलों से कैसे होगा परिवार का गुजारा।
समस्तीपुर, [मुकेश कुमार]। गुरबत की ऐसी मार पड़ी कि घर-बार के साथ नई नवेली दुल्हन को छोड़ बटेरन परदेस गया। रोजगार करने। सोचा सारी परेशानियों को खत्म कर देगा। लेकिन, वक्त के कोरोना ने मंसूबे को ऐसी मार दी कि सबकुछ झटके में समाप्त हो गया। पिया परदेस से लौटे तो बहुरिया (पत्नी) खुश हुई। 14 दिनों के क्वारंटाइन के बाद घर वापसी हुई। लेकिन, कोरोना के डर के बीच स्वजनों की परवरिश की चिंता अब तिल-तिलकर तड़पाने लगी है। दिल्ली की एक एक्सपोर्ट कंपनी में सिलाई मास्टर का काम था। वह छूट गया। सो नए सिरे से यहां जड़ जमाने की जंग जारी है।
दरअसल, लॉकडाउन में लौट रहे ज्यादातर कामगारों की परेशानी घर पहुंचने के बाद कम होने के बजाय बढ़ रही। लॉकडाउन के कारण बेरोजगार हुए इन कामगारों के सामने अब दो जून की रोटी का इंतजाम भी कठिन हो रहा। शहर में जो कमाया, वह घर पहुंचने और खाने-पीने में खर्च हो गया। बाहर से परिवार में लौटने के बाद संपत्ति के बंटवारे को लेकर भी विवाद होने लगे। दरअसल, जबतक बटेरन बाहर था। यहां केवल उसकी पत्नी और बच्चे थे। बाहर से कमाकर पैसा भेजता था। घर-गृहस्थी बड़े आराम से चलती थी। अब जब घर लौटने को हुए तो पहली चिंता संक्रमण काल में किसी तरह घर सुरक्षित पहुंच जाने की थी तो पहुंच गए। अब चिंता भविष्य की है।
कोई कारखाने में काम करता था तो कोई तकनीशियन
बटेरन जैसे सैकड़ों, हजारों मजदूर वापस लौटकर आए हैं। बाहर कोई कारखाने में काम करता था तो कोई प्लंबर-तकनीशियन था। कारखानों में काम बंद हुआ या उपार्जन का माध्यम छूटा तो सभी अपने घर की ओर भागे। अब यहीं जीने-खाने की सोच रहे। ज्यादातर के पास छोटा घर और छोटी सी जमीन है। परिवार के भाई उसमें किसी तरह बसर कर रहे थे। लेकिन, अब इन्हें भी सिर छिपाने के लिए छत चाहिए तो पेट पालने के लिए जमीन का टुकड़ा। हिस्सा मांगते ही तनाव बढ़ने लगा है। जिला पुलिस के मुताबिक लॉकडाउन के दौरान वर्चस्व को लेकर फायरिंग की कई घटनाएं हुईं। इनमें 18 लोग जख्मी हुए। पुलिस उपाधीक्षक प्रितिश कुमार के अनुसार अधिकतर मामले भूमि विवाद से जुड़े रहे।
लॉकडाउन के कारण नौकरी गई, हिस्सा मांगा तो पिटाई
इसी तरह जितवारपुर निवासी बबलू दिल्ली में काम करता था। लॉकडाउन के कारण नौकरी चली गई। इसके बाद बबलू अपने घर आ गया। उसने संपत्ति में हिस्सा मांगा तो भाई व उसकी पत्नी ने उसकी जमकर पिटाई कर दी। जिलाधिकारी शशांक शुभंकर ने बताया कि लॉकडाउन के समय आने-जाने वाले कामगारों की लिस्ट तैयार करने के आदेश दिए गए हैं।
हर घर की एक ही कहानी
ऊपर में कुछ घरों की घटना है जो चौखट की दहलीज लांघ कर पंचायतों और थाने तक पहुंची लेकिन कहानी ये घर-घर की है। जिले में अब तक पचास हजार से ज्यादा प्रवासी मजदूर अपने घर लौट चुके हैं। इनमें से ज्यादातर की नौकरी छूट गई है या संकट में है। ऐसे में ये अपने घर में रहकर खेती या दूसरा विकल्प देख रहे। जाहिर तौर पर उन्हें हिस्सा चाहिए। यही विवाद की जड़ है।
हालात बदलते ही दूसरे राज्यों की ओर रुख करेंगे लोग
समाजशास्त्री सच्चिदानंद के अनुसार, संकट के इस दौर में परेशान लोग यह सोच रहे हैं कि किसी तरह वे कष्ट कर यहीं अपना जीवन-यापन करने लगेंगे, लेकिन किसानी के परंपरागत फसल से गुजारा करना मुश्किल है। जो लोग बाहर 15-20 हजार रुपया महीना भी कमाते थे, वे कैसे बहुत कम में गुजारा कर पाएंगे। अपने बच्चों को बेहतर स्कूल में पढ़ा रहे थे, अब कैसे यूं ही छोड़ देंगे। मनरेगा में काम करने की सोचें और अधिकतम सौ दिन रोजगार मिल भी जाए तो साल में अधिकतम बीस हजार की तो व्यवस्था हो पाएगी। अभी संकट काल है, लेकिन जैसे ही हालात बदलेंगे ये लोग फिर से बेहतर जिंदगी की तलाश में दूसरे राज्यों का रुख करेंगे।