बदहाली की कगार पर पहुंचा पूर्णिमा देवी गोशाला, नहीं ली जा रही सुध

कटिहार। जिले के कदवा प्रखंड अंतर्गत सोनैली में 1920 में स्थापित पूर्णिमा देवी गोशाला उद्धारक की बाट जोह रहा है। इस गोशाला का स्वर्णिम अतीत रहा है। गोशाला के पास 120 एकड़ जमीन है। कई स्थानों पर गोशाला की जमीन अतिक्रमण का शिकार है।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 15 Jun 2021 09:59 PM (IST) Updated:Tue, 15 Jun 2021 09:59 PM (IST)
बदहाली की कगार पर पहुंचा पूर्णिमा  देवी गोशाला, नहीं ली जा रही सुध
बदहाली की कगार पर पहुंचा पूर्णिमा देवी गोशाला, नहीं ली जा रही सुध

कटिहार। जिले के कदवा प्रखंड अंतर्गत सोनैली में 1920 में स्थापित पूर्णिमा देवी गोशाला उद्धारक की बाट जोह रहा है। इस गोशाला का स्वर्णिम अतीत रहा है। गोशाला के पास 120 एकड़ जमीन है। कई स्थानों पर गोशाला की जमीन अतिक्रमण का शिकार है। गोशाला समिति के पास फंड नहीं रहने के कारण विकास संबंधी काम नहीं हो पा रहा है। गोशाला की बदहाली दूर करने एवं विकास को लेकर न तो प्रशासनिक और न ही जनप्रतिनिधि स्तर से कोई सुध ली गई है। हाल के वर्षों में गोशाला को दार देने वालों की संख्या भी घटी है। वहीं खर्च में भी इजाफा हुआ है। गोशाला की 120 एकड़ जमीन पर बाग बगीचा और पोखर भी है। आज भी सौ वर्ष पुराने शेड में ही गायों को रखा जाता है। गोशाला में डेयरी प्रोजेक्ट एवं गोबर से खाद बनाने का प्रोजेक्ट लगाया जाए तो यहां के बेरोजगार लोगों के लिए रोजगार सृजन भी होगा।

बताते चलें कि 1920 में दुर्गागंज स्टेट एवं अन्य स्थानीय लोगों द्वारा जमीन दान में देकर गोशाला का निर्माण कराया गया था। कोसी, सीमांचल के इलाके में इस गोशाला के पास सबसे अधिक संपत्ति और जमीन थी। देखरेख नहीं होने से गोशाला की 15 एकड़ जमीन अतिक्रमण का शिकार है। गोशाला कमेटी के पदेन अध्यक्ष अनुमंडलाधिकारी होते हैं। निर्वाचित कमेटी द्वारा गोशाला का संचालन किया जाता है। गोशाला की जमीन एवं दान से प्राप्त आय गायों का रखरखाव और प्रतिनियुक्त कर्मचारी के वेतन सहित अन्य मद में खर्च किया जाता है। गोशाला में पशुओं के रहने के लिए पशुशेड, चारा रखने के लिए गोदाम, चारदीवारी, गोबर उबठाने के लिए ट्रैक्टर ट्रॉली सहित अन्य संसाधन का अभाव है। वर्तमान में गोशाला में गाय, बैल, बछड़ा सहित 127 पशु है। शेड के अभाव में रखरखाव में कठिनाई होती है।

रोजगार सृजन का माघ्यम हो सकता है गोशाला

गोशाला की बदहाली दूर कर विकसित कर यहां गायों की संख्या बढ़ाई जाए तो डेयरी प्रोजेक्ट, गोबर से खाद, उपला, वर्मी कंपोस्ट और गो मूत्र आधारित यूनिट लगाए जाने से स्थानीय लोगों को रोजगार को मिलेगा। वर्तमान में गोशाला में एकत्रित गोबर को स्थानीय किसानों के हाथ औने-पौने दाम में बेचा जाता है।

उपमुख्यमंत्री से की गई है मांग

हाल ही में उपमुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद के गोशाला आगमन पर गोशाला कमेटी ने 50 पशु क्षमता वाले आधुनिक पशु शेड, ट्रैक्टर, चहारदीवारी का निर्माण, चारा गोदाम का निर्माण सहित गोशाला के विकास को लेकर मांगपत्र सौंपा था।

जमीन से होता है 14 लाख का सालाना आय

गोशाला की जमीन से लगभग 14 लाख सालाना की आय होती है। साथ हीं दूध एवं गोबर की बिक्री से भी आय होता है। इस आय से गोशाला के कर्मियों का वेतन और पशुओं का चारा सहित अन्य खर्च किया जाता है।

गोबर गैस प्लांट से चलता है चारा मशीन

गोशाला में स्थापित बायोगैस प्लांट से चारा मशीन, रोशनी की व्यवस्था एवं अन्य कार्य किया जाता है। पूर्व में लगाया गया प्लांट खराब होने के बाद नया प्लांट लगाया जा रहा है द्य

क्या कहते कमेटी के सचिव

इस संबंध में गोशाला कमेटी के सचिव लीलानंद पोद्दार ने बताया कि गोशाला को विकसित कर आर्थिक उन्नति की जा सकती है जिसमें रोजगार का भी अवसर पैदा होगा। उन्होंने सरकार से गोशाला को लेकर विकास योजना बनाए जाने की मांग की है।

क्या कहते कोषाध्यक्ष

गोशाला कमेटी के कोषाध्यक्ष रंजीत बुबना ने बताया कि अभी भी गोशाला में पुराने भवन में पशुओं को रखा जाता है, जबकि पशुओं के खानपान एवं अन्य व्यवस्था करने में राशि के अभाव में परेशानी होती है।

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