रबी की बुआई को इंतजार, पानी में डूबा है बड़हिया-मोकामा टाल
लखीसराय। जिले के बड़हिया से लेकर पटना जिला के मोकामा तक फैले टाल क्षेत्र को दाल का कटो
लखीसराय। जिले के बड़हिया से लेकर पटना जिला के मोकामा तक फैले टाल क्षेत्र को दाल का कटोरा कहा जाता है। इसे बड़हिया-मोकामा टाल क्षेत्र कहा जाता है। टाल में दलहन फसल की पैदावार खासकर चना, मसूर एवं मटर के लिए उपयुक्त माना जाता है। परंतु पिछले कुछ वर्षों से टाल क्षेत्र में जलजमाव के कारण क्षेत्र के किसानों की हालत खस्ता हो गई है। क्षेत्र के किसान इस वर्ष भी अधिक दिनों तक जल जमाव के कारण परेशान हैं। वहीं पिछले दो दिनों से हो रही लगातार बारिश से किसानों की बेचैनी और बढ़ गई है। टाल क्षेत्र में लगी धान की फसल लगभग बर्बाद ही हो गई है। ज्वास, धीराडाढ़, गिरधरपुर, निजाय, मनोहरपुर आदि जगहों में जिन खेतों से पानी निकला है उस खेतों में कुछ किसान सब्जी के रूप में टमाटर, गोभी, बैगन आदि की खेती शुरू की है। पिछले दो दिन से हुई बारिश में अधिकांश फसलें बर्बाद हो गई। टाल क्षेत्र के खेतों में बारिश के मौसम में जुलाई-अगस्त से लेकर सितंबर माह तक जल जमाव रहता था। उसके बाद सितंबर के अंत तक पानी स्वत: निकल जाता था। इसके बाद टाल क्षेत्र के किसान समय पर दलहन की फसल की बुआई कर लेते थे। मार्च माह के अंत तक तैयार हुए दलहन फसल की कटाई कर लेते थे। अगस्त माह में गंगा एवं हरुहर नदी के जलस्तर में हुई वृद्धि से बड़हिया प्रखंड में आई भीषण बाढ़ से फैला पानी गांव एवं ऊंचे जगहों से तो निकल गया लेकिन पिछले दो माह से निचले टाल क्षेत्र में अभी भी पानी जमा हुआ है। कहीं-कहीं तो खेतों में पानी लगभग पांच फीट तक जमा हुआ है। पानी निकासी की रफ्तार काफी धीमी है। टाल क्षेत्र के दक्षिणी भाग के जानपुर, एजनीघाट, रायपुरा, नरसिघोली, निजाय, टाल शरमा, गिरधरपुर आदि जगह में लगभग एक हजार बीघा से अधिक खेत से पानी निकला है लेकिन इन सब खेतों में अभी भी बुआई 10 दिन के बाद ही शुरू होगा। जानपुर से उत्तर कमरपुर, नथनपुर, फदरपुर, कोठवा, महरामचक, सरौरा, फादिल, पाली, ठरकी, सिमनापर, टांडा पर, दुधपनिया, नहरा, घागा, सकरी से लेकर मोकामा टाल क्षेत्र तक हजारों बीघा खेत में अभी भी पानी भरा हुआ है। कहीं कहीं तो निचले खेतों में पांच-पांच फिट तक पानी जमा हुआ है। अगर एक सप्ताह तक पानी निकल भी जाता है तब भी 15 दिन के बाद ही रबी की बुआई संभव है। ऐसे में अगर विलंब से खेती प्रारंभ होगी तो स्वाभाविक है कि उत्पादन पर इसका असर पड़ेगा।