केओ बेली लोढ़य केओ चमेली लोढ़य, केओ लोढ़य अड़हूल केर कलिया..

मधुबनी । फूल लोढ़न चलु फुलवरिया सीता के संग सहेलिया। केओ आगाँ चले केओ पाछा चले चले बीचहिमे जनक दुलरिया।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 05 Aug 2021 11:11 PM (IST) Updated:Thu, 05 Aug 2021 11:11 PM (IST)
केओ बेली लोढ़य केओ चमेली लोढ़य, केओ लोढ़य अड़हूल केर कलिया..
केओ बेली लोढ़य केओ चमेली लोढ़य, केओ लोढ़य अड़हूल केर कलिया..

मधुबनी । फूल लोढ़न चलु फुलवरिया, सीता के संग सहेलिया। केओ आगाँ चले केओ पाछा चले, चले बीचहिमे जनक दुलरिया। केओ बेली लोढ़य केओ चमेली लोढ़य, केओ लोढ़य अड़हूल केर कलिया। केओ गौरी पूजय केओ गिरिजा पूजय, केओ पूजय जनकजी के बगिया, सीता के संग सहेलिया। नवविवाहिताओं का पर्व मधुश्रावणी शुरू होते ही शहर से लेकर गांवों तक लोक गीतों से गलियां गुलजार होने लगी हैं। सुबह में गौरी व विषहारा की पूजा से निवृत होकर नवविवाहिताएं निकल पड़ती हैं अगले दिन की पूजा के लिए फूल लोढ़ने। बहनों, सखी-सहेलियों संग जब नवविवाहिताओं का झूंड गलियों में निकलता है तो आनंद विनोद की एक अनुपम छटा देखने को मिलती है। गौरी के गीत, शिव की नचारी, बजरंग बली के गीत, फूललोढ़ी के गीत, सोहर, बटगमनी गाते नवविवाहिताओं का समूह जिधर से गुजरता है मानों लोगों की आंखे व कान उसी दिशा में ठिठक जाते हैं। -------------

सांस्कृतिक विरासत को प्रदर्शित करती लोक परंपरा :

लालहि वन हम जायब, फूल लोढ़ब हे, माई हे सिन्दुर भरल सोहाग, बलमु संग गौरी पूजब हे। पीयर वन हम जायब फूल लोढब हे, माई हे सोनहि भरल सोहाग, बलमु संग गौरी पूजब हे। एक दूसरे के साथ हंसी-ठिठोली करती बालाओं का समूह गली-मोहल्लों में फूल बटोरते हुए किसी मंदिर पर एकत्र होती है और वहां लोढ़े गए बासी फूलों को डाला से निकाल कर ताजे फूलों से फिर से डाला सजाकर गीत गाते हुए वापस घर की ओर प्रस्थान करती हैं। यह क्रम पूरे मधुश्रावणी पूजा के दौरान प्रतिदिन चलता रहता है। बारिश हो या फिर तेज धूप, नवविवाहिताओं की श्रद्धा व निष्ठा के सामने सब बौने दिखते हैं। मिथिला की सांस्कृतिक विरासत को प्रदर्शित करती यह लोक परंपरा आज भी उसी रूप में कायम है और यह समाज की जीवंतता को ही प्रदर्शित करता है।-----------------

11 अगस्त को होगा समापन : 28 जुलाई को नागपंचमी से शुरू यह पूजा 11 अगस्त तक चलेगी। उस दिन मिथिलांचल के इस विशिष्ट पर्व मधुश्रावणी की अंतिम पूजा के साथ ही इसका समापन हो जाएगा। उस दिन नवविवाहिता के पति की लंबी आयु के लिए दीप से दागने की रस्म पूरी की जाएगी। अंतिम पूजा तक प्रत्येक दिन शाम में नवविवाहिताएं अपने सखियों के संग सोलहों श्रृंगार कर फूललोढ़ी करेंगी।

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