घर-आंगन गुलजार, गलियों में गूंजने लगे पारंपरिक लोकगीत

सावन की रिमझिम फुहारों के बीच संपूर्ण मिथिलांचल क्षेत्र में बुधवार को आस्था व श्रद्धा के साथ नवविवाहिताओं के पर्व मधुश्रावणी का शुभारंभ हो गया। नागपंचमी से शुरू होने वाले इस पर्व का समापन 11 अगस्त को अंतिम पूजा के साथ होगा। मधुश्रावणी पूजा के साथ ही नवविवाहिताओं की फूललोढ़ी भी शुरू हो गई।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 28 Jul 2021 11:17 PM (IST) Updated:Wed, 28 Jul 2021 11:17 PM (IST)
घर-आंगन गुलजार, गलियों में गूंजने लगे पारंपरिक लोकगीत
घर-आंगन गुलजार, गलियों में गूंजने लगे पारंपरिक लोकगीत

मधुबनी । सावन की रिमझिम फुहारों के बीच संपूर्ण मिथिलांचल क्षेत्र में बुधवार को आस्था व श्रद्धा के साथ नवविवाहिताओं के पर्व मधुश्रावणी का शुभारंभ हो गया। नागपंचमी से शुरू होने वाले इस पर्व का समापन 11 अगस्त को अंतिम पूजा के साथ होगा। मधुश्रावणी पूजा के साथ ही नवविवाहिताओं की फूललोढ़ी भी शुरू हो गई। बुधवार को नवविवाहिताओं ने अहले सुबह उठकर विषहारा पूजा की तैयारी शुरू कर दी थी। कोई धान का लावा बना रही थी तो कोई विषहारा को रंगने की तैयारी व मइना पत्ता को सिदुर पिठार लगा रही थी। इस बीच महिलाएं गौड़ी पूजा, भगवती गीत, विषहारा पूजा सहित अन्य देवी देवताओं के गीत भी गा रही थी। नवविवाहिताओं के घर से परंपरागत गीत के स्वर निकल रहे थे। धूप अगरबत्ती की सुगंध वातावरण को भक्तिमय बना रही थी। सारी तैयारियां पूरी कर नवविवाहिता ससुराल से आए नव वस्त्र सहित सभी प्रकार के श्रृंगार के सामान से सजधज कर विषहारा पूजा के लिए बैठी। इस बीच महिला पंडिताईन की ओर से नवविवाहिता को पूजा के रस्म कराए गए। इस पूजा की सबसे खास बात यह है कि इसमें पुरूष पंडित के स्थान पर महिला पंडिताईन पूजा कराती है। नवविवाहिताओं ने श्रद्धा भाव से पहले गौड़ी पूजा, फिर विषहारा पूजन किया और दूध, लावा आदि प्रसाद भी चढ़ाए गए। इस अवसर पर प्रतिदिन की अलग-अलग कथा होती है, जिसका वाचन महिला पंडित ही करती हैं। कथा के समय नवविवाहिता सहित घर व पडोस की अन्य महिलाएं भी श्रद्धाभाव के साथ कथा सुनती हैं।

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11 अगस्त को होगा समापन :

बुधवार को नागपंचमी से शुरू यह पूजा 11 अगस्त तक चलेगी। उस दिन मिथिलांचल के इस विशिष्ट पर्व मधुश्रावणी की अंतिम पूजा के साथ ही इसका समापन हो जाएगा। उस दिन नवविवाहिता के पति की लंबी आयु के लिए दीप से दागने की रस्म पूरी की जाएगी। अंतिम पूजा तक प्रत्येक दिन शाम में नवविवाहिताएं अपने सखियों के संग सोलहों श्रृंगार कर फूललोढ़ी करेंगी। लोढ़े गए फूल को किसी देव स्थल पर एकत्रित होकर डाला में सजाती हैं।-------------

बासी फूल से होती पूजा :

इस पूजा में प्रत्येक दिन बासी फूल से ही पूजा किए जाने का रिवाज है। मिथिलांचल की परंपरा के अनुसार पूजा की अवधि में सभी दिन नवविवाहिता अपने ससुराल से आए खाद्य पदार्थ का ही सेवन करती है। विशेष नियम निष्ठा के तहत प्रत्येक दिन नवविवाहिताएं अरबा पदार्थ ही सेवन करती हैं। ------------

गौड़ी पूजा :

गौड़ी पूजय लेल सीता बेहाल भेल छई, सीथ सिदुर भरल अंग लाल भेल छई। तीन सिदुर सं गौड़ी पूजल जाई छई, पीपा, भुसना ओ मटिया अछिन ल पूजल जाय छई। गौड़ी पूजन गृह आयब यौ रघुनंदन स्वामी, आसन लायब अपने, सिंहासन लायब अपने, कारी कंबल आंहां लायब यौ रघुनंदन स्वामी। गौड़ी के इन पारंपरिक लोक गीतों के साथ नवविवाहिताओं ने पूरी आस्था व श्रद्धा के साथ आदि शक्ति माता गौड़ी की पूजा कर अपने सुहाग के लंबी उम्र की कामना की। इस दौरान गांव व आस-पड़ोस की महिलाएं हर पूजा के लिए अलग-अलग गीत गाती रही। ----------------

विषहारा पूजा :

विषहर-विषहर करई छी पुकार, राम कतौ नहीं भेटई छथि जननी हमार, फूल दे रे मलिया भैया दीप दे कुम्हार, राम बाती दे रे पटवा भैया लेसब प्रह्लाद। अंगना में थाल कीच दुआइरे भैंसूर, राम! कोने बाटे औती विषहरि बाजनि नुपूर, नीप देब थाल कीच हटि जैत भैंसूर, राम! ओहि बाटे औती विषहर बाजनि नुपूर। नवविवाहिताओं के घर में पूजा के दौरान विषहारा के ये पारंपरिक लोकगीत गूंजते रहे। गौड़ी पूजा के बाद नवविवाहिताओं ने विषहारा का पूजन किया। कहा जाता है कि नाग (विषहर) पूजा से नवविवाहिता के मायका व ससुराल में वंश की वृद्धि होती है और हर प्रकार की सुख शांति मिलती है।

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