शिक्षकों को समय पर स्कूल पहुंचाने वाली व्यवस्था विफल
संवाद सहयोगी जमुई गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को लेकर शिक्षकों को सही समय पर स्कूलों में पहुंचाने वाला सिस्टम खुद राह से भटक गया है। वर्ष 2017 के अंतिम महीने में इसी मंशा से शिक्षा विभाग ने हाईस्कूलों में बायोमीट्रिक मशीन लगवाया था।
फोटो 30 जमुई-5
-गुरुजी को समय पर स्कूल पहुंचाने का विभागीय प्रयास धराशाही
-बनती थी गुरुजी सहित कर्मियों की हाजरी
- 2017 में स्कूलों में लगाई गई थी बायोमीट्रिक मशीन
- 2019 से बायोमीट्रिक मशीन स्कूलों में काम नहीं कर रही
- 15 हजार रुपये प्रति मशीन आया था खर्च
संवाद सहयोगी, जमुई : गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को लेकर शिक्षकों को सही समय पर स्कूलों में पहुंचाने वाला सिस्टम खुद राह से भटक गया है। वर्ष 2017 के अंतिम महीने में इसी मंशा से शिक्षा विभाग ने हाईस्कूलों में बायोमीट्रिक मशीन लगवाया था। इसके लिए औसतन 15 हजार रुपये प्रति मशीन खर्च भी किया गया था।
बायोमीट्रिक मशीन लगने का फायदा यह हुआ था कि शिक्षक व कर्मी समय पर स्कूल पहुंचने लगे और निर्धारित समय के बाद ही स्कूल से छुट्टी करते थे। यह व्यवस्था लेट लतीफी के शौकीन शिक्षकों व कर्मियों के गले की फांस बन गई थी तो समय पर पहुंचने वाले शिक्षकों के चेहरे की मुस्कान। वक्त के साथ इस व्यवस्था को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। एक साल के बाद ही व्यवस्था को दरकिनार कर दिया गया। वर्ष 2019 से बायोमीट्रिक मशीन स्कूलों में काम नहीं कर रही। जिला शिक्षा कार्यालय के प्रयास व पदाधिकारियों की मंशा के बावजूद क्रियान्वयन में उदासीनता ने इसके उद्देश्य को निष्फल कर दिया।
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छात्र मद की राशि से हुई थी खरीदारी
शिक्षा कर्मियों के स्कूल में विलंब से पहुंचने तथा बिना सूचना अनुपस्थित रहने की लगातार शिकायत के बाद शिक्षा विभाग ने सभी स्कूलों में बायोमैट्रिक मशीन के माध्यम से हाजरी बनाने निर्णय लिया था। इसके तहत पहले चरण में जिले के 46 प्लस टू उच्च विद्यालय और कुछ उत्क्रमित उच्च विद्यालय में छात्र मद की राशि से मशीन लगाई गई थी।
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कार्यालय कक्ष से पदाधिकारी जान लेते थे उपस्थिति
शिक्षा कर्मियों हाजरी की मानिटरिग के लिए सिस्टम डेवलप किया गया था। जिला शिक्षा पदाधिकारी सहित अन्य अधिकृत पदाधिकारी अपने कार्यालय कक्ष से ही किसी भी स्कूल में शिक्षकों व कर्मियों की उपस्थिति एक क्लिक पर जान लेते थे। साथ ही रिपोर्ट भी निकाल सकते थे।
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रिचार्ज बनी समस्या
बताया जाता है कि बायोमैट्रिक मशीन के उपयोग के लिए एक साल के पैकेज के बाद दो हजार रुपये का रिचार्ज कराना था। जो नहीं किया गया। अब बुद्धिजीवी सवाल उठ रहे हैं कि जब व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाना नहीं था तो फिर बच्चों के छात्र मद की राशि से इसकी खरीदारी ही क्यों की गई थी। जब इस मद से 15 हजार के मशीन की खरीदारी की जा सकती थी तो फिर दो हजार रुपये का रिचार्ज क्यों नहीं कराया जा सकता था। बायोमैट्रिक प्रणाली से यकीनन स्कूल की तस्वीर बदली थी। इसे अनुपयोगी बनाने के पीछे की मंशा समझनी होगी।
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कोट
अभी मुझे इसकी जानकारी नहीं है। यह अच्छी पहल थी। इसे फिर से सुचारू किया जाएगा।
कपिलदेव तिवारी
डीईओ, जमुई।