त्याग और समर्पण है भक्ति का प्रथम सोपान : प्रभंजनानंद

संवाद सहयोगी लखीसराय श्री रामचरित मानस प्रचार समिति लखीसराय द्वारा शहर के केआरके हाई

By JagranEdited By: Publish:Tue, 30 Nov 2021 07:18 PM (IST) Updated:Tue, 30 Nov 2021 07:18 PM (IST)
त्याग और समर्पण है भक्ति का प्रथम सोपान : प्रभंजनानंद
त्याग और समर्पण है भक्ति का प्रथम सोपान : प्रभंजनानंद

संवाद सहयोगी, लखीसराय : श्री रामचरित मानस प्रचार समिति लखीसराय द्वारा शहर के केआरके हाई स्कूल मैदान में आयोजित सात दिवसीय संगीतमय रामकथा का मंगलवार की रात समापन हो गया। कथा के अंतिम दिन राम दरबार में हाजरी लगाने श्रोताओं की भीड़ उमड़ी। भजन के साथ रामकथा का लोगों ने भरपूर आनंद लिया। कथा स्थल पर स्थापित भगवान हनुमान जी की पूजा-आराधना के बाद बुधवार को उनकी प्रतिमा विसर्जित की जाएगी। रामकथा के अंतिम दिन करीब चार घंटे तक श्री राम जय राम जय जय राम के जयघोष के साथ कथावाचक अयोध्या से पधारे स्वामी श्री प्रभंजनानंद शरण जी महाराज ने प्रभु की भक्ति, सत्संग से लेकर सच्चे मार्ग पर चलने का रास्ता बतलाया और जीवन जीने की कला का गुरुमंत्र दिया। कथा के अगले प्रसंग में उन्होंने कहा कि त्याग और समर्पण भक्ति का प्रथम सोपान है। उन्होंने कहा कि त्याग करने वाला ही संसार में आदर्श बनता है। स्वामी जी ने कहा कि जीवन में जिसने संपत्ति को महत्व दिया, वह हमारे जीवन का आदर्श नहीं हो सकता। हमारे जीवन का आदर्श तो त्याग करने वाला ही है। उन्होंने कहा कि श्रीराम और भरत दोनों ने एक दूसरे के लिए संपत्ति का परित्याग किया और हमारे जीवन के आदर्श बने। उन्होंने कथा के माध्यम से समझाते हुए कहा कि बसंत आने से मौसम की तासीर बदल जाती है और जब जीवन में संत का आगमन होता है, तो जीवन की तस्वीर बदल जाती है। उन्होंने कहा कि बसंत आती है तो प्रकृति मुस्कुराती है और संत आते हैं तो संस्कृति मुस्कुराती है। जिस प्रकार सूखे को हरा करना बसंत का काम है उसी तरह मुर्दे को खड़ा करना संत का काम है। अन्न का कण और संत से मिला हुआ क्षण इसे कभी बर्बाद नहीं करें। संत के मिल जाने पर भगवंत की प्राप्ति का मार्ग उनसे पूछें। मांगना हो तो भगवान से भक्ति ही मांग लें। धन की अमीरी महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि मन की अमीरी महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि अगर बनना हो तो मन से अमीर बनो क्योंकि आज व्यक्ति मानसिक गरीबी में जी रहा है। कथावाचक ने अपनी कथा के दौरान कई प्रसंगों के माध्यम से श्रोताओं को भक्ति मार्ग पर चलने का रास्ता दिखाया। रामकथा के आयोजन को सफल बनाने में डा. श्यामसुंदर प्रसाद सिंह, डा. प्रवीण कुमार सिन्हा, डा. राज किशोरी सिंह, डा. विनीता सिन्हा, डा. हरिप्रिया, सीताराम सिंह, डा. कंचन, रामसेवक चौधरी, मनोरंजन कुमार, यजमान अविनाश कुमार का सराहनीय योगदान रहा।

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