वैज्ञानिक तरीके से खेती के लिए उत्तर बिहार के इन 17 गांवों का किया गया चयन, होंगी ये सुविधाएं
Central Agricultural University Pusa दे रहा किसानों को निशुल्क बीज एवं सिंचाई के साधन। धान एवं गेहूं की बोआई के समय में परिवर्तन किया जाएगा।
समस्तीपुर,[पूर्णेंदु कुमार]। वैज्ञानिक तरीके से खेती के लिए 17 गांवों का चयन किया गया है। यहां के किसानों को बीज एवं सिंचाई के साधन निशुल्क दिए जा रहे। उद्देश्य है-अच्छी पैदावार। इसके लिए धान एवं गेहूं की बोआई के समय में परिवर्तन भी किया जाएगा। डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विवि, पूसा के वैज्ञानिकों ने इस दिशा में सकारात्मक पहल की है। विवि के अंतर्गत आनेवाले उत्तर बिहार के सभी 17 कृषि विज्ञान केंद्रों ने एक-एक गांवों का चयन किया है।
नवंबर के प्रथम सप्ताह में गेहूं की बोआई
कुलपति डॉ. आरसी श्रीवास्तव का कहना है कि अगर धान की समय से बोआई की गई तो अक्टूबर तक फसल तैयार हो जाएगी। नवंबर के प्रथम सप्ताह में गेहूं की बोआई की जाएगी तो मार्च में फसल तैयार हो जाएगी। मुजफ्फरपुर के बंदरा का पटसारा, दरभंगा के जाले का ब्रह्मपुर और समस्तीपुर के बिरौली के कुसियारी सहित सभी चयनित गांवों के किसान वैज्ञानिक तरीके से खेती में जुट गए हैं। उनकी कृषि उत्पादकता को मॉडल के रूप में प्रदर्शित किया जाएगा।
विवि की ओर से बोरिंग कराई जा रही
विवि की ओर चयनित गांवों में धान की खेती के लिए काम शुरू है। सिंचाई सुविधा के लिए गांव के किसी एक किसान के खेत में विवि की ओर से बोरिंग कराई जा रही। कुलपति बताते हैं कि किसानों की आय दोगुनी करने की दिशा को ध्यान में रखते हुए यह योजना बनाई गई है।
खरीफ मौसम से ही किसानों को विश्वविद्यालय की तकनीक का लाभ मिलेगा। वैज्ञानिकों के साथ की गई बैठक व मंथन के बाद धान एवं गेहूं की बोआई में समय का परिवर्तन किया गया है, जिससे आगे आनेवाले समय में किसानों की फसलों को सुरक्षित किया जा सके।
एक हेक्टेयर में 100 क्विंटल अनाज उत्पादन का लक्ष्य
योजना के मुख्य वैज्ञानिक डॉ. एनके सिंह ने बताया कि उक्त गांवों में धान की बोआई 10 जून तक कर ली जाएगी। चयनित गांवों के किसान धान के बिचड़े भी गिरा चुके हैं। इससे अक्टूबर तक धान की कटाई हो जाएगी। समय से बोआई और कटाई से प्राकृतिक आपदा से किसान सुरक्षित रहेंगे और खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर रहेंगे। तकनीक के माध्यम से किसान यदि खेती करें तो एक हेक्टेयर में 100 क्विंटल अनाज का उत्पादन होगा। अभी तक मौजूद आंकड़ों के अनुसार किसान एक हेक्टेयर में 60 से 65 क्विंटल ही साल में उत्पादन कर पाते हैं।