दीपावली को लेकर कुम्हारों के चाक की रफ्तार में आई तेजी

संवाद सूत्र तारापुर (मुंगेर) दीपावली पर परंपरागत मिट्टी के दीपों का महत्व कम नहीं होगा।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 23 Oct 2019 06:56 PM (IST) Updated:Thu, 24 Oct 2019 06:26 AM (IST)
दीपावली को लेकर कुम्हारों के चाक की रफ्तार में आई तेजी
दीपावली को लेकर कुम्हारों के चाक की रफ्तार में आई तेजी

संवाद सूत्र, तारापुर (मुंगेर): दीपावली पर परंपरागत मिट्टी के दीपों का महत्व कम नहीं होगा। विद्युत की लड़ियों के बीच भी मिट्टी के दीयों की मांग अब भी कायम है। तमाम धार्मिक पूजन में इसकी आवश्यकता पड़ती है। दीपों की दीपावली को लेकर प्रखंड में कुम्हारों के चाक की रफ्तार तेज हो गई है। आज भी इस पुरानी परंपराओं को जीवंत रखने में इनकी अहम भूमिका है। पर्व को लेकर दिए बनने लगे है। कुम्हार समाज के अधिकांश लोग बदलते जीवन शैली के साथ अपनी परंपरा को सभ्यता को दरकिनार कर आधुनिकता का दामन पकड़ कर इस सामाजिक परंपरा से दूर होते जा रहे है। कभी प्रकाश पर्व के अलावा अन्य उत्सव में दिए समेत मिट्टी के बने अन्य सामान बेचकर परिवार आसानी से चलता था। आज वही लोग अपने जीवन की रोशनी की तलाश कर रहे है। हालांकि इस समाज में बड़े बुजुर्ग मिट्टी के दीए का वजूद बचाने के लिए आज भी संघर्ष कर रहे है। इस हुनर को अगली पीढ़ी तक पहुंचाने की कवायद भी की जा रही है। इनमें ना केवल हुनर को बरकरार रखने की क्षमता है। बल्कि राष्ट्रभक्ति का संदेश भी दे रही है। कुम्हार सिघेश्वर पंडित एवं सुबोध पंडित ने कहा कि अब मिट्टी से बनी सामग्री की मांग कम हो गई है। इसलिए हमारे बच्चे इस काम को छोड़कर दूसरे जगह पर जाकर मजदूरी कर रहे है। इसके लिए सरकार व प्रतिनिधि भी जवाब दे। कुटीर उद्योग व परंपरागत रोजगार को बढ़ावा नहीं दिया गया और बाजार में चीनी सामानों को बेचने की छूट दे दी गई। जिसके कारण परंपरागत रोजगार दम तोड़ रहा है।

हालांकि अब चाइनीज सामानों के बहिष्कार की बात सुनकर उम्मीद की किरण जगी है। जिससे कुछ जगहों पर चाक की रफ्तार बढ़ गई है। वहीं ग्रामीणों का कहना है कि मिट्टी के दिए सिर्फ घरों में रोशनी नहीं करते बल्कि इसमे देशभक्ति का संदेश भी छिपा है। बिजली के दीये व लड़ियां सस्ता होने के कारण उसे लोग खरीद रहे है।

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