शारदीय नवरात्र पर उमड़ा श्रद्धा का सागर
खगड़िया। शारदीय नवरात्र का काफी महत्व है। जो कलश स्थापन के साथ आरंभ हो गया है। नवरात्र
खगड़िया। शारदीय नवरात्र का काफी महत्व है। जो कलश स्थापन के साथ आरंभ हो गया है। नवरात्र के पूजन में सभी दिनों का अलग- अलग महत्व है। नौ दिनों में देवी के नौ रूपों के पूजन के साथ पूजन सामग्री, फूल व नवैद्य का भी अलग अलग महत्व है। कलश स्थापन के साथ जयंती बोने की परंपरा है। जिसमें जौ की विशेष महत्ता है। रविवार को श्रद्धालुओं ने मां के चौथे स्वरूप कूष्मांडा की पूजा-अर्चना की। इस मौके पर शहर से लेकर गांवों तक में भक्ति की गंगा प्रवाहित होती रही। दुर्गा मंदिरों में अल सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ देखी गई। प्रसिद्ध शक्ति पीठ मां कात्यायनी स्थान में दूर-दूर से आकर श्रद्धालुओं ने पूजा-अर्चना की। यहां शारदीय नवरात्र में प्रतिदिन श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है।
पंडित दामदोर झा के अनुसार नवरात्र के पांचवें दिन देवी के पांचवें रूप स्कंदमाता की पूजा होती है। जिसमें श्वेत व पीला पुष्प व अन्य सामग्री के साथ नवैद्य में केला का होना आवश्यक है। इनके पूजन से इच्छापूर्ति व मोक्ष की प्राप्ति होती है। छठे रूप में मां कात्यायनी की पूजा होती है। इनके पूजन में शहद का विशेष महत्व है। इनके पूजन से मनवांक्षित फल की प्राप्ति होती है। समृद्धि आती है। इस बार एक ही तिथि में पंचमी और षष्ठी है।
सातवें रूप कालरात्रि की पूजा होती है। इनके पूजन में लाल पुष्प के साथ नवैद्य में गुड़ आवश्यक है। इनके पूजन से अग्नि, जल, शत्रु सहित सभी भय का नाश होता है। वहीं आठवें रूप महागौरी की पूजा होती है। इनके पूजन में कमल का फूल व गाय के घी का विशेष महत्व है। इनके पूजन से मनवांक्षित फल व आयु की प्राप्ति होती है। वहीं नवमी के दिन देवी के नवम रूप सिद्धिदात्री की पूजा होती है। जिसमें द्रोण पुष्प यानी शुंभा के फूल के साथ धान के लावे का महत्व है। इनके पूजन से मानव के सभी कार्यों की सिद्धि होती है। वहीं सभी रूपों के पूजन के साथ दुर्गा सप्तशति का पाठ भी आवश्यक है। इस पाठ से मां दुर्गा का आशीर्वाद रूपी कवच प्राप्त होता है और दुख, कष्ट व अमंगल से रक्षा होती है।