नदियों के फुंफकारते ही धराशाई हो जाती है तैयारी

कटिहार। गंगा महानंदा और कोसी की गोद में बसे कटिहार जिले में बाढ़ का साथ चोली-दामन का

By JagranEdited By: Publish:Thu, 02 Jul 2020 07:08 PM (IST) Updated:Thu, 02 Jul 2020 07:08 PM (IST)
नदियों के फुंफकारते ही धराशाई हो जाती है तैयारी
नदियों के फुंफकारते ही धराशाई हो जाती है तैयारी

कटिहार। गंगा, महानंदा और कोसी की गोद में बसे कटिहार जिले में बाढ़ का साथ चोली-दामन का रहा है। अमूमन यहां हर वर्ष बाढ़ आती है। इसको लेकर प्रशासनिक कसरत भी कई माह पूर्व से ही शुरू हो जाती है। बैठक और तैयारी का दौर कई माह पूर्व से चलता है और हर बार मुकम्मल तैयारी का दावा किया जाता है। परंतु बाढ़ आने के बाद प्रशासनिक तैयारी धरी की धरी रह जाती है और लोग मुश्किलों से जंग लड़ते हैं।

बाढ़ से बचाव हो या कटाव निरोधी कार्य जलस्तर में वृद्धि के बाद प्रशासन के हाथ पांव फूलने लगते हैं। इस बार समय पूर्व आई बाढ़ ने बेचैनी बढ़ा दी है। महानंदा के जलस्तर में वृद्धि के साथ ही स्परों पर दबाव बढ़ने के बाद आनन फानन में व्यवस्था शुरू की गई। हालांकि अबतक तटबंध को नुकसान नहीं हुआ है, लेकिन कटाव निरोधी कार्य की खामी के कारण कई स्थानों पर जलस्तर घटने के साथ ही कटाव का खतरा मंडराने लगा है। वहीं पानी का फैलाव होने के बाद लोग खुद सुरक्षित स्थानों की तलाश में जुट गए हैं। बाढ़ के साथ ही खेतिहर जमीन सहित कई विद्यालयों पर भी कटाव का खतरा मंडरा रहा है।

हर साल आवागमन की दुरुह समस्या झेलते हैं लोग :

कहने को तो बाढ़ के पूर्व नाव की मुकम्मल व्यवस्था जिला प्रशासन की ओर से किया जाता है। लेकिन हर साल बाढ़ के बाद लोग आवागमन की समस्या दुरुह होती है। इस बार भी कटिहार-पूर्णिया पथ पर आवागमन बाधित होने के बाद निजी नाव का परिचालन पहले प्रारंभ हो चुका था, जबकि जिलाधिकारी के पहल पर सरकारी नाव की व्यवस्था की गई। कमोवेश अन्य स्थानों की भी यही स्थिति है। बाढ़ के बाद सड़क संपर्क भंग होने के कारण लोग आवागमन के लिए प्राइवेट नाव पर निर्भर हो जाते हैं और यह उनकी विवशता भी होती है।

प्रभावितों को रहता है पॉलिथिन शीट का इंतजार :

प्रशासनिक तैयारी के अनुसार बाढ़ को लेकर पॉलिथिन शीट की व्यवस्था की गई है। कदवा, बारसोई, प्राणपुर, आजमनगर, बलरामपुर आदि प्रखंडों में पानी का फैलाव होने के कारण लोग सड़क व ऊंची जगहों पर शरण लेने लगे हैं। मौसम की बेरुखी और बारिश के कारण खुले आसमान के नीचे रहना उनके लिए मुसीबत बन रहा है। लेकिन बाढ़ के कारण विस्थापित हो रहे लोगों को सरकारी मदद व पॉलिथिन शीट मिलने का इंतजार रहता है। कई दिनों तक धूप व बरसात झेल लोग मदद के लिए टकटकी लगाए रहते हैं।

पशुचारा का प्रबंध लेकिन भूख से बिलबिलाते हैं पशु :

बाढ़ का पानी फैलने के बाद पशुपालकों की समस्या भी गंभीर रहती है। लोग अपने साथ पशुओं को लेकर सुरक्षित स्थान की ओर पलायन करते हैं। चारों ओर पानी का फैलाव रहने के कारण पशुचारा की व्यवस्था मुश्किल होती है। हरा चारा के साथ सूखा चारा का प्रबंध मुश्किल होता है। खासकर तटबंध के भीतर व समीप स्थित इलाकों में समस्या गंभीर होती है। हालांकि बाढ़ को लेकर पशुचारा का प्रबंध तो किया जाता है। लेकिन इसके वितरण में देरी व समुचित व्यवस्था नहीं होने के कारण बेजुबान कई दिनों तक भूख से बिलबिलाते रहते हैं।

अबतक की प्रशासनिक तैयारी एक नजर में :

- नाव - 604

- मोटबरबोट - 05

- पॉलिथिन शीट - 14532

- मोटरबोट ड्राइवर - 02

- प्रशिक्षित गोताखोर - 93

- राहत बचाव दल - 146

- चिन्हित शरणस्थल - 432

- लाइफ जैकेट - 263

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