कैमूर में पैक्स व विभाग की सुस्ती से जिले में धान खरीदारी हर साल होती प्रभावित

जिले के किसान अच्छी पैदावार पाने के लिए हाड़ तोड़ मेहनत करते हैं।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 27 Nov 2020 04:56 PM (IST) Updated:Fri, 27 Nov 2020 11:18 PM (IST)
कैमूर में पैक्स व विभाग की सुस्ती से जिले में  धान खरीदारी हर साल होती प्रभावित
कैमूर में पैक्स व विभाग की सुस्ती से जिले में धान खरीदारी हर साल होती प्रभावित

भभुआ: जिले के किसान अच्छी पैदावार पाने के लिए हाड़ तोड़ मेहनत करते हैं। लेकिन उनकी मेहनत पर पैक्स व विभाग पानी फेर देते हैं। यह स्थिति कोई एक दो वर्ष की नहीं बल्कि वर्ष 2012 से ही चल रही है। किसी वर्ष समय से जिले में धान की खरीदारी शुरू नहीं होती। निर्धारित समय से डेढ़-दो माह बाद जिले में पैक्सों व व्यापार मंडल के माध्यम से धान की खरीदारी शुरू होने के चलते किसान इसके पूर्व ही अपना धान आढ़तियों या व्यवसायियों के पास बेच देते हैं। सरकारी स्तर पर धान की खरीदारी शुरू नहीं होने का पूरा फायदा बिचौलिया उठाते हैं। जो किसानों के खलिहान तक पहुंच सरकारी दर से काफी कम दाम देकर धान खरीद लेते हैं। इससे किसानों को काफी नुकसान होता है। पैक्सों के देरी करने पर विभाग के पदाधिकारी भी कुछ नहीं कर पाते। क्योंकि कहीं न कहीं इस प्रक्रिया में विभाग भी जिम्मेदार रहता है। जिले में पैक्सों व व्यापार मंडलों के अलावा मिलरों की लापरवाही पर सबसे बड़ी कार्रवाई वित्तीय वर्ष 2012-13 में हुई। तब जिले के 143 मिलरों व आठ क्रय केंद्र प्रभारियों पर कार्रवाई हुई थी। इनके विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज की गई और बाद में नीलाम पत्र वाद भी चलाया गया। इसके बाद वर्ष 2017 में सिर्फ दो पैक्सों को समय से सीएमआर जमा नहीं करने पर डिफाल्टर घोषित किया गया। इसके बाद अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। लेकिन विभाग व पैक्सों के बीच समन्वय ठीक नहीं चल रहा। इस वर्ष ही पैक्स और मिलर दोनों धान खरीदारी की प्रक्रिया से पल्ला झाड़ रहे हैं। कारण पैक्सों का राशि बकाया है और मिलर बिजली विभाग के टैरिफ प्लान से नाराज हैं। ऐसे में किसानों का धान कहां बिकेगा यह एक अहम सवाल है। किसानों के सामने कई तरह के कार्य है। बिटिया की शादी, घर का खर्च, बेटा की पढ़ाई, मां-बाप की दवा के साथ रबी फसल की बोआई के लिए तत्काल किसानों को पैसा चाहिए। जिले में मौसम अचानक बदल गया है। खलिहान में धान हैं, बारिश हुई तो भींग कर खराब हो जाएगा। ऐसे में किसान विवश होकर धान किसी बिचौलियों के हाथों बेच देंगे। तब विभाग के सामने दो लाख 40 हजार एमटी का लक्ष्य पूरा करना काफी मुश्किल हो जाएगा।

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