चचरी से आती-जाती लाखों की आबादी
विकास के इस दौर में भी जनप्रतिनिधियों व प्रशासनिक उदासीनता के बीच लोग स्वनिर्मित चचरी पुल से आवाजाही करने पर मजबूर हैं।
संवाद सूत्र, बहादुरगंज (किशनगंज) : विकास के इस दौर में भी जनप्रतिनिधियों व प्रशासनिक उदासीनता के बीच लोग स्वनिर्मित चचरी पुल से आवाजाही करने पर मजबूर हैं। जन प्रतिनिधियों का पुल पुलिया के साथ सड़कों का जाल बिछाने का दावा निसंद्रा घाट को देखकर खोखला साबित हो रहा है।
जहां बहादुरगंज-कोचाधामन व टेढ़ागाछ तीन प्रखंडों को जोड़ने वाली निसन्द्रा घाट में एक अदद पुल के बिना राहगीर को 15-20 किमी का चक्कर लगाकर आवाजाही करना पड़ता है। अन्यथा बरसात के दिनों में उफान मारती नदी के तेज धार में छोटी सी नाव के सहारे जान जोखिम में डालकर आना जाना पड़ता है। इस ओर किसी भी जन प्रतिनिधि या प्रशासनिक पदाधिकारियों का ध्यान नहीं जाता है। लाचार वश बारिश के बाद निसंद्रा घाट में क्षेत्र के लोगों द्वारा स्वनिर्मित बांस के चचरी पर आवाजाही करना मजबूरी बन जाता है। असुरा, सातमेढ़ी, होलिया, रूपनी सहित टेढ़ागाछ प्रखंड के ऐसे दर्जनों गांव हैं जो मार्केटिग करने के लिए मुख्य मंडी बिशनपुर, बहादुरगंज या जिला मुख्यालय किशनगंज सहित अन्य जगह जाने का मुख्य मार्ग है। यह मार्ग पश्चिमी क्षेत्र का लाइफ लाइन मार्ग भी कहा जाता है। उसके बावजूद पुल निर्माण नहीं होना खेद की बात है। विडंबना यह भी है कि इस मुख्य घाट का प्रशासनिक स्तर पर डाक कराकर राजस्व तो वसूल किया जाता है, लेकिन सुविधा के नाम पर कुछ भी नहीं है। फलस्वरूप क्षेत्र के लोगों का आक्रोश जन प्रतिनिधियों व प्रशासनिक पदाधिकारियों के ऊपर धीरे-धीरे बढ़ने लगा है जो पुल निर्माण को लेकर कभी भी आक्रोश व धरना प्रदर्शन हो सकता है।