आज खुलेगा श्री चतुर्भुजी मां दुर्गा मंदिर बिशौनी का पट

खगड़िया। शारदीय नवरात्र को लेकर घर घर में भक्ति का माहौल बना हुआ है। मां के नौ रूपों

By JagranEdited By: Publish:Wed, 21 Oct 2020 10:41 PM (IST) Updated:Thu, 22 Oct 2020 05:05 AM (IST)
आज खुलेगा श्री चतुर्भुजी मां दुर्गा मंदिर बिशौनी का पट
आज खुलेगा श्री चतुर्भुजी मां दुर्गा मंदिर बिशौनी का पट

खगड़िया। शारदीय नवरात्र को लेकर घर घर में भक्ति का माहौल बना हुआ है। मां के नौ रूपों में से पांच रूपों की आराधना हो चुकी हैं। छठे रूप कात्यायनी की पूजा आज होगी। परबत्ता प्रखंड के बिशौनी गांव में स्थित श्री चतुर्भुजी दुर्गा की प्रतिमा गुरुवार की संध्या में शंख, घंटा और मां की जयकार के साथ पिडी पर विराजमान किया जाएगा।

इसके साथ ही आमलोगों के दर्शन के लिए मंदिर के पट खोल दिए जाएंगे। ----------

अधिवास पूजा से ही होता हैं मां का आह््वान

शारदीय नवरात्र में अधिवास पूजन का विशेष महत्व है। पंडित प्राण मोहन कुंवर, पंडित मनोज कुंवर और आचार्य उत्कर्ष गौतम उर्फ रिकू झा बताते हैं कि षष्ठी के दिन संध्या में श्रृंगार से भरी डाली को लेकर मां दुर्गा को आह््वान किया जाता है। जिसे आमतौर पर अधिवास पूजा कहते हैं। वहीं सप्तमी के दिन उक्त श्रृंगार से भरी डाली का उपयोग मां भगवती की प्रतिमा का प्राण प्रतिष्ठा में किया जाता हैं। उस दिन से मां भगवती की पूजा वृहत रूप से प्रारंभ हो जाती हैं। इसके बाद दर्शन पूजन को भक्तों की भीड़ उमड पड़ती हैं। इधर, बिशौनी गांव निवासी मुकेश मिश्र ने बताया कि मंदिर में थर्मल स्क्रीनिग बाद ही श्रद्धालुओं को प्रवेश दिया जाता है।

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पौराणिक कथा

शास्त्रों के अनुसार सभी देवी-देवता दक्षिणायान काल में निद्रा में होते हैं। चूंकि दुर्गा पूजा उत्सव साल के मध्य में दक्षिणायान काल में आता है, इसलिए देवी दुर्गा को बोधन के माध्यम से नींद से जगाया जाता है। बताया जाता है कि भगवान श्रीराम ने सबसे पहले आराधना करके देवी दुर्गा को जगाया था और इसके बाद राक्षस राज रावण का वध किया था। चूंकि देवी दुर्गा को असमय नींद से जगाया जाता है, इसलिए इस क्रिया को अकाल बोधन भी कहते हैं। बोधन की परंपरा में किसी कलश या अन्य पात्र में जल भरकर उसे बिल्व वृक्ष के नीचे रखा जाता है। बिल्व पत्र का शिव पूजन में बड़ा महत्व होता है। बोधन की क्रिया में मां दुर्गा को निद्रा से जगाने के लिए प्रार्थना की जाती है। उसके बाद अधिवास और आमंत्रण की परंपरा निभाई जाती है। देवी दुर्गा की वंदना को आह्वान के तौर पर भी जाना जाता है। बिल्व निमंत्रण के बाद जब प्रतीकात्मक तौर पर देवी दुर्गा की स्थापना कर दी जाती है, तो इसे आह्वान कहा जाता है, जिसे अधिवास के नाम से भी जाना जाता

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कल निशा पूजन

बिशौनी गांव स्थित श्री चतुर्भुज दुर्गा मां के मंदिर में प्रतिवर्ष शारदीय नवरात्र के दौरान किये जाने वाले निशा पूजन का एक अलग ही महत्व है। मां शक्ति के सातवें रुप को कालरात्रि के रुप में जाना जाता है। कल शुक्रवार को सप्तमी को मां का महास्नान कराया जाता है। इसी दिन रात में निशा पूजा का आयोजन होता है। मंदिर के मुख्य पुजारी की देखरेख में निशा पूजा का आयोजन किया जाता है। इस पूजा की शुरुआत 12 बजे रात में होती है, जो अगले दो घंटे तक चलती है। ऐसी मान्यता है कि इस पूजन को देखने मात्र से मनोकामनाएं पूर्ण होती है तथा मां का आशीर्वाद मिलता है। इस पूजा को देखने के लिये प्रतिवर्ष काफी संख्या में श्रद्धालु मंदिर में जुटते हैं। ऐसी मान्यता है कि मां जिस भक्त पर प्रसन्न होती हैं उसे ही निशा पूजा देखने का सौभाग्य प्राप्त होता है।जिन पर मां की कृपा नहीं होती है, वे पूजा शुरु होने तक स्वयं को रोक नहीं सकते हैं और निद्रा के आगोश में चले जाते हैं। पूजा के समापन पर भक्तों को प्रसाद दिया जाता है। इस प्रसाद को प्राप्त करने वालों को उसी समय बिना रुके अपने घर जाना पड़ता है तथा उसे प्रसाद देना पड़ता है, जिसके लिए मन्नत मांगी गई है। निशा पूजा देखने एवं प्रसाद प्राप्त करने के परिणामों के दर्जनों किस्से इलाके के लोगों की जुबान पर है।

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