पशुओं के गले की घंटी थी समृद्धि की पहचान

जहानाबाद। प्रखंड क्षेत्र के झुनकी नगर में लगने वाला पशु हाट सिर्फ मवेशियों की खरीद बिक्री का हीं जरिया नहीं बल्कि यह इलाके के समृद्धि की पहचान थी।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 03 Mar 2021 10:37 PM (IST) Updated:Wed, 03 Mar 2021 10:37 PM (IST)
पशुओं के गले की घंटी थी समृद्धि की पहचान
पशुओं के गले की घंटी थी समृद्धि की पहचान

जहानाबाद। प्रखंड क्षेत्र के झुनकी नगर में लगने वाला पशु हाट सिर्फ मवेशियों की खरीद बिक्री का हीं जरिया नहीं बल्कि यह इलाके के समृद्धि की पहचान थी। नालंदा की सीमा पर यह पशु हाट स्थानीय लोगों को रोजगार के साथ-साथ आवश्यक वस्तु विनमय प्रणाली की इतिहास संयोए एकांत पड़ा है।

सामग्रियों की खरीदारी का महत्वपूर्ण जरिया है। सप्ताह के प्रत्येक गुरुवार को यहां पशुओं का मेला लगता है। पशुपालन अपने अपने पशुओं को सजा सवार कर मेले में लाते हैं। पशुओं की गले में बंधी घंटी की रुनझुन आवाज लोगों को जानी पहचानी सी लगती है। जैसे-जैसे इस रुनझुन आवाज का स्वर प्रबल होता है लोगों की खुशियां बढ़ती जाती है। लोगों को पता है कि यहां जितने ज्यादा पशु आएंगे लोगों की भीड़ भी बढ़ेगी।भीड बढ़ने से बाजार में रौनक होगी और सामग्रियों की बिक्री भी अधिक होगी। पशुओं के साथ- साथ इस हाट में घरेलू निर्मित रस्सी तथा झालर की बिक्री भी खूब होती है। लोगों की भीड़ को देख यहां अस्थाई तौर पर कपड़ों से लेकर कृषि उत्पाद की सामग्रियों की भी दुकानें सजती है। जहानाबाद और नालंदा का अद्भुत संगम है यह हाट झुनकी पशु हाट मगही भाषा के दो अलग-अलग टोन का अद्भुत संगम है। एक ओर जहां जहानाबाद जिले के लोग की टोन का होलो वहीं नालंदा से आने वाले लोग की बोली की होलो जैसे शब्दों इस हाट को अद्भुत बनाता हैं।वही दोनों जिले की संस्कृति यहां एक साथ विचरती है। नालंदा की बैगन की गाछी जहानाबाद के लोग वही जहानाबाद के किसानों के नर्सरी में पले टमाटर के पौधे की खरीदारी नालंदा जिले के लोग करते हैं। इस तरह वर्षों से या हाट दोनों जिले के लोगों के लिए सांस्कृतिक व व्यवसायिक केंद्र रहा है। पिछले चार दशक से यहां संचालित हो रहा है हाट

यूं तो झुनकी हाट का इतिहास काफी पुराना है। लेकिन विधिवत रूप से इसका संचालन पिछले चार दशक से हो रहा है। इस हाट के संचालन को लेकर प्रति वर्ष डाक से टेंडर की बोली लगती है। इससे सरकार को अच्छी-खासी राजस्व भी प्राप्त होता है। लेकिन इसके बावजूद भी यहां बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है।व्यवस्थित सेड के इंतजाम नहीं होने से यहां आने वाले लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ता है। पेयजल की सुविधा के नाम पर चापाकल तो है लेकिन गर्मी के मौसम में वह भी पानी देना बंद कर देता है। इस स्थान पर सामुदायिक शौचालय की जरूरत हमेशा महसूस की जाती है। लेकिन इस ओर किसी का ध्यान नहीं जा सका है। धीरे धीरे कम हो रही है पशुओं की संख्या वर्तमान समय में खेती किसानी पशुओं के भरोसे नहीं हो रही है। जिसके कारण किसी कार्य के लिए आप पशुओं की खरीद बिक्री नहीं होती है। परिणाम स्वरूप पहले की तरह खरीफ और रबी फसल की खेती से पहले बेहतर नस्ल के बैलों की जमावड़ा तो यहां नहीं लगता है। लेकिन दुधारू पशुओं के साथ-साथ बकरी तथा मुर्गा मुर्गीयों की खूब खरीद बिक्री होती है।

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