जीविका के प्रयास से ग्रामीण महिलाओं के जीवन में आ रहा बदलाव
किशनगंज। आíथक रूप से पिछड़ेपन का दंश झेल रहे किशनगंज जिले में अब बदलाव की आहट दिखने लगा
किशनगंज। आíथक रूप से पिछड़ेपन का दंश झेल रहे किशनगंज जिले में अब बदलाव की आहट दिखने लगा है। जीविका से जुड़कर ग्रामीण महिलाएं न सिर्फ आजीविका चलाने में सक्षम हो रही हैं बल्कि बच्चों को शिक्षित करने में जुटी हैं। कोई एक दो नहीं बल्कि सैकड़ों महिलाएं स्वरोजगार से जुड़कर अपनी समृद्धि की कहानी लिख रही हैं।
अप्रैल 2016 में राज्य में पूर्ण शराबबंदी लागू होने के बाद राज्य सरकार द्वारा जीविका के माध्यम से अत्यंत निर्धन परिवार की आजीविका के लिए 2018 को सतत जीविकोपार्जन योजना की शुरुआत की गई। इस योजना के माध्यम से अनुसूचित जाति, जनजाति एवं अन्य समुदायों के अत्यंत निर्धन परिवार का वित्तीय सहायता की जा रही है। जीविका के द्वारा ग्रामीण महिलाओं के गरिमामय जीवन यापन के लिए इस योजना के अंतर्गत स्पेशल इंवेस्टमेंट फंड से 10 हजार और लाइवलीहुड इंवेस्टमेंट फंड से 10 हजार की राशि देकर जीवन स्तर में सुधार लाने का प्रयास किया जा रहा है। जीविका द्वारा ग्रामीण स्तर पर गठित समूह सेतु का काम कर रहा है। समूह द्वारा चयनित लाभार्थी को संबंधित क्षेत्र के स्वरोजगार के लिए प्रशिक्षण दिया जा रहा है ताकि किसी की मदद लिए बिना आगे बढ़ सकें। इसके बाद राशि उपलब्ध करा स्वरोजगार शुरू कराया जाता है। इसमें स्थानीय समूह की महिलाएं भी लाभुक को मदद करती हैं।
जीविका के प्रभारी डीपीएम राजेश कुमार बताते हैं कि विगत दो वर्षो में जिले में अब तक 693 गावों के 1789 लाभाíथयों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने में सफलता मिली है। जिसमें 1648 लाभाíथयों को माइक्रो इंटरप्राइजेज, 14 लाभाíथयों को डेयरी और 127 लाभाíथयों को बकरी पालन के लिए भी वित्तीय सहायता उपलब्ध कराया गया है।
केस स्टडी 1 -
किराना दुकान चला रूपो देवी बेटियों को दिला रहीं शिक्षा -
किशनगंज प्रखंड के मोतिहारा गाव की विधवा रूपो देवी पहले दाने दाने को मोहताज थी। तीन बेटियों की परवरिश करना उनके लिए कठिन था। वे बताती हैं कि चार साल पूर्व गाव की जीविका दीदियों के संपर्क मे आई तो उन्हें जीविका समूह से जुड?े के लिए प्रेरित किया गया। फिर उनकी विषम परिस्थिति को देखते हुए 2018 में सतत जीविकोपार्जन योजना का लाभ दिलाया गया। महज 10 हजार से किराना दुकान खोल कर उन्होंने स्वरोजगार अपनाया। दुकान चलाने में बेटिया मदद करती हैं। नवमी कक्षा में पढ?े वाली बेटी अब रोजना स्कूल भी जाती है और दुकान का हिसाब- किताब करने में मदद भी करती है। वे बताती हैं कि अब दुकान से महीने में 7-8 हजार रुपये की आमदनी हो जाती है। जिससे परिवार का भरण-पोषण ठीक से कर पा रही है। बेटी को आगे पढ़ाना चाहती हैं ताकि वह अच्छी नौकरी कर सके।
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केस स्टडी - 2
इसी तरह तहर चाय नाश्ते की दुकान चला रहीं शीला देवी बताती हैं कि प्रतिदिन 200 से 300 रुपये की आमदनी हो जाती है। उनकी इकलौती बेटी जब चार साल की थी तभी पति का देहात हो गया था। घर में कोई और कमाने वाला नहीं था। दयनीय स्थिति में बेटी की परवरिश के लिए माग-चाग कर किसी तरह गुजारा करना पड़ रहा था। पहाड़ समान जीवन जीने के लिए लोगों पर आश्रित थी। जबसे अपनी दुकान खोली है, जरूरत के अनुसार आमदनी के साथ गरिमापूर्ण जीवन जी रहीं हैं। दुकान शुरू करने से खुद पर भरोसा करना, कारोबार की महत्वपूर्ण बातें, बचत, पूंजी, आदि का जानकारी जीविका के द्वारा दिया गया। अब भोजन व कपड़े के लिए किसी के उपर आश्रित नहीं रहना पड़ता है।