1870 में हुई थी सलेमपुर काली मंदिर की स्थापना

कटिहार। प्रखंड के खैरा पंचायत स्थित सलेमपुर काली मंदिर की प्रसिद्धी मनोकामना सिद्धि मंदिर के रु

By JagranEdited By: Publish:Mon, 21 Oct 2019 10:06 PM (IST) Updated:Mon, 21 Oct 2019 10:06 PM (IST)
1870 में हुई थी सलेमपुर काली मंदिर की स्थापना
1870 में हुई थी सलेमपुर काली मंदिर की स्थापना

कटिहार। प्रखंड के खैरा पंचायत स्थित सलेमपुर काली मंदिर की प्रसिद्धी मनोकामना सिद्धि मंदिर के रुप में है। अति प्राचीन इस मंदिर से लोगों की असीम आस्था जुड़ी हुई है। यहां दूर-दूर से लोग पूजा अर्चना को पहुंचते हैं।

मंदिर का इतिहास :

सलेमपुर काली मंदिर की स्थापना 1870 ई. में हुई थी। गांव के बुजुर्गों के अनुसार उस समय गांव के ही स्व. बबुआ झा पूर्णिया पूरण देवी मंदिर से मिट्टी लेकर भैंसा गाड़ी से अपने गांव आ रहा था। वे जैसे ही सलेमपुर गांव पहुंचे तो मंदिर वाले स्थान पर ही भैंसा गाड़ी का धुरी टूट गया। ग्रामीणों के द्वारा उसे उठाने का प्रयास किया गया, लेकिन वे लोग उसे नहीं उठा पाए। इस स्थिति में ग्रामीणों ने वहीं मिट्टी डालकर पिडी की स्थापना कर दी। लोगों के अनुसार बबुआ झा को मां काली ने सपना दिया की मेरी स्थापना वहीं पर किया जाय। ऐसे में ग्रामीणों ने वहीं मंदिर की स्थापना कर दी। उस समय यहां फूस का मंदिर था, अब आकर्षक मंदिर का निर्माण यहां हो चुका है। यहां पर भैंस का बली दी जाती है। जो लोग सच्चे मन से मन्नत मांगते है उसकी मनोकामनाएं पूरी होती है। यहां पर मैया को चुनरी चढ़ाया जाता है, वहीं यहां पर श्रद्धालुओं के साथ-साथ दूर-दूर से लोग बली चढ़ाने आते हैं। यह मनोकामना सिद्धि मंदिर है। जमींदार स्व. प्यारे लाला झा, मोहनलाल झा, महंथ झा के सहयोग से मंदिर का स्थापना किया गया था।

क्या कहते हैं ग्रामीण :

वहीं ग्रामीण ललित झा व लड्डू झा ने बताया कि उनके पूर्वजों द्वारा मंदिर की स्थापना की गई थी। तदुपरांत उन लोगों द्वारा भव्य मंदिर का निर्माण किया गया। यहां पर भव्य मेला भी लगता है। साथ ही काली पूजा के मौके पर सांस्कृतिक कार्यक्रम का भी आयोजन किया जाता है। गांव के त्रिकोणीय भाग में मंदिर की स्थापना की गई है, जो पवित्र माना जाता है।

क्या कहते हैं पुजारी :

मंदिर के पुजारी आचार्य प्रदीप कुमार झा, पंडित रतनेशवर झा व इन्द्रदेव ठाकुर का कहना है कि जबसे मंदिर की प्रतिमा बिठाई जाती है, तबसे ग्यारह अखंड दीप प्रतिमा विसर्जन तक जलता रहता है। वहीं सतचंडी पाठ किया जाता है। जो श्रद्धालु सच्चे मन से मन्नतें मांगते हैं, उनकी मुरादें पूरी होती है। वहीं मां काली को चुनरी चढ़ाकर मां को प्रसन्न किया जाता है।

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