धार्मिक आस्था के साथ लक्ष्मी नारायण मंदिर में धूमधाम से मनाया गया शरद पूर्णिमा

जहानाबाद स्थानीय लक्ष्मी नारायण मंदिर में धूमधाम के साथ शरद पूर्णिमा का उत्सव मनाया गया। आश्विन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा के रूप में मनाया जाने की प्रथा है।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 20 Oct 2021 11:13 PM (IST) Updated:Wed, 20 Oct 2021 11:13 PM (IST)
धार्मिक आस्था के साथ लक्ष्मी नारायण मंदिर में धूमधाम से मनाया गया शरद पूर्णिमा
धार्मिक आस्था के साथ लक्ष्मी नारायण मंदिर में धूमधाम से मनाया गया शरद पूर्णिमा

जहानाबाद : स्थानीय लक्ष्मी नारायण मंदिर में धूमधाम के साथ शरद पूर्णिमा का उत्सव मनाया गया। आश्विन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा के रूप में मनाया जाने की प्रथा है। इस अवसर पर मठाधीश रंग रामानुजाचार्य जी महाराज ने भक्तों को आज के दिन के महात्म्य को बताते हुए कहा कि इसी दिन भगवान श्री कृष्ण और राधा के अद्भुत रासलीला का आरंभ हुआ था। इस लिए शरद पूर्णिमा को महारास पूर्णिमा भी कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र कार्तिकेय जी का जन्म भी शरद पूर्णिमा के दिन ही हुआ है। इसी दिन माता लक्ष्मी का जन्म भी हुआ है ऐसा माना जाता है। स्वास्थ्य और अमृत्व की प्राप्ति के लिए खीर बनाकर शरद - चांदनी में रखकर प्रसाद स्वरूप इसका सेवन किया जाता है। उन्होंने बताया कि ज्योतिष के अनुसार इस दिन चंद्रमा 16 कलाओं में परिपूर्ण होता है। महारास के संबंध में कहा जाता है कि द्वापर काल में भगवान श्री कृष्ण चीरहरण काल में गोपियों के मन को वंशी वादन के माध्यम से हरण किया तथा उन्होंने गोपियों के साथ महारास रचाया। महारास का अर्थ है परम आनंद की प्राप्ति हो जाना। अनेक जन्मों के साधना के पश्चात गोपियों को भगवान श्री कृष्ण के साथ रास रचाने का अवसर प्राप्त हुआ था। स्वामी जी महाराज ने बताया कि प्रत्येक मानव को चाहिए कि किसी प्रकार का आक्षेप नहीं उठा कर परमात्मा के चरणों में अपना जीवन समर्पण करे। परमात्मा के चरणावृंद में अपने मन को लगाए इस प्रकार मानव का मन जगदीश्वर में लग जाता है तो वह जन्म जन्मांतर के बंधन से मुक्त हो जाता है। इससे मानव का जीवन सफल हो जाता है।

शरद पूर्णिमा उत्सव के अवसर पर आरती और भजन कीर्तन का भी आयोजन किया गया। इस अवसर पर उपस्थित श्रद्धालुओं के बीच प्रसाद का वितरण किया गया। शरद पूर्णिमा उत्सव के अवसर पर आचार्य रामानंद शर्मा , आचार्य वैदिक जी, पुजारी ब्रजेश जी समेत आश्रम के समस्त छात्र भी उपस्थित थे।

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