चुनाव आते ही बढ़ती है प्रवासियों की पूछ

कटिहार। विधानसभा चुनाव का बिगुल फूंका जा चुका है और इसको लेकर राजनीतिक दलों की सक्रि

By JagranEdited By: Publish:Mon, 28 Sep 2020 05:20 PM (IST) Updated:Mon, 28 Sep 2020 05:20 PM (IST)
चुनाव आते ही बढ़ती है प्रवासियों की पूछ
चुनाव आते ही बढ़ती है प्रवासियों की पूछ

कटिहार। विधानसभा चुनाव का बिगुल फूंका जा चुका है और इसको लेकर राजनीतिक दलों की सक्रियता भी बढ़ने लगी है। माहौल पर भी चुनावी रंग चढ़ने लगा है। इस बार कटिहार जिले में विस चुनाव तीसरे चरण में होने की घोषणा हुई है। त्योहार का मौसम होने के कारण काफी संख्या में प्रवासी मजदूरों की भी घर वापसी होगी। प्रवासी मजदूरों की बड़ी संख्या भी यहां चुनावी गणित बदलती रही है। इसके कारण प्रवासी मजदूरों पर नेताजी का विशेष ध्यान रहता है।

बताते चलें कि जिले में चार लाख के करीब प्रवासी मजदूर हैं जो मुख्यत: त्योहारों के मौसम में घर लौटने हैं। काफी संख्या में मजदूरों के पहुंचने के कारण चुनावी गणित पर भी इसका प्रभाव पड़ता है। यही वजह है कि चुनाव आते ही प्रवासियों की फिक्र दिखने लगी है। चुनाव की घोषणा के बाद हलचल बढ़ने के कारण संभावित प्रत्याशी गली और दलान मापने लगे हैं, लेकिन उनकी पहली प्राथमिकता प्रवासी मजदूरों को साधने की होती है। यही वजह है कि नेताजी घर से बाहर रहने वाले सदस्यों का न केवल कुशल क्षेम पूछ रहे हैं, वरन उन्हें मोबाइल पर संपर्क कर अबकी चुनाव में आने की दावत भी दे रहे हैं। वर्षों तक मुफलिसी की जिदगी जीने वाले प्रवासी मजदूरों की बढ़ी पूछ फिलहाल उनके पल्ले भी नहीं पड़ रही है।

प्रवासियों को रिझाने की होती है भरपूर कोशिश :

चुनावी मौसम में प्रवासियों को रिझाने और उनको साधने की भरपूर कोशिश होती है। इस दौरान उनका दु:ख दर्द बांटने से लेकर परिवार की चिता और फिक्र भी खूब दिखती है। प्रवासियों के आगमन की सूचना के बाद उनके दरवाजे पर प्रत्याशियों की चहल-कदमी भी खूब बढ़ती है। यद्यपि इस बार कोरोना संक्रमण के कारण काफी संख्या में प्रवासी मजदूर लौटे हैं, लेकिन अपने घर रोजगार की समस्या उनके पांव नहीं रोक पा रही है। इसको लेकर भी नेताजी उन्हें चुनाव और त्योहार का हवाला देकर उन्हें रोकने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं।

रोजगार की समस्या के कारण पलायन बनी मजबूरी :

बताते चलें कि हर चुनाव के दौरान प्रवासियों की फिक्र बढ़ती है। स्थानीय से लेकर राज्य और राष्ट्रीय स्तर के नेता पलायन के मुद्दे को अपने भाषण में खूब भुनाते हैं। अपने घर रोजगार देने का वादा और आश्वासन देकर उन्हें रिझाने की कोशिश कर चुनावी सफर पार किया जाता रहा है। लेकिन मजबूरी व विवशता के कारण पलायन का दर्द झेल रही बड़ी आबादी की फिक्र अबतक पूरी तरह ओझल है।

क्या कहते हैं प्रवासी मजदूर :

रोजगार के लिए परदेस जा रहे मुकेश सहनी, दिलीप ऋषि, शंकर महतो, चंदन कुमार, आशिक इकबाल, मुर्तजा, दानिश आदि ने बताया कि अबतक महज चुनावी माहौल में ही उनकी सुधी ली जाती है, लेकिन यहां रोजगार सृजन का कोई अवसर तैयार नहीं हो पाया है। इस बार कोरोना और बाढ़ के कारण सबकुछ बर्बाद हो चुका है, रोजगार के लिए पलायन करना उनकी मजबूरी है, चुनाव में लौटना शायद ही उनके लिए संभव हो।

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