मिट्टी के दीये से घरों को करें रोशन

जहानाबाद। दीपावली में महज कुछ ही दिन बचा है। ऐसे में हर ओर तैयारी तेज हो गई है। कुम्हार भी मिट्टी के दीये बनाकर स्टाक कर रहे हैं। दीपावली पास आते ही इसकी खरीदारी शुरू हो जाएगी।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 26 Oct 2021 11:10 PM (IST) Updated:Tue, 26 Oct 2021 11:10 PM (IST)
मिट्टी के दीये से घरों को करें रोशन
मिट्टी के दीये से घरों को करें रोशन

जहानाबाद। दीपावली में महज कुछ ही दिन बचा है। ऐसे में हर ओर तैयारी तेज हो गई है। कुम्हार भी मिट्टी के दीये बनाकर स्टाक कर रहे हैं। दीपावली पास आते ही इसकी खरीदारी शुरू हो जाएगी। मिट्टी के दीये जलाने से एक तरफ अपना घर रोशन होता है। वहीं कुम्हारों के घरों का अंधेरा भी दूर होता है। इस प्रकार के दीये जलाने की परंपरा वर्षो से चली आ रही है। गांव के बुजुर्र्गो की माने तो घी से दीये जलाना अधिक शुभ होता है। माता लक्ष्मी को प्रश्न्न करने के लिए लोग घरों व अपनी दुकानों में इसका प्रयोग जरूर करते हैं। मिट्टी के दीये में तील व सरसों का तेल जलाने से किट-पतंगों का भी खात्मा होता है। साथ ही वातावरण के लिए भी यह सही होता है, मगर बढ़ती महंगाई के कारण कुम्हारों की चिंता भी बढ़ी हुई है।

दीपावली वह मौका होता है जब दीयों की रोशनी में लोग मां लक्ष्मी और गणेश की पूजा का उनसे सुख-समृद्धि की कामना करते हैं, लेकिन दीपावली पर जलने वाले दीयों से लेकर लक्ष्मी गणेश की मूर्तियां बनाने वाले कुम्हार अब भी चिंता में हैं। ऐसे में कुम्हार अपने ही चाक पर अपना वजूद तलाश रहे हैं। कड़ी मेहनत से मिट्टी के दीपक, खिलौना और बर्तन बनाने वालों को खरीदार के लिए भी रोना पड़ रहा है। एक दौर था जब कुम्हार दीपावली का बेसब्री से इंतजार करते थे। झालर-बत्तियों से कुम्हारों के व्यवसाय पर पड़ा असर

कुम्हारों के दीपक से दमकती दीपावली पर चाइनीज झार-बत्ती भारी पड़ रही है। दीपावली से दो-तीन महीने पहले जिन कुम्हारों को दम भरने की फुरसत नहीं मिलती थी, वहीं अब धीमी चाक पर कुम्हारों की जिदगी रेंगती नजर आ रही है। उनका कहना है कि व्यवसाय चाइनीज झालरों के कारण ठप हो गया है। कई पुश्तों से यही काम करने वाले कुम्हार दीपावली से पूर्व चिंता में डूबे हैं। इनलोगों का कहना है कि मिट्टी से तैयार एक-दो रुपये के दीये को खरीदते समय लोग मोल-भाव करना नहीं भूलते, मगर बाजार में एमआरपी पर लोग बड़े शौख से झालरों की खरीदारी करते हैं। उनका कहना है कि समय के साथ चिकनी मिट्टी के स्त्रोत एवं जगहों की कमी से उन्हें भी मिट्टी खरीदनी पड़ रही है। ऐसे में उन्हें पूर्व के तरह मुनाफा नहीं हो पाता है। शगुन के तौर पर इस्तेमाल होने लगे हैं दीये

दीपावली में पारंपरिक तौर पर सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाले मिट्टी के दीये अब सिर्फ शगुन के तौर पर इस्तेमाल होने लगे हैं। पहले कुम्हारों को त्योहारों का बेसब्री से इंतजार रहता था। दीये की मांग पूरी करने के लिए तैयारी महीनों पहले शुरू कर देते थे। लगातार बढ़ती मंहगाई और लोगों की बदलती रुचि से अब उनके इस पेशे पर संकट मंडराने लगा है।

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