बाढ़ का पानी उतरने के साथ ही दिख रहा बर्बादी का मं•ार
मधुबनी। मधवापुर प्रखंड के होकर बहने वाली अधवारा समूह की नदियों का जलस्तर नीचे आने के साथ ही बाढ़ प्रभावित इलाके में बर्बादी का मं•ार दिख रहा है।
मधुबनी। मधवापुर प्रखंड के होकर बहने वाली अधवारा समूह की नदियों का जलस्तर नीचे आने के साथ ही बाढ़ प्रभावित इलाके में बर्बादी का मं•ार दिख रहा है। बाढ़ का पानी तो उतर चुका है लेकिन बाढ़ पीड़ितों की समस्या घटने के बजाय और बढ़ती जा रही है। बाढ़ पीड़ितों के समक्ष भोजन के साथ पशुचारा की सबसे बड़ी समस्या है। इसके बावजूद न तो कोई प्रशासनिक अधिकारी और न जनप्रतिनिधि इन बाढ़ पीड़ित परिवारों की मुसीबत बांटने या राहत और बचाव कार्य चलाने के लिए पहुंचे हैं। बाढ़ के कारण विस्थापित लालू नगर के सौ से अधिक परिवार अभी भी एनएच 104 सड़क पर तंबू डाल कर शरण लिए हुए हैं। जबकि महादलित टोल साहरघाट के दर्जनों परिवार वर्षा का पानी घर में प्रवेश कर जाने के कारण मध्य विद्यालय साहरघाट में शरण लिए हुए हैं। डुमरा गांव के एक दर्जन परिवार प्राथमिक विद्यालय डुमरा में शरण लिए हुए हैं। ये लोग यहीं पर भोजन बनाकर खाते हैं और सरकारी चापाकल का पानी पीते हैं। लालू नगर के विस्थापित जीवन राम बताते हैं कि पिछले दो सप्ताह से वे लोग विस्थापित हो एनएच 104 सड़क पर शरण लिए हुए हैं परंतु अबतक कोई सरकारी मदद उन लोगों को नहीं मिली है और ना ही कोई अधिकारी उनकी सुध नहीं ली। जीवन राम बताते हैं कि उन लोगों के घर में बाढ़ का पानी प्रवेश कर जाने के कारण मवेशियों के साथ शरण लिए हुए हैं। उन लोगों के समक्ष सबसे बड़ी समस्या भोजन के साथ ही मवेशियों का चारा है। पेड़ों से पते तोड़ कर पशुओं को खिला रहे हैं। अबतक कोई सरकारी सहायता नहीं मिली है और ना ही अधिकारी इन्हें देखने की सुध ली है। इस विषम परिस्थितियों में यहां के लोग अपना घर छोड़कर भगवान भरोसे बाढ़ का दंश झेलने को विवश हैं।
प्रलयंकारी बाढ़ के दौरान प्रखंड क्षेत्र में हजारों एकड़ में लगी धान की फसल पूरी तरह बाढ़ के पानी में डूब कर नष्ट हो गया। किसानों की कड़ी मेहनत के बल बूते उगाई गई धान की फसल पूरी तरह बाढ़ के पानी से बर्बाद हो गया। करीब 80 प्रतिशत किसान आद्रा नक्षत्र की पहली बारिश में ही धान की फसल खेत में लगा चुके थे। बसवरिया के किसान रामनंदन साह ने बताया कि पहले तेज आंधी पानी के कारण आम लीची, मक्का, सब्जी की क्षति से किसान उबरे भी नहीं थे कि बाढ़ के पानी ने किसानों की धान की फसल डुबो कर हम किसानों की कमर तोड़ कर रख दिया। किसान अब कैसे अपने बच्चों का भरण पोषण करेंगे। बाढ़ का पानी उतरने के साथ ही पशुपालकों के समक्ष पशुचारा की सबसे बड़ी समस्या उत्पन्न हो चुकी है। खासकर दुधारू पशुओं में गाय, भैंस और बकरियों के लिए पशुचारा नहीं मिलने से इनके दूध देने में कमी आ गई है। मधवापुर के पशुपालक रामचंद्र ठाकुर बताते हैं कि उनकी भैंस प्रति दिन सात से आठ लीटर दूध दोनों शाम मिलाकर देती थी। परंतु पशुचारा में कमी के कारण अब चार से पांच लीटर दूध देती है। बाढ़ के पानी में गेहूं का भूंसा बह गया। पशुपालकों के समक्ष पशुचारा की सबसे बड़ी समस्या उत्पन्न हो चुकी है। बीमार पशुओं के इलाज की कोई सरकारी व्यवस्था नहीं रहने से झोला छाप ग्रामीण चिकित्सक से इलाज कराने को बाध्य हैं।