अमरूद उगाकर नजीर बने रफीक

किशनगंज। जिले के सदर प्रखंड का सिघिया गांव कभी उपेक्षा का शिकार हुआ करता था। एक युवक

By JagranEdited By: Publish:Sun, 08 Dec 2019 10:34 PM (IST) Updated:Mon, 09 Dec 2019 06:12 AM (IST)
अमरूद उगाकर नजीर बने रफीक
अमरूद उगाकर नजीर बने रफीक

किशनगंज। जिले के सदर प्रखंड का सिघिया गांव कभी उपेक्षा का शिकार हुआ करता था। एक युवक की कड़ी मेहनत से अब यह गांव सेंटर ऑफ एट्रेक्शन बन गया है। महानंदा नदी के किनारे बसे इस गांव में धान व मक्का की खेती से लोग गुजारा करते थे। 2010 में रफीक आलम ने सबसे पहले यहां अमरूद की खेती की। शुरुआती तीन साल तक उन्हें काफी नुकसान उठाना पड़ा। इसका गांव वाले मजाक भी बनाने लगे। धुन के पक्के रफीक ने हार नहीं मानी। नतीजा यह है कि आज उनके बगान में काबिली, खाजा, दूधिया खाजा, नदिया, बराईपुर, एल 49, इलाहाबादी, सफेदा समेत अन्य वेरायटी के अमरूद का उत्पादन बड़े पैमाने पर हो रहा है। :- कई किसानों ने शुरू की खेती : रफीक की सफलता से प्रेरित होकर सिघिया गांव के 50 से अधिक किसान अमरूद की खेती करने लगे हैं। सिर्फ सिघिया गांव में ही 200 एकड़ से अधिक जमीन पर अमरूद की खेती होने लगी है। रफीक बताते हैं कि शुरुआती समय बड़ा संघर्षमय रहा। अब परिस्थितियां बदल गई हैं। गांव के अन्य किसान भी अब बड़े पैमाने पर खेती करने लगे हैं। :- महज आठवीं तक की पढ़ाई की : वह बताते हैं कि पारिवारिक स्थिति बेहतर नहीं रहने के कारण उन्होंने महज आठवीं तक की पढ़ाई की। सबसे पहले सिघिया हाट में राइस मिल खोल स्वरोजगार शुरू किया मगर लगातार चार साल तक घाटा लगने की वजह से बंद कर दिया। फिर उन्होंने खेती-किसानी में अलग हटकर कुछ करने की ठानी। पहले तो गांव के ही किसान से लीज पर चार एकड़ खेत में अमरूद का पौधा लगाया। सिलीगुड़ी, जलपाईगुड़ी व अन्य बाजार में कीमत सही नहीं मिलने से हतोत्साहित हुए। चार-पांच वर्षों के संघर्ष के बाद मेहनत रंग लाने लगा तो बाजार में कीमत बेहतर मिलने लगी। इसके बाद अमरूद की कमाई से ही डेढ़ एकड़ जमीन भी खरीदी। अब जाकर वह कुल 5.5 एकड़ जमीन पर खेती कर रहे हैं। :- नौ माह में एक बार लगते हैं फल : विभिन्न प्रजातियों के अमरूद उगा रहे रफीक बताते हैं कि प्रत्येक नौ महीने पर एक बार अमरूद में फल लगते हैं। प्रति पेड़ कम से कम 50-60 किलो फल उत्पादन होता है। प्रति बीघा की दर से देखें तो अगर एक सौ पौधे हों तो कम से कम 50 क्विटल उत्पादन आसान है। अब किशनगंज समेत सीमांचल व बंगाल के आसपास के इलाके में अमरूद की खपत हो जाती है। स्थानीय बाजार में भाव अच्छा मिलने से इसे बाहर भेजने की परेशानी भी नहीं होती है। कृषि विज्ञान केंद्र के कृषि वैज्ञानिक डॉ. हेमंत बताते हैं कि रफीक आलम के अमरूद की खेती को लेकर वीडियो स्टोरी बनाई गई। इसे बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर के द्वारा यू ट्यूब पर डाला गया। अब तक इनकी इस वीडियो स्टोरी को 109 देशों के पांच लाख से अधिक लोगों ने देखा है।

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