ग्रामीणों की उदासीनता से कठेज के जलस्रोतों पर संकट के बादल

पूर्वजों द्वारा गांव के धरोहर के रूप में खोदवाए गए तालाब का वर्तमान पीढ़ी अस्तित्व मिटाने पर आमादा हैं। पूर्वजों के धरोहरों को सहेजने की बजाए उसे बर्बाद करने का काम कर रहे हैं।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 24 Jun 2019 09:35 PM (IST) Updated:Tue, 25 Jun 2019 06:29 AM (IST)
ग्रामीणों की उदासीनता से कठेज  के जलस्रोतों पर संकट के बादल
ग्रामीणों की उदासीनता से कठेज के जलस्रोतों पर संकट के बादल

पूर्वजों द्वारा गांव के धरोहर के रूप में खोदवाए गए तालाब का वर्तमान पीढ़ी अस्तित्व मिटाने पर आमादा हैं। पूर्वजों के धरोहरों को सहेजने की बजाए उसे बर्बाद करने का काम कर रहे हैं। जिसके कारण गांव के जलस्रोत संकट में है। जिसका दुष्परिणाम वर्तमान पीढ़ी भुगत रही है। आग की विभीषिका के दौरान ग्रामीणों को जलस्रोतों की याद आती है। तब यह समझ में आता है कि कास गांव के खुशहाली के प्रतीक तालाब के अस्तित्व को बचाया गया होता तो ऐसी दुर्दशा देखने को नहीं मिलती। मोहनियां प्रखंड के कठेज गांव के तालाब का रकबा करीब पांच एकड़ था। इसका पानी ग्रामीणों के उपयोग में आता था। इस पानी से ग्रामीण सिचाई भी करते थे। आज स्थिति ऐसी है कि यह तालाब अतिक्रमणकारियों की चपेट में है। जिस रफ्तार से अतिक्रमण बढ़ रहा है ऐसे में वह दिन दूर नहीं जब उक्त गांव के पूर्वजों के धरोहर इस तालाब का अस्तित्व मिट जाएगा। गांव में जलस्रोत के रूप में करीब 50 डिसमिल रकबा वाली एक गड़ही भी थी। जिसमें ग्रामीणों के घरों का गंदा पानी जमा होता था। इसके पानी से सिचाई होती थी। उसे भी स्वार्थ के वशीभूत होकर ग्रामीणों ने दखल करके घर बना दिया। इसका नतीजा है कि आज गांव का पानी निजी जमीन में जमा हो रहा है। जिससे भूस्वामियों को काफी नुकसान हो रहा है। यही गांव में विवाद का कारण भी है। इस पर किसी ग्रामीण का ध्यान नहीं है। ग्रामीणों का कहना है कि दो दशक पूर्व यह तालाब सुंदर व स्वच्छ था। ग्रामीण तालाब के पानी से ही अपना दैनिक कार्य करते थे। तब इक्का-दुक्का ही चापाकल गांव में हुआ करते थे। कुएं का पानी लोगों के प्यास बुझाने के काम में आता था। आज भले ही चापाकल की संख्या अधिक हो गई है। कुछ लोग घरों में सबमर्सिबल लगा लिए हैं लेकिन तालाब का विकल्प नहीं है। अतिक्रमण के कारण तालाब का अस्तित्व मिटता जा रहा है। तालाब में जल संचय नहीं होने के कारण जलस्तर तेजी से खिसका है। जल स्तर नीचे चले जाने के बाद चापाकल व सबमर्सिबल बेकार हो जाएंगे। आज जब भीषण गर्मी पड़ रही है तो चापाकल पानी देना बंद कर दे रहे हैं। वह दिन दूर नहीं जब चापाकल व अन्य संसाधन रहते हुए भी लोगों को पेयजल के लिए तरसना पड़ेगा। संतानों का यह फर्ज होता है कि वह पूर्वजों की धरोहर को सहेज के रखें। उसमें वृद्धि करें। अगर ऐसा संभव नहीं है तो उसको सुरक्षित रखना उसका परम कर्तव्य है। लेकिन इस गांव में ऐसा नहीं दिख रहा है। कठेज के पूर्व मुखिया योगेंद्र सिंह ने कहा कि अपने कार्यकाल में उन्होंने तालाब के रखरखाव पर ध्यान दिया। कुछ लोग स्वार्थ के वशीभूत होकर तालाब की जमीन पर कब्जा जमा कर मकान बना लिए हैं। तालाब में गंदगी बढ़ती जा रही है। पहले तो गांव के नाला का पानी भी इसी तालाब में गिरा था लेकिन नाला बन जाने के कारण इस पर रोक लगी है। तालाब की जमीन पर से अतिक्रमण हटाने के लिए पूर्व में मोहनियां के अंचलाधिकारी द्वारा अतिक्रमणकारियों को नोटिस जारी किया गया है। प्रशासन अगर इस मामले पर गंभीरता से ध्यान दे तो तालाब को अतिक्रमण मुक्त कराया जा सकता है।

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