कम उम्र में शादी से मां एवं बच्चे के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर
प्रतिवर्ष 15 लाख लड़कियों की शादी 1
कम उम्र में लड़कियों की शादी से उनके सेहत के साथ होने वाले बच्चे की सेहत पर भी प्रतिकूल असर पड़ता है। 18 साल से कम उम्र में शादी होने से गर्भावस्था एवं प्रसव के दौरान कई स्वास्थ्य जटिलताएं बढ़ने का ़खतरा होता है। इससे मां के साथ नवजात के जान जाने का भी खतरा होता है। साथ ही कम उम्र में शादी होने से सामाजिक बाध्यता बढ़ जाती है एवं किशोरावस्था में ही मां बनने पर भी मजबूर होना पड़ता है। जिससे सही समय पर परिवार नियोजन साधन अपनाने में भी कमी आती है। वर्ष 2050 पहुंच सकती है संख्या 120 करोड़ के पास -
द ग्लोबल पार्टनरशिप टू इंड चाइल्ड मैरिज की रिपोर्ट के अनुसार यदि बाल विवाह पर अंकुश नहीं लगाया गया तो वर्ष 2050 तक यह संख्या 120 करोड़ के पार पहुंच सकती है। ़िफलहाल प्रतिवर्ष 18 साल से कम उम्र में लगभग 15 लाख लड़कियों की शादी हो जाती है। यही कारण है कि जिन देशों में बाल विवाह की दर अधिक है, उन देशों में मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य को लेकर अधिक चुनौतियां भी है। 21 लाख शिशुओं की बचाई जा सकती है जान:
द ग्लोबल पार्टनरशिप टू इंड चाइल्ड मैरिज की ही रिपोर्ट के अनुसार बाल विवाह पर अंकुश लगाने से आगामी 15 सालों में लगभग 21 लाख शिशुओं को मरने से बचाया जा सकता है। साथ ही इससे 36 लाख बच्चों को बौनापन के शिकार होने से भी बचाया जा सकता है। 20 वर्ष से कम उम्र में लड़कियों की शादी होने से मृत नवजात जन्म की संभावना 50 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। इसलिए 15 से 18 वर्ष तक आयु वर्ग की किशोरियों में गर्भधारण एवं प्रसव संबंधित जटिलताओं के कारण सर्वाधिक मौतें भी होती हैं। 65 प्रतिशत किशोरियों में जन्म नलिका में छिद्र होने की समस्या: कम उम्र में शादी होने से प्रसव के बाद भी कई जटिलताएं आती हैं। जिसमें ओबेसट्रेटीक फिस्टुला (जन्म नलिका में छिद्र होना) एक गंभीर समस्या है। ओबेसट्रेटीक फिस्टुला के कुल मामलों में लगभग 65 प्रतिशत मामले 18 वर्ष से कम उम्र में मां बनने वाली किशोरियों में होती है। सिविल सर्जन डॉ. अरुण कुमार तिवारी ने बताया कि बाल विवाह को रोकने के लिए सरकार सख्त कदम उठा रही है। कम उम्र में शादी होने से कम उम्र में ही बच्चे भी हो जाते है। जिससे माता में एनीमिया की समस्या बढ़ने की अधिक संभावना होती है। इससे प्रसव के दौरान कई स्वास्थ्य जटिलताएं आती है, जिससे मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में भी बढ़ोतरी होती है।