झाझा में अपने ही पड़ रहे अपनों पर भारी

जमुई। कई मायने में झाझा विधानसभा में महागठबंधन का समीकरण थोड़ा बिगड़ता दिख रहा है। यहां से यादव जाति के तीन उम्मीदवार मैदान में हैं।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 22 Oct 2020 05:28 PM (IST) Updated:Thu, 22 Oct 2020 05:28 PM (IST)
झाझा में अपने ही पड़ रहे अपनों पर भारी
झाझा में अपने ही पड़ रहे अपनों पर भारी

जमुई। कई मायने में झाझा विधानसभा में महागठबंधन का समीकरण थोड़ा बिगड़ता दिख रहा है। यहां से यादव जाति के तीन उम्मीदवार मैदान में हैं। भाजपा विधायक रविन्द्र यादव इस बार बागी उम्मीदवार के रूप में लोजपा से प्रत्याशी के रूप में मैदान में हैं। 2015 के चुनाव में उन्होंने महागठबंधन प्रत्याशी दामोदर रावत को लगभग 27 हजार मतों से हराया था। इस बार टिकट से बेदखल कर दिए जाने के बाद वे मैदान में डटे हैं। हलांकि उन्हें एनडीए प्रत्याशी के मुकाबले में खड़ा किया गया है, लेकिन अपनी जाति का वोट काटने के कारण इस बार इसका फायदा जदयू को मिलने की संभावना दिख रही है।

राजद से राजेन्द्र यादव प्रत्याशी बनाए गए हैं। माई समीकरण उनकी पार्टी का मजबूत आधार माना जाता है। इस विधानसभा की जो जातिगत गणित है उसमें सर्वाधिक मत यादव-मुस्लिम का ही है। सबसे बड़ी बात यह है कि पिछली बार की तरह यहां से कोई मुस्लिम उम्मीदवार नहीं है। राजद के लिए यह फायदे का सौदा है। 2015 के चुनाव में बतौर मुस्लिम उम्मीदवार आबिद कौसर ने लगभग 13 हजार मत प्राप्त किए थे। इसके अलावा विनोद यादव को भी इस विधानसभा क्षेत्र का मजबूत प्रत्याशी माना जाता है। पिछले विधानसभा चुनाव में उन्होंने बीस हजार से अधिक मत प्राप्त किए थे। इस बार वे भी फिर अपनी जाति के मतों में सेंध लगाने की जुगत में हैं।

इसके अलावा 2015 के विधानसभा चुनाव में बतौर महागठबंधन उम्मीदवार दामोदर रावत को यादव जाति का वोट हासिल नहीं हो पाया था। इस इलाके में राजद के जयप्रकाश नारायण यादव ने कैंप किया था। फिर भी दामोदर अत्यंत पिछड़ा का वोट हासिल करने में सफल रहे थे। उन्हें लगभग 43 हजार मत प्राप्त हुए थे। उस बार एनडीए में नहीं रहने के कारण उन्हें अगड़ों का मत नहीं मिल पाया था। इस बार उन्हें मिलने की संभावना दिख रही है। इसलिए कहा जा सकता है कि तीन उम्मीदवार एक ही जाति से होने के कारण इसबार एनडीए की राह आसान हो सकती है।

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