बाढ़ की मार के साथ खरपतवार भी चट करता है 30 फीसद उत्पादन
कटिहार। जिले में धान किसानों की मुख्य फसल है और औसतन 78 हजार हेक्टेयर में धान की फ
कटिहार। जिले में धान किसानों की मुख्य फसल है और औसतन 78 हजार हेक्टेयर में धान की फसल लगती है। लेकिन धान के रकवे का एक बड़ा हिस्सा प्रतिवर्ष बाढ़ की भेंट चढ़ जाता है। इस बार मानसून बेहतर रहने के कारण किसानों को अच्छी पैदावार की उम्मीद थी, लेकिन लगातार नदियों का जलस्तर बढ़ने के कारण पानी का फैलाव होने से धान की फसल को काफी नुकसान हुआ है। बाढ़ की विभिषिका के साथ कीट व्याधी व खरपतवार का प्रकोप किसानों की मिहनत पर पानी फेरता रहा है।
धान की खेती के लिए अब भी बड़ी संख्या में किसान पारंपरिक विधि पर निर्भर हैं। इस कारण उन्हें बेहतर उत्पादन नहीं मिल पाता है। खेतों में खरपतवार की अधिकता के कारण किसानों को अतिरिक्त खर्च का वहन करना पड़ता है। आंकड़ों के अनुसार धान की खेती में 30 फीसदी उत्पादन खरपतवार की भेंट चढ़ जाते हैं। खरपतवार के कारण कीट-व्याधी का भी प्रकोप बढ़ता है। बाढ़ के कारण इसका प्रकोप और बढ़ जाता है। किसान इसके लिए शुरूआती प्रबंधन कर इसे हद तक नियंत्रित कर सकते हैं।
धान की फसल के लिए संवेदनशील हैं 45 दिन :
धान की फसल में खरपतवार किसानों की एक प्रमुख समस्या है। विशेषज्ञों की मानें तो धान की फसल के लिए 45 दिन का समय संवेदनशील माना जाता है। इस दौरान खरपतवार का प्रकोप सबसे अधिक रहता है, जिसका नियंत्रण नहीं होने पर यह फसल को प्रभावित कर उत्पादन का ह्रास करते हैं। इसके कारण किसानों की मेहनत और पूंजी दोनों का नुकसान होता रहा है और औसत उत्पादन भी प्रभावित होता रहा है। इस बार बाढ़ का प्रकोप बढ़ने के कारण धान की फसल की विशेष देखभाल की जरुरत है।
इन कारणों से गंभीर होती है समस्या :
धान की फसल की रोपनी के बाद औसतन चार से 12 किलोग्राम नेत्रजन, एक से 13 किलोग्राम फॉस्फोरस, सात से 14 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से शोधित किया जाता है। इसके कारण खरपतवार अधिक सक्रिय होते है और कीट व्याधी का भी प्रकोप तेजी से बढ़ता है। जो फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं। इसकी रोकथाम के लिए किसान खरपतवार नाशी रसायनों का प्रयोग कर सकते हैं। इसके साथ ही धान के खेत में खरपतवार का प्रयोग रोकने के लिए प्रमाणिक बीज का प्रयोग, रोगराधी पौधे का चुनाव और नालियो की सफाई के साथ ही शुरूआती प्रबंधन का ध्यान रखना जरुरी है।
खरपतवार नियंत्रण के लिए कारगर है यांत्रिक विधि :
खरपतवार नियंत्रण के लिए यांत्रिक विधि काफी प्रभावी है। इसके तहत खेतों में खरपतवार बढ़ने पर इसे खुरपी या हाथों की सहायता से हटाया जाता है। सीधी बुआई वाली फसलों में पैडीवीडर चलाकर इसे नियंत्रित किया जा सकता है। श्रीविधि से की गई खेती में 10 से 15 दिनों के अंतराल पर कोनोवीडर चलाना चाहिए। धान की फसल में पहली निराई 20 से 25 दिन और दूसरी निराई 40 से 45 दिनों में करने से खरपतवार का प्रकोप हद तक कम किया जा सकता है। शुरूआती देखभाल कर किसान खरपतवार के नुकसान से निजात पा सकते हैं।