यह वक्त ¨हदी के प्रतिमानों की विदाई का त्रासद समय है: डा सुधांशु

जमुई। हिन्दी आलोचना के शिखर पुरुष नामवीर नामवर ¨सह का गुजर जाना आलोचना के एक युग का अंत हो गया।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 21 Feb 2019 06:06 PM (IST) Updated:Thu, 21 Feb 2019 06:06 PM (IST)
यह वक्त ¨हदी के प्रतिमानों की विदाई का त्रासद समय है: डा सुधांशु
यह वक्त ¨हदी के प्रतिमानों की विदाई का त्रासद समय है: डा सुधांशु

जमुई। हिन्दी आलोचना के शिखर पुरुष, नामवीर 'नामवर ¨सह' का गुजर जाना आलोचना के एक युग का अंत हो गया। ¨हदी आलोचना की जिस परंपरा की शुरुआत आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने की थी, वह हजारी प्रसाद द्विवेदी और रामविलास शर्मा सरीखे आलोचकों से होते हुए एक संतुलित विकास पथ पर आरूढ़ थी, लेकिन नामवर ¨सह के जाने के बाद मानों वह विकास यात्रा ठहर सी गयी है। उक्त बातें गुरुवार को सिमुलतला आवासीय विद्यालय में हिन्दी आलोचना के पुरोधा डॉ. नामवर ¨सह के श्रद्धांजलि कार्यक्रम में व्यंग्यकार डॉ. सुधांशु कुमार ने कही। उन्होंने कहा कि यह वक्त ¨हदी के प्रतिमानों की विदाई का त्रासद समय है। एक वर्ष के भीतर विष्णु खरे, कृष्णा सोबती और नामवर ¨सह का निधन हिन्दी जगत के लिए अपूरणीय क्षति है। यह सत्य है कि नामवर ¨सह का झुकाव मा‌र्क्सवाद की तरफ था। सच्ची प्रगतिशीलता उनके स्वभाव का एक अभिन्न अंग थी ¨कतु उनका बहुआयामी व्यक्तित्व उसका गुलाम न था। उन्होंने ¨हदू संस्कृति और संस्कारों की तिलांजली कभी न दी। शिक्षक विनोद कुमार ने कहा कि वह हमेशा भारतीय संस्कृति और संस्कार में अतर्निहित श्रेष्ठता के पैरोकार रहे। रंजय कुमार ने कहा कि उन्होंने पत्र पत्रिकाओं के संपादक की हैसियत से भी सैकड़ों लेखकों को प्रोत्साहित किया और हजारों हिन्दी सेवियों की फौज तैयार की।

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