आषाढ़ के मेघ के साथ एक लाख लोगों के बीच बज जाता है अलार्म

खगड़िया । कोसी काली कोसी और बागमती नदियों से घिरे फरकिया की कई पंचायतों (चौथम प्रखंड

By JagranEdited By: Publish:Fri, 30 Jul 2021 07:26 PM (IST) Updated:Fri, 30 Jul 2021 07:26 PM (IST)
आषाढ़ के मेघ के साथ एक लाख लोगों के बीच बज जाता है अलार्म
आषाढ़ के मेघ के साथ एक लाख लोगों के बीच बज जाता है अलार्म

खगड़िया । कोसी, काली कोसी और बागमती नदियों से घिरे फरकिया की कई पंचायतों (चौथम प्रखंड की रोहियार, बुच्चा, सरसवा, ठुठ्ठी मोहनपुर व चौथम तथा हरदिया का एक हिस्सा और बेलदौर की कंजरी) की लगभग एक लाख के आसपास की आबादी के लिए आषाढ़ के मेघ के साथ ही संकट शुरू हो जाता है। आषाढ़ से लेकर भादो तक यहां जिदगी ठहर जाती है। सावन का महीना पवन करे शोर के बदले यहां कखन हरब दुख मोर हे भोलेनाथ, के स्वर सुनाई पड़ते हैं। एक लाख की आबादी चहुं ओर से बाढ़ का पानी से घिर जाता है। नाव से ही कहीं आवागमन होता है। इसलिए यहां चारपहिया वाहन नहीं बल्कि नाव सामाजिक प्रतिष्ठा का द्योतक है। चंदा कर ग्रामीण बनवाते हैं नाव

यहां के ग्रामीण चंदा कर नाव बनवाते हैं। ठुठ्ठी मोहनपुर पंचायत की एक गांव है अग्रहण। यहां की आबादी एक हजार के आसपास है। यहां के नितिन पटेल कहते हैं- गांव में नाव नहीं थी, हमलोगों ने चंदा कर नाव बनवाया। अब गांव से बाहर आने-जाने का एकमात्र सहारा यह नाव ही है। फरकिया का बंगलिया नाव उद्योग का केंद्र बन चुका है। आवागमन की असुविधा के कारण चली जाती है जान

अग्रहण के नितिन पटेल ने बताया कि कुछेक दिनों पहले एक युवक विकास कुमार की मौत इसलिए हो गई, क्योंकि समय पर उन्हें इलाज मुहैया नहीं हुआ। पूरा गांव बाढ़ के पानी से घिरा हुआ है। सोनवर्षा गांव के रौशन यादव ने बताया कि 2014 में वहां के मंगल यादव की इसलिए मौत हो गई, क्योंकि अस्पताल जाने का कोई साधन नहीं था। रौशन कहते हैं- अभी फुल बाढ़ (चहुं ओर पानी ही पानी) है। बलकुंडा घाट से धमारा घाट नाव से जाने में एक घंटा लगता है। रात-बिरात कोई बीमार पड़ता है, तो सुबह होने की प्रतीक्षा करनी पड़ती है। सोनवर्षा में मात्र एक नाव पांडव यादव के पास है। जो संकट के समय काम आता है।

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