निर्जला एकादशी से मिलता है 24 एकादशी व्रत का फल

मुंगेर । निर्जला एकादशी मंगलवार को मनाई जाएगी। इसमें दान का विशेष महत्व है। इस दौरान बड़ी स

By JagranEdited By: Publish:Mon, 01 Jun 2020 07:15 PM (IST) Updated:Mon, 01 Jun 2020 07:15 PM (IST)
निर्जला एकादशी से मिलता है 24 एकादशी व्रत का फल
निर्जला एकादशी से मिलता है 24 एकादशी व्रत का फल

मुंगेर । निर्जला एकादशी मंगलवार को मनाई जाएगी। इसमें दान का विशेष महत्व है। इस दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालु भगवान श्री विष्णु की प्रसन्नाता के लिए व्रत करते हैं। इस व्रत के दौरान व्रतधारी श्रद्धालु पानी का त्याग करते हुए ब्राह्मण और जरूरतमंद लोगों को ठंडे पेयजल के लिए मिट्टी का घड़ा, सुराही, मौसमी फल सहित अन्य खाद्य सामग्री के दान करने का महत्व है। व्रत के दौरान श्रद्धालुओं को ग्रीष्मऋतु के दौरान उपयोग होने वाली वस्तुओं का दान करना चाहिए, जिससे अनंत पुण्य की प्राप्ति होती है।

निर्जला एकादशी ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को पड़ती है। इस दिन जलदान करने का विशेष महत्व है। मिट्टी के बर्तन खरीदकर जरूरतमंद लोगों को दान करना चाहिए। खरबूजा और तरबूज जल देने वाला फल है। इसके अंदर जल की मात्रा अधिक होती है। इसलिए खरबूज और तरबूज का दान करना चाहिए। गर्मी के कारण शरीर में मधु शक्कर का लेवल कम हो जाता है। इसलिए जरूरतमंद लोगों को शक्कर का दान करना चाहिए। इसके अलावा ब्राह्मणों को आटा, दाल, चावल, घी आदि का दान करने का भी महत्व है। यह व्रत अत्यधिक कठिन होता है, लेकिन श्रद्धालु 24 घंटे तक निर्जला रहकर व्रत करते हैं।

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धार्मिक महत्ता के साथ है वैज्ञानिक महत्व :

निर्जला एकादशी का धार्मिक महत्व के साथ ही वैज्ञानिक महत्व भी है। वैज्ञानिक महत्व के अनुसार ज्येष्ठ महीने के एकादशी से ग्रीष्म ऋतु की शुरुआत हो जाती है। इसलिए घड़ा दान करने का महत्व है। मौसमी फलों जैसे खरबूज, तरबूज, ककरी, खीरा, फूंट आदि भी दान करने का चलन है।

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निर्जला एकादशी की यह है मान्यता :

निर्जला एकादशी को भीमसेन एकादशी भी कहा जाता है। निर्जला एकादशी के दिन जल ग्रहण किए बिना दिनभर उपवास कर भगवान विष्णु का पूजन व विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना चाहिए। सत्कर्म आश्रम के संस्थापक मुकेश आनंद जी ने कहा कि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार महर्षि वेदव्यास ने भीम को इस व्रत के बारे में बतलाया था। पांडव 24 एकादशी किया करते थे। परंतु भीम खाने-पीने का शौकीन था, वह इस व्रत को नहीं करता था।

एक दिन उसके मन में विचार आया कि मैं विष्णु भगवान का अनादर कर रहा हूं, यह दुविधा उसके मन में हो गया। इस दुविधा से उबरने के लिए उसने यह एकादशी का व्रत किया तभी से इस एकादशी का नाम भीमसेन एकादशी हो गया।

यह 24 एकादशी में उत्तम एकादशी है। सिर्फ एक मात्र यह एकादशी करने से 24 एकादशी करने का फल मिल जाता है। प्रात:काल एकादशी का उपवास करके जल से भरा घड़ा दान, अन्न दान करना चाहिए तथा ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए। इससे उनके पूर्वज तृप्त होते हैं। घर में सुख, शांति, उन्नति प्राप्त होता है।

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