यहां आयरन दे रहा नीली क्रांति को झटका
कटिहार। मछली मखान व पान के लिए देशभर में जाना जानेवाला कोसी व सीमांचल के जिलों की पानी मे
कटिहार। मछली, मखान व पान के लिए देशभर में जाना जानेवाला कोसी व सीमांचल के जिलों की पानी में आयरन की अत्यधिक मात्रा से मत्स्यपालन को झटका लग रहा है। मानक से अधिक आयरन होने से इसका सीधा असर मछलियों की प्रजनन क्षमता पर होता है। आयरन के कारण मछलियों का एग मेंम्ब्रेन समय पर नहीं फटने के कारण निषेचन नहीं हो पाता है। हेचरी निर्माण योजना पर भी आयरन का ग्रहण लग रहा है। हेचरी के लिए 0.5 पीपीटी पानी होना चाहिए। आयरन का मानक स्तर अधिक होने के कारण हेचरी निर्माण नहीं हो पा रहा है। मत्स्यपालन के लिए डंडखोरा के सौरिया में 48 लाख की लागत से बनाया गया हेचरी भी आयरन की अत्यधिक मात्रा के कारण बेकार पड़ा हुआ है। जिले में हेचरी नहीं होने से अंडा व स्पर्म भी स्थानीय स्तर पर तैयार नहीं हो पा रहा है। इस कारण मत्स्यपालकों को बाहर से अंगुलिका मंगानी पड़ती है। पश्चिम बंगाल से अंगुलिका मंगाने के कारण लागत अधिक आने के साथ ही जलाशय में डालने के पूर्व ही अधिकांश अंगुलिका मर जाती है। प्रदूषित पानी मछलियों के लिए भी खतरा बन रहा है। अंडा व स्पर्म तैयार करने के लिए अनुकूल नहीं मिट्टी व पानी मत्स्यपालन के लिए अंडा व स्पर्म तैयार करने के लिए हेचरी निर्माण पर पानी में आयरन की अधिक मात्रा का ब्रेक लग रहा है। मत्स्य विभाग द्वारा मिट्टी व पानी को जांच के लिए लैब भेजा गया था। जांच में मिट्टी बलुआही तथा पानी में आयरन की मात्रा अधिक होने के कारण हेचरी तैयार करने के लिए अनुकुल नहीं पाया गया। डंडखोरा प्रखंड के सौरिया में 48 लाख की लागत से हेचरी का निर्माण कराया गया था। अनुकूल मिट्टी व पानी नहीं होने के कारण लाखों की लागत से तैयार हेचरी बेकार पड़ा हुआ है। सौरिया हेचरी में आयरन रिमूवल प्लांट से आयरन की मात्रा कम करने का प्रस्ताव दो वर्ष पूर्व मुख्यालय को भेजा गया था।
बाजार पर आंध्र की मछलियों का है कब्जा स्थानीय मछली बाजार पर आंध्र प्रदेश की मछलियों का कब्जा है। पानी में प्रदूषक तत्वों की मात्रा अधिक होने के कारण देसी मछलियां भी विलुप्त हो रही है। कबई, सिघी, मांगुर जैसी देसी मछली बाजारों में महंगे दर पर मिल रही है। आंध्र प्रदेश से आयातित मछली का कारोबार तेजी से बढ़ रहा है। पानी में आयरन अधिक होने के कारण स्थानीय मछली के कई तरह के जल जनित बीमारी की चपेट में आ रही है। मांग के अनुरूप स्थानीय स्तर पर मछली का उत्पादन नहीं होने से आ्रध्र प्रदेश से मछलियों का आयात मछली कारोबारियों द्वारा किया जाता है।