शहीदों की अमरगाथा का प्रतीक है देवीपुर गांव

कटिहार। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में कुर्सेला की भी ख्याति रही है। स्वतंत्रता संग्राम के द

By JagranEdited By: Publish:Wed, 12 Aug 2020 05:33 PM (IST) Updated:Wed, 12 Aug 2020 05:33 PM (IST)
शहीदों की अमरगाथा का प्रतीक है देवीपुर गांव
शहीदों की अमरगाथा का प्रतीक है देवीपुर गांव

कटिहार। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में कुर्सेला की भी ख्याति रही है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अंग्रेजों के विरूद्ध रणनीति तैयार करने का यह मुख्य केंद्र माना जाता है। 13 अगस्त, 1942 को देवीपुर गांव में अंग्रेजों की गोली से पांच क्रांतिकारी शहीद हुए थे। लालजी मंडल, धतूरी मोदी, रमचू यादव, जागेश्वर महलदार एवं नटाय परिहार ने देश की आजादी के लिए अपने सीने पर गोली खाई थी। शहीदों की स्मृति में यहां पिछले सात दशक से 13 अगस्त के दिन शहादत दिवस मनाया जाता है। मुंबई के ग्वालिया टैंक मैदान में गांधी जी के करो या मरो के नारे ने स्थानीय क्रांतिकारियों को भी उद्वेलित कर दिया था। क्रांतिकारियों ने कुर्सेला के समीप रेल पटरी उखाड़ने की योजना बनाई गई। गुप्त सूचना देकर क्रातिकारियों को देवीपुर के समीप इकट्ठा किया गया। लेकिन अंग्रेजों को इस रणनीति की जानकारी किसी मुखबिर ने दे दी। हाथों में तिरंगा लिए क्रांतिकारियों का जत्था रेलवे ट्रैक की ओर बढ़ा। अंग्रेज सिपाहियों ने क्रातिकारियों पर गोली चलानी शुरू कर दी। पहली गोली नटाय परिहार को लगी, वे वहीं शहीद हो गए। अंग्रेजों ने कुर्सेला एवं इसके आस पास के इलाके के लोगों को क्रांतिकारियों का साथ देने के लिए यातना देनी शुरू की। पूर्व राज्यसभा सदस्य नरेश यादव बताते हैं कि अंग्रेजों ने ट्रेन का इंजन को चालू कराने के लिए क्षेत्र के गणमान्य लोगों को यातना के नाम पर दो किमी दूर से पानी लाकर इंजन में डालने को कहा था। अंग्रेज पुलिस ने पानी टंकी सहित कई हैंडपंप को तोड़ पानी तक के लिए लोगों को तरसा दिया था। कई दिनों तक कोसी नदी का पानी पीकर लोगों ने अपनी प्यास बुझाई थी। भारत छोड़ो आंदोलन में 13 अगस्त 1942 को मुंसफ कोर्ट पर तिरंगा फहराने के दौरान 13 वर्षीय क्रातिकारी ध्रुव कुंडु को अंग्रेजों की गोली लगी थी। दूसरे दिन ध्रुव कुंडु का इलाज के दौरान निधन हो गया था। शहीद चौक के नाम से यह स्थान जाना जाता है। शहीदों की याद में नगर निगम कार्यालय के समीप शहीद स्तंभ का निर्माण कराया गया है।

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