महंगाई की मार से बिगड़ने लगा होली का बजट
रंगों के त्योहार होली के आगमन के बीच महंगाई की मार से आम लोग चितित हो उठे हैं। हरी सब्जियों की कीमत भी आसमान छू रही है। जिससे घर की गृहणियां परेशान हैं। पिछले माह दूध की कीमत में भी इजाफा हो गया जिसने लोगों के चाय का जायजा बिगाड़ दिया है।
मधुबनी । रंगों के त्योहार होली के आगमन के बीच महंगाई की मार से आम लोग चितित हो उठे हैं। हरी सब्जियों की कीमत भी आसमान छू रही है। जिससे घर की गृहणियां परेशान हैं। पिछले माह दूध की कीमत में भी इजाफा हो गया जिसने लोगों के चाय का जायजा बिगाड़ दिया है। लॉकडाउन के बाद से ही खाद्य वस्तुओं सहित घरेलू उपयोग की वस्तुओं की कीमत में इजाफा गरीब व मध्यम वर्ग के लोगों को खल रहा है। खाद्य तेल, चीनी, चाय पत्ती, मसाला, दाल, चना, मटर, सुजी, मैदा सहित अन्य वस्तुओं में की कीमत में इजाफा से हर कोई महंगाई को कोसने लगा है।
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''लॉकडाउन के बाद महज एक साल के अंदर में खाद्य वस्तुओं की कीमत में 20 से 25 फीसद उछाल से कई खर्चों को कम करना पड़ रहा है।''
- कंचन झा
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''रसोई गैस की बढ़ती कीमत घर चलाना मुश्किल कर दिया है। सब्जियों की ऊंची कीमत के बीच आए दिन आलू-प्याज की कीमत में उछाल परेशान कर रहा है।''
- लक्ष्मी मिश्रा
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''खाद्य वस्तु पर महंगाई के कारण खाद्य वस्तुओं की खरीदारी में कटौती करना पड़ रहा है। गरीब व मध्यम वर्ग के लोगों का घरेलू बजट पूरी तरह गड़बड़ा गया है।''
- पुष्पा दास, गृहिणी ------------------------------------
बच्चों को लुभाने लगी आकर्षक पिचकारियां :
रंगों के त्योहार होली को लेकर पिचकारी, रंग-गुलाल का बाजार सज गया है। इसकी खरीदारी को लेकर बाजार की चहल-पहल बढ़ने लगी है। लोग रंग-गुलाल व पिचकारी की खरीदारी करने लगे हैं। इस वर्ष होलिका दहन 28 और होली 29 मार्च को मनाई जाएगी। बाजार त्योहार के रंग में रंगने लगा है। बाजार में तरह-तरह के डिजाइन वाले पिचकारियां बच्चों को लुभाने लगा है। बाजार में बंदूक, पंप, वाटर बैलून, स्कूल बैग, पाइपनुमा देसी पिचकारियां और मुखौटा उपलब्ध है। चाइना निर्मित पिचकारियां नहीं देखी जा रही है। शहर के बाटा चौक स्थित शिवम फैंसी पिचकारी सेंटर के मनोज कुमार ने बताया कि कोरोना के चलते बाजार में चाइना की पिचकारियां उपलब्ध नहीं है। देसी पिचकारियां ही बच्चों के लिए उपलब्ध है। बच्चे बंदूकनुमा पिचकारियां काफी पसंद कर रहे है।
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''एक पौधे को जवान होने में आठ से दस वर्ष लग जाते हैं। एक पौधा को बच्चों की तरह देखभाल से वह पेड़ का रूप धारण करता है। एक पेड़ की कमी को पूरा करने के लिए दस पौधे लगाने पड़ते हैं।
- सूर्यदेव झा
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''होली का पर्यावरण से सीधा जुड़ाव है। होलिका दहन के नाम पर बड़े पैमाने पर हरे-भरे पेड़ों को काटना पर्यावरण के लिए उचित नहीं होता।
- संतोष कुमार मुरारका
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''जल ही जीवन है। जल को बचाना हमारा कर्तव्य होता है। सूखी होली के बढ़ावा से जल संकट पर काबू पाया जा सकता है। पानी की बचत के लिए सूखी होली के लिए औरों को भी प्रेरित करना चाहिए।''
- इं. आरएन गुप्ता
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''जल के बगैर हमारी जिदगी खतरे में पड़ जाएगी। जल के दुरुपयोग रोकने का हर संभव प्रयास जरूरी है। सूखी होली समय की मांग हो गई है। सूखी होली मनाकर जल को बचाएं।''
- किरण झा
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