संस्कृति का अधिकार दिलाना डॉ. ज्ञानंजय द्विवेदी का बन गया है मिशन

मधेपुरा । आज के बदलते परिवेश में युवा पीढ़ी को सही दिशा दिखाना और संस्कृति का अधिकार

By JagranEdited By: Publish:Wed, 12 Aug 2020 11:27 PM (IST) Updated:Wed, 12 Aug 2020 11:27 PM (IST)
संस्कृति का अधिकार दिलाना डॉ. ज्ञानंजय द्विवेदी का बन गया है मिशन
संस्कृति का अधिकार दिलाना डॉ. ज्ञानंजय द्विवेदी का बन गया है मिशन

मधेपुरा । आज के बदलते परिवेश में युवा पीढ़ी को सही दिशा दिखाना और संस्कृति का अधिकार दिलाना बीएनएमयू के कुलपति का दिनचर्या मिशन गया है। उन्होंने संस्कृति के संरक्षण को बढ़ावा देने और संस्कृति को बचाने का बेहतर प्रयास शुरू किया है। वह संस्कृति से इतने प्यार करते हैं की सुबह से शाम तक छात्र-छात्राओं के साथ अभिभावक व शिक्षक को संस्कृति को बचाए रखने को प्रेरित करते हैं। प्रो. डॉ. ज्ञानंजय द्विवेदी भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय में प्रभारी कुलपति के पद पर नियुक्त हैं। स्वभाव से मृदुभाषी, शांत स्वभाव और विद्वता से प्रो. डॉ. द्विवेदी विश्वविद्यालय में अपनी एक अलग प्रतिष्ठा बना चुके हैं। वह बीएसएस कॉलेज में दो नवंबर 1982 को व्याख्याता पद पर नियुक्त हुए थे। महाविद्यालय स्तर पर भी उनकों काफी प्रतिष्ठा प्राप्त है। व्याख्याता से कुलपति तक के सफर में उन्होंने अपनी विद्वता के कारण प्रतिष्ठित माने जाते हैं। जौनपुर यूपी के रहने वाले डॉक्टर द्विवेदी बनारस हिदू विश्वविद्यालय से एमए और पीएचडी की उपाधि हासिल की। दो नवंबर 1982 को बीएसएस कॉलेज में लेक्चरर के पद पर नियुक्त हुए। 1990 तक लेक्चरर के पद पर रहने वाले डॉ. द्विवेदी 2 नवंबर 1990 को रीडर के रूप में नियुक्त किए गए। इसके बाद 1998 में यूनिवर्सिटी प्रोफेसर बने। फिर सात मई 2009 से 24 जनवरी 2011 तक पीजी सेंटर सहरसा के प्रोफेसर रहे। डॉ. द्विवेदी की लिखित पुस्तक कई विश्वविद्यालयों में चल रहा है। वह मानविकी संकाय के डीन और बीएसएस कॉलेज सुपौल में पदस्थापित थे। 38 वर्षो से छात्रों को करा रहे हैं संस्कृति का बोध 38 वर्षों से प्रो. डॉ. द्विवेदी छात्रों को संस्कृति का बोध करा रहें हैं। वह बीएनएमयू के 24 वें कुलपति हैं और अगले आदेश तक कुलपति रहेंगे। उनका जन्म 10 मार्च 1959 को उत्तर प्रदेश के जोनपुर जिले में हुआ था। 1973 में यूपी बोर्ड से मैट्रिक और उन्होंने 1975 में इंटर की डिग्री प्राप्त की । 1977 में गौरखपुर विवि गौरखपुर से स्नातक और 1979 मे बनारस हिंदू विवि बनारस से पीजी की। 1982 में पीएचडी की उपाधि बनारस हिदू विवि से प्राप्त की।

उन्हें 1990 में रीडर व 1998 में प्रोफेसर के पद पर प्रोन्नति मिली। वे सात नई 2009 से 24 जनवरी 2011 तक पीजी सेंटर सहरसा में दर्शनशास्त्र के विभाध्यक्ष रहें। वहीं विवि स्थित पीजी दर्शनशास्त्र में 29 फरवरी 2012 से 5 मई 2015 तक विभाध्यक्ष और बाद में विवि मानविकी संकाय के संकायाध्यक्ष भी बने। संस्कृति के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए लिखीं कई किताबें

कुलपति ने भारतीय संस्कृति को बचाने और बढ़ावा देने के लिए अब तक कई किताबें लिख डाली है। इसमें पाश्चात्य संस्कृति को बढ़ावा देने के विरुद्ध, पाश्चात्य और आधुनिक संस्कृति में फर्क करने भारतीय संस्कृति और सभ्यता ने दुनियां को बनाया सभ्य जैसे विषय का उल्लेख है। इसके अलावा समाज और राजनीति का दार्शनिक अध्ययन, धर्म दर्शन की समस्याएं, अभिनीति शास्त्र के मूल्य सिद्धांत सहित अन्य पुस्तकें काफी चर्चित रही हैं। इनके मार्ग दर्शन में सैकड़ों शोधार्थी ने पीएचडी की डिग्री हासिल की है। वहीं दर्जनों आलेख इनके पत्रिकाओं में छप चुके हैं। वे कई संस्थाओं के आजीवन सदस्य हैं और उन्हें विभिन्न संस्थानों ने इस क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने पर पुरस्कार से नवाजा है।

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