सिद्धपीठ उच्चैठ स्थान शक्ति की उपासना के लिए श्रद्धालुओं के आकर्षण का प्रमुख केंद्र
मधुबनी। कालिदास की याद संजोए मिथिलांचल का सिद्धपीठ उच्चैठ भगवती स्थान शक्ति की उपासना के लिए श्र
मधुबनी। कालिदास की याद संजोए मिथिलांचल का सिद्धपीठ उच्चैठ भगवती स्थान शक्ति की उपासना के लिए श्रद्धालुओ के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। अपनी एतिहासिक व पौराणिक पृष्टिभूमि के लिए चर्चित उच्चैठ स्थित छिन्नमस्तिका भगवती के दर्शन करने बिहार, नेपाल, बंगाल के अलावा देश के अन्य भागों से भी भक्तगण प्रतिदिन आते ही रहते हैं। अनुमंडल मुख्यालय बेनीपट्टी से महज पांच किलोमीटर की दूरी पर उच्चैठ गांव में सिद्धपीठ छिन्नमस्तिका भगवती विराजमान है। थूम्हानी नदी के किनारे अवस्थित उच्चैठ गांव व उच्चैठ वासिनी दूर्गा मंदिर के बगल उत्तर-पूरब में सरोबर और सरोबर के पूरब शमशान होना और काली, कालिया, काली मिश्र को ज्ञान की प्राप्ति के बाद कालीदास बनने की प्राचीन जनश्रूतियों से उच्चैठ वासिनी दूर्गा की एतिहासिकता एवं व्यापकता का दिग्दर्शन होता है। अतिप्राचीन अनूपम दिव्यकाले शिलाखंड पर जो मूर्ति अंकित है उनमें देवी चार भूजा वाली है। बायें दो हाथों में कमल फूल और गदा तथा उसके नीचे बजरंग वली की मूर्ति, दाहिने दोनों हाथों में चक्र और त्रिशूल एवं उसके नीचे काली की मूर्ति फिर उसके नीचे मछली का चिन्ह व बायें पांव में चक्र का चिन्ह अंकित है। सिंह के उपर कमलासन में विराजमान, लेकिन मस्तक कटा हुआ है तथा इनमें महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती की सम्मलित शक्ति होने का प्रमाण बहुसंख्यक है। मां दूर्गा की ढाई फीट की कलात्मक प्रतिमा भक्तों के लिए मनभावन बना हुआ है। मैया के दरबार में भक्तों को दिव्य अनुभूति व आलौकिक शांति मिलती है। साथ ही सच्चे मन से आने वाले भक्त सिद्धपीठ के दरबार से खाली हाथ नही लौटते हैं। मिथिलांचल का पौराणिक, धार्मिक, ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक विरासत को धारण किए सिद्धपीठ उच्चैठ भगवती स्थान में माता के आशीर्वाद की बरसात होती है। सिद्धपीद्ध उच्चैठ भगवती स्थान को अबतक पर्यटन स्थल का दर्जा नही मिल पाया है, जबकि सिद्धपीठ स्थल को विकसित किए जाने की जरूरत है। चैती नवरात्र में सिद्धपीठ उच्चैठ भगवती स्थान श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। मां भगवती दूर्गा के दरबार में दिव्य अनुभूति व आलौकिक शांति मिलती है। सच्चे मन से आने वाले भक्त उच्चैठ भगवती के दरबार से खाली हाथ नहीं लौटते हैं।