आनंदमूर्ति के जन्म शताब्दी समारोह के पूर्व आयोजित हुआ राष्ट्रीय वेबीनार

मुंगेर । आनंदमार्ग के संस्थापक प्रभात रंजन सरकार उर्फ आनंदमूर्ति जी के जन्म शताब्दी समारोह के

By JagranEdited By: Publish:Fri, 26 Feb 2021 07:25 PM (IST) Updated:Fri, 26 Feb 2021 07:25 PM (IST)
आनंदमूर्ति के जन्म शताब्दी समारोह के पूर्व आयोजित हुआ राष्ट्रीय वेबीनार
आनंदमूर्ति के जन्म शताब्दी समारोह के पूर्व आयोजित हुआ राष्ट्रीय वेबीनार

मुंगेर । आनंदमार्ग के संस्थापक प्रभात रंजन सरकार उर्फ आनंदमूर्ति जी के जन्म शताब्दी समारोह के पूर्व अंतरराष्ट्रीय वेबीनार का आयोजन हुआ। जिसमें पूरे विश्व के आनंदमार्गियों ने हिस्सा लिया।

वेबीनार में दर्शन, साहित्य, भाषा विज्ञान और विज्ञान पर श्री श्री आनंदमूर्ति जी के चितन किया गया। कार्यक्रम में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय नई दिल्ली के स्कूल आफ संस्कृत और इंडिक स्टडीज के प्रो. संतोष शुक्ला ने अतिथियों का स्वागत किया। प्रो. संतोष शुक्ला ने आनंदमूर्तिजी के अवदानों के बारे में परिचयात्मक वक्तव्य रखे । कार्यक्रम के मुख्य अतिथि राजीव गांधी विश्वविद्यालय अरुणाचल प्रदेश के उप-कुलपति प्रो. साकेत कुशवाहा ने कहा कि श्री श्री आनन्दमूर्तिजी दार्शनिक, अर्थशास्त्री, भाषाविज्ञानी, इतिहासकार, समाजशास्त्री थे। कई विषयों पर उनकी गहरी पकड़ थी। उन्होंने मानवता के कल्याण के लिए एकेडमिक विषयों पर अनमोल उपहार दिए हैं। इंडियन इन्सटिच्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज के चेयरमेन प्रो कपिल कपूर ने आनंदमूर्ति जी के भाषा विज्ञान, दर्शन पर अपने विचार रखते हुए कहा कि उनके भाषा विज्ञान में तुलनात्मक और ऐतिहासिक ²ष्किोण का समन्व्य है । आनंदमूर्ति जी ने भारतीय दर्शन के क्षेत्र को विस्तारित करने के लिए मनोविज्ञान और आध्यात्मिक साधना को जोड़ा है। भारतीय दर्शन में चार तत्व-ईश्वरतत्व, सृष्टितत्व, नीतितत्व और ज्ञानतत्व पहले से उपलब्ध है। उनके विभिन्न विषयों को लेकर शोध कार्य भी करना चाहिए। मुख्य वक्ता के रुप में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के निदेशक डॉ़ सुरेंद्र मोहन मिश्रा, जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के स्कूल ऑफ संस्कृत और इण्डिक स्टडीज के प्रो़ राम नाथ झा, प्रो़ रजनीश कुमार मिश्रा और प्रो़ सत्यमूर्ति ने भी आनंदमूर्ति जी के दर्शन, साहित्य और भाषा विज्ञान पर विस्तार से चर्चा की। प्रो़ रामाकांत मोहालिक ने कहा कि श्री श्री आनंदमूर्ति जी का शिक्षा व्यवस्था नैतिक मूल्यों और अध्यात्म पर आधरित है। प्रो़. राम नाथ झा ने कहा कि जब मनुष्य सीमित से असीमित की ओर साधना के माध्यम से परमात्मा की ओर आगे बढ़ता है, वह अध्यात्म विज्ञान कहलाता है। प्रो़. रजनीश कुमार शुक्ला ने कहा कि श्रीश्री आनंदमूर्ति जी के अनुसार साहित्य ऐसा हो, जिसमें कल्याण की भावना हो। प्रो सत्यमूर्ति ने कहा कि उनके दर्शन में सामाजिक और अर्थ नैतिक सिद्धांत एक नये दर्शन और मौलिक चितन के रूप में उपलब्ध है, जो अध्यात्म दर्शन के साथ जुड़ा हुआ है। नार्थ बंगाल विश्वविद्यालय के दर्शन विभाग के प्रो़ लक्ष्मीकांत श्री श्री आनंदमूर्ति के दर्शन पर सामाजिक और आध्यात्मिक दोनों तुलनात्मक दृष्टि से चर्चा की।

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