ऐतिहासिक तथ्यों को नाटक लेखन में उभारा
जिले के पंडौल प्रखंड अंतर्गत सरिसब पाही गांव वासी व लनामिवि के सेवानिवृत्त ¨हदी प्राध्यापक डॉ. सदन मिश्र ¨हदी, मैथिली साहित्य के स्थापित लेखक तथा मूर्धन्य विद्वान हैं।
मधुबनी। जिले के पंडौल प्रखंड अंतर्गत सरिसब पाही गांव वासी व लनामिवि के सेवानिवृत्त ¨हदी प्राध्यापक डॉ. सदन मिश्र ¨हदी, मैथिली साहित्य के स्थापित लेखक तथा मूर्धन्य विद्वान हैं। कथा , कविता, समीक्षा, समालोचना तथा नाटक विधाओं में इनकी सारगर्भित रचनाओं ने साहित्यिक भंडार को भरने का काम किया है। विगत पचास वर्षों से निरंतर ¨हदी व मैथिली भाषा साहित्य के संवर्धन व संरक्षण में ये जुटे हुए हैं। इनकी पहली पुस्तक 'राज नर्त्तकी'(मैथिली नाटक) है।ऐतिहासिक ²ष्टिकोण से सबल इस नाटक के सभी पात्रों की भूमिका बहुत ही रोचक ढंग से सजाई गई है। हिंदी-अंग्रेजी में शुरुआती दौर में पत्रकारिता जगत में भी अपनी सहभागिता रहने की चर्चा करते श्री मिश्र ने बताया कि साहित्य सृजन मेरा शगल रहा है। कहा कि पहली पुस्तक प्रकाशित हुई तो उस समय मैथिली साहित्य के स्थापित लेखकों के बीच मेरी रचना काफी चर्चित रही थी। स्वाधीनता संग्राम में क्रांतिकारी विरासत को इस नाटक में दर्शाया गया है। पुस्तक की तथ्यात्मक विषय वस्तु को अपनी भूमिका में सुप्रसिद्ध विद्वान प्रो. नवीन चन्द्र मिश्र ने स्पष्ट ढंग से समीक्षा क्रम में उल्लेख किया था तथा मुझे बधाई दी थी। कहा कि यहां के अधिकांश ग्रामीण नाट्यकला मंच से इस नाटक का मंचन किया गया तथा दर्शकों की खूब तालियां बटोरी। तत्कालीन बिहार विश्वविद्यालय से एमए में उत्कृष्ट रिजल्ट व अष्टछाप कवियों की श्रृंगार-भक्ति साधना के कृतियां विषय पर पीएचडी डिग्री प्राप्त डॉ. मिश्र ग्रामीण अंचल में रचे-बसे परिवेश की सार्वभौमिक पहलुओं पर भी कलम चलाई है। मम भवानी मिश्र उर्फ सचल मिश्र की जीवन शैली पर का वर्णन इनकी सारगर्भित पुस्तक है।