उर्मिला गढ़ रहीं समाज में बदलाव की नींव
जमुई। वंचित व समाज के अंतिम पायदान पर गुजर-बसर करने वाले समाज की उर्मिला में ज्ञान का प्रकाश प्रज्जवलित हुआ तो उसकी आभा में समाज के दर्जनों बचों में पढ़ाई की ललक पैदा हुई।
जमुई। वंचित व समाज के अंतिम पायदान पर गुजर-बसर करने वाले समाज की उर्मिला में ज्ञान का प्रकाश प्रज्जवलित हुआ तो उसकी आभा में समाज के दर्जनों बच्चों में पढ़ाई की ललक पैदा हुई। पढ़ाई छोड़कर मटरगश्ती, गाय चराने व मजदूरी करने वाले बच्चे पढ़ाई की ओर आकर्षित हुए। धीरे-धीरे बदलाव की यह पंक्ति कहानी बनती गई। हम बात कर रहे बदलाव की पहली किरण बनी उर्मिला कुमारी की।
महादलित परिवार में जन्मी उर्मिला के सिर से बचपन में ही पिता जगदीश मांझी का साया उठ गया। झारखंड के निरसा में रहने वाली उर्मिला आर्थिक परेशानी की वजह से मां मीना देवी और दो बहन के साथ खैरा प्रखंड के धरमपुर गांव स्थित ननिहाल लौट आई। उसे पढ़ाई से लगाव था। लिहाजा उसने पढ़ाई जारी रखी। इसी क्रम में समग्र सेवा के संपर्क में आई और विपरीत परिस्थिति में पढ़ाई करते हुए वर्ष 2019 में मैट्रिक परीक्षा पास की। बच्चों को मटरगश्ती करते देख उर्मिला को अफसोस होता था। ईट-भटटा पर काम करने वाले व गाय चराने वाले बच्चों को समझाकर पढ़ाना शुरू किया। पाठशाला का नाम सांस्कृतिक शिक्षण केंद्र दिया। धीरे-धीरे केंद्र में बच्चों की संख्या बढ़ने लगी तो देखा-देखी ही सही बच्चों में प्रतियोगिता की भावना ने जन्म लेना शुरू कर दिया। नतीजतन बच्चों में पढ़ने की ललक और दूसरे से आगे निकलने की प्रतिस्पर्धा पैदा होने लगी। उर्मिला, प्रारंभिक शिक्षा के बाद बच्चों का स्कूल में नामांकन करा देती है और बच्चों की टोली को खुद से भी पढ़ाती है। इसका प्रतिफल यह रहा कि उर्मिला के केंद्र से पढ़ा एक बच्चा गुड्डू कुमार ने मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की। इस सब के बीच उर्मिला ने अपनी पढ़ाई भी जारी रखी है। उर्मिला का लक्ष्य स्नातक करने के बाद बीएड कर शिक्षक बनकर समाज को ज्ञान के प्रकाश से उत्थान की ओर ले जाने का है। उर्मिला ने बताया कि अगर उसने पढ़ाई नहीं की होती तो उसका भी बाल विवाह हो जाता। अज्ञानता की वजह से लोगों को कष्ट उठाना पड़ता है। ज्ञान के प्रकाश से जीवन का अंधेरा छट जाता है। उसका छोटा-सा प्रयास महादलित बच्चों को उत्थान का रास्ता दिखा रहा है।