हादसे में गंवाया हाथ .. नहीं कम हुआ हौसला

जमुई। जिले के चकाई प्रखंड के एक किसान के स्वाभिमान व हौसले ने दिव्यांगता को पराजित कर दिया है। दोनों हाथ केहुनी के नीचे से कटे होने के बावजूद खुद से हल चलाकर जमीन का सीना चीर अन्न उपजा रहे हैं। एक कटे बांह से रस्सी के सहारे वे बैल संभालते हैं तो दूसरा हल पर रखकर खेत जोतते हैं।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 20 Sep 2021 06:11 PM (IST) Updated:Mon, 20 Sep 2021 06:15 PM (IST)
हादसे में गंवाया हाथ .. नहीं कम हुआ हौसला
हादसे में गंवाया हाथ .. नहीं कम हुआ हौसला

जमुई। जिले के चकाई प्रखंड के एक किसान के स्वाभिमान व हौसले ने दिव्यांगता को पराजित कर दिया है। दोनों हाथ केहुनी के नीचे से कटे होने के बावजूद खुद से हल चलाकर जमीन का सीना चीर अन्न उपजा रहे हैं। एक कटे बांह से रस्सी के सहारे वे बैल संभालते हैं तो दूसरा हल पर रखकर खेत जोतते हैं। यह किसान हैं चकाई प्रखंड अंतर्गत नक्सल प्रभावित बोंगी पंचायत के गादी गांव के दिव्यांग किशुन मंडल। वे बताते हैं कि 1999 में हुए एक हादसे में उनका दोनों हाथ केहुनी ने नीचे से कट गया। घटना के बाद वह छह महीने तक बिस्तर पर रहे। इस दौरान मायूसी जकड़ती रही। बच्चे छोटे थे। घर की माली हालात खराब होने लगी। कर्ज पर घर खर्च चलने लगा। बाद में उन्होंने इसी अवस्था में संघर्ष शुरू किया। बतौर किशुन शुरू में हल चलाने व बैल को संभालने में परेशानी हुई। कटे हाथ में दर्द हुआ, फिर धीरे-धीरे आदत होने लगी। बैल भी इशारा और मजबूरी समझने लगा। अभी दो एकड़ जमीन पर खेती करते हैं। छोटा बेटा मां के साथ खेती के काम में मदद करता है। इससे परिवार का भरण-पोषण कर धीरे-धीरे कर्ज भी उतार रहे हैं। बताया कि उन्हें विकलांगता पेंशन के अलावा और कोई सरकारी लाभ नहीं मिला है। खपड़ैल घर में रहते हैं। आवास योजना का लाभ नहीं मिला है। किशुन का संघर्ष उन लोगों को लिए प्ररेणा बनी है जो दिव्यांगता के बाद अपने आप को बोझ और किसी काम का नहीं समझने लगते हैं। संघर्ष करने की बजाए हौसला हार कमतर समझने लगते हैं।

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