यहां बसता है यूपी का एक बड़ा गांव

कटिहार। पावन गंगा के तट पर बसे जिले के मनिहारी अनुमंडल मुख्यालय में ठेठ भोजपुरी की गू

By JagranEdited By: Publish:Sun, 27 Sep 2020 04:29 PM (IST) Updated:Sun, 27 Sep 2020 04:29 PM (IST)
यहां बसता है यूपी 
का एक बड़ा गांव
यहां बसता है यूपी का एक बड़ा गांव

कटिहार। पावन गंगा के तट पर बसे जिले के मनिहारी अनुमंडल मुख्यालय में ठेठ भोजपुरी की गूंज में एक सुंदर इतिहास भी दफन है। इस परिक्षेत्र में पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश का एक गांव भी बसता है। लगभग हजार परिवारों की इस टोली का निवास कभी यूपी के बलिया जिले में था। सन 1857 के विद्रोह के बाद अंग्रेजी हुकूमत की क्रूर कार्रवाई के बाद इन परिवारों के पूर्वज उस कोप से बचने के लिए यहां आकर बसे थे और फिर यहीं के होकर रह गए..। आज मनिहारी की पहचान उन वाशिदों से भी है।

बनफूल की कृति मनिहारी में भी है जिक्र

बांग्ला साहित्यकार सह मनिहारी निवासी पद्य विभूषण डॉ. बलायचंद मुखोपाध्याय उर्फ बनफूल की कृति मनिहारी में यूपी के इन वाशिदों की बातों का उल्लेख है। इसमें उस दौरान बच्चों की पढ़ाई के लिए यूपी के लोगों की जतन का उल्लेख है। यह भी बताया गया है कि मनिहारी के फलने-फूलने में इन शरणार्थियों ने किस तरह अहम भूमिका निभाई है।

भाषा और संस्कृति पर छोड़ चुके है अमिट छाप

अधिवक्ता सह यूपी के मूल निवासी प्रद्युम्न ओझा कहते हैं कि इस बसाव का एक लंबा इतिहास है। पहले मनिहारी का इलाका पूर्ण अरण्य हुआ करता था। अग्रेजों के अत्याचार से बचने को उनके पूर्वज यहां पहुंचे थे और फिर इसी जंगल में अपना बसेरा बनाया था। उस जमाने में मनिहारी महत्वपूर्ण बंदरगाह हुआ करता था। साथ ही रेल विकास की ²ष्टि से यह क्षेत्र समृद्ध होने लगा था। इससे रोजी-रोटी का माध्यम भी लोगों को मिलता गया। उनकी भाषा भोजपुरी आज यहां के अधिसंख्य लोगों की भाषा बन चुकी है। शादी-ब्याह से लेकर पर्व त्योहार मनाने के तौर-तरीके भी शनै: शनै: यहां के समाज में भी बंटते चले गए।

मनिहारी के चतुर्दिक विकास में रही है अहम भागीदारी

लगभग 1885 के आसपास यहां पहुंचे इन परिवारों की मनिहारी की आर्थिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक और सामाजिक विकास में भी अहम भागीदारी रही है। उस काल स्व. पंडित दुर्गा ओझा द्वारा बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा के लिए वर्तमान बाजार मंदिर के समीप विद्यालय की शुरुआत की थी। सुरेन्द्र भगत कहते हैं कि उनके पूर्वज ने मनिहारी को नई दिशा दी थी। उनके पूर्वज सीताराम भगत का गल्ला और किराना दुकान इस इलाके में अपनी अहमियत रखता था। उनके परिवार की पुत्रवधू लखी देवी मनिहारी नगर पंचायत की मुख्य पार्षद रह चुकी है। अभी भी वे वार्ड पार्षद हैं। 90 वर्षीय शिवगोपाल पांडे कहते है कि उनके पूर्वज ने जंगल को आबाद कर किसानी शुरु की थी। आज यहां की किसानी अपनी अलग पहचान रखती है। स्वतंत्रता संग्राम में भी इन परिवारों की भागीदारी रही। स्व. नरसिंह पांडेय को जहाज लूटने में जुर्माना देना पड़ा था। इन परिवारों के लोग आज बड़े-बड़े पद पर भी हैं। क्षेत्र में मंदिर, स्कूल निर्माण से लेकर संगीत, कला व खेल को नया आयाम देने में भी लोग अहम भागीदारी निभाते रहे हैं।

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