मधुमक्खी पालन कर जिले के किसान बनेंगे स्वावलंबी

कैमूर। जिले के 20 किसान मधुमक्खी पालन का गुर सीखने के लिए बुधवार को कृषि विज्ञान केंद्र अधौरा भेजे गए। सभी किसान यहां तीन दिवसीय प्रशिक्षण में भाग लेंगे। जिले के सभी प्रखंड क्षेत्रों के अंतर्गत अनुसूचित जाति जनजाति समुदाय के 20 किसानों का चयन मधुमक्खी पालन के लिए किया गया।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 08 Dec 2021 11:33 PM (IST) Updated:Wed, 08 Dec 2021 11:33 PM (IST)
मधुमक्खी पालन कर जिले के किसान बनेंगे स्वावलंबी
मधुमक्खी पालन कर जिले के किसान बनेंगे स्वावलंबी

कैमूर। जिले के 20 किसान मधुमक्खी पालन का गुर सीखने के लिए बुधवार को कृषि विज्ञान केंद्र अधौरा भेजे गए। सभी किसान यहां तीन दिवसीय प्रशिक्षण में भाग लेंगे। जिले के सभी प्रखंड क्षेत्रों के अंतर्गत अनुसूचित जाति, जनजाति समुदाय के 20 किसानों का चयन मधुमक्खी पालन के लिए किया गया। चयन के बाद उन्हें प्रशिक्षण देना था। बुधवार को कार्यालय परिसर से वाहन के माध्यम से तीन दिवसीय प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए कृषि विज्ञान केंद्र अधौरा भेजा गया। कार्यशाला में शामिल किसानों को कृषि विज्ञान केंद्र अधौरा के वैज्ञानिकों द्वारा मधुमक्खी पालन कर शहद उत्पादन के बारे में जानकारी दी जाएगी। उद्यान विभाग की मुख्यमंत्री बागवानी मिशन योजना के अंतर्गत उक्त प्रशिक्षण कार्यक्रम के लिए किसानों का चयन किया गया है। सहायक निदेशक उद्यान तबस्सुम परवीन ने बताया कि जिले के किसानों को समय-समय पर फल फूल सहित अन्य तरह की खेती करने के लिए राज्य और राज्य के बाहर प्रशिक्षण के लिए भेजा जाता है।

इंतजार करते-करते बिना डीएपी के गेहूं की बोआई करने लगे किसान

नुआंव। प्रखंड में डीएपी खाद गायब है। इससे किसानों के सामने रबी की बोआई की गंभीर समस्या खड़ी हो गई है। उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि खेतों की बोआई किस ढंग से करें। कई किसान तो बिना डीएपी के हीं बोआई प्रारंभ कर दिए हैं। बिना डीएपी के गेहूं की बोआई से इसकी उत्पादकता पर असर पड़ना स्वाभाविक है। ऐसे में किसानों की आमदनी दोगुनी करने की बात करना तो बेमानी है। यदि किसानों की लागत भी निकल जाए तो बहुत बड़ी बात होगी। प्रखंड के किसान प्रतिदिन स्थानीय बाजार स्थित खाद की दुकानों पर चक्कर इस उम्मीद में लगा रहे हैं कि शायद कहीं से डीएपी का जुगाड़ हो जाए, लेकिन उन्हें हर बार निराशा हीं हाथ लग रही है। खाद दुकानदार भी किसानों को उत्तर देते देते परेशान हैं। वैसे सरकार द्वारा एक सप्ताह में डीएपी की उपलब्धता सुनिश्चित कराने की बात कही गई है लेकिन 'का वर्षा जब कृषि सुखानी' की कहावत चरितार्थ होती प्रतीत हो रही है।

chat bot
आपका साथी