रोजगार की खोज में मिला रास्ता और जहानाबाद के अभय बन गए उद्यमी

जहानाबाद रोजगार की बहुत संभावनाएं हैं बशर्ते मौके को अवसर में तब्दील करने का हुनर होना चाहिए। इसमें क्षेत्र के नरमा निवासी अभय कुमार को चार महीने में ही उद्यमी बना दिया है।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 27 Jul 2021 11:43 PM (IST) Updated:Tue, 27 Jul 2021 11:43 PM (IST)
रोजगार की खोज में मिला रास्ता और जहानाबाद के अभय बन गए उद्यमी
रोजगार की खोज में मिला रास्ता और जहानाबाद के अभय बन गए उद्यमी

जहानाबाद : रोजगार की असीम संभावनाएं हैं, बशर्ते मौके को अवसर में तब्दील करने का हुनर होना चाहिए। इस हुनर ने क्षेत्र के नरमा निवासी अभय कुमार को मात्र चार महीने में ही उद्यमी बना दिया। वे तालाब खोदवाने की जगह बायोफ्लाक विधि से मछली पालन कर रहे हैं।

अभय गांव के अन्य युवकों की तरह स्नातक करने के उपरांत दूसरे राज्य की निजी कंपनी में काम करने लगे। उन्हें यह कसक थी कि अपनों के बीच रोजी-रोटी का कोई धंधा होता तो बेहतर रहता। इसी क्रम में उन्हें केंद्र सरकार के मत्स्य पालन विभाग द्वारा स्वरोजगार के लिए संचालित योजनाओं की जानकारी मिली। इसमें वे रोजगार की संभावना तलाशने लगे। वे गांव लौट आए और विभाग द्वारा संचालित प्रशिक्षण सत्र से जुड़ गए। इस दौरान मछली पालन की तकनीकी की जानकारी हासिल हुई। विभाग के अधिकारियों ने उन्हें मछली पालन को लेकर तालाब खोदवाने की सलाह दी।

इसी क्रम में अभय को इंटरनेट मीडिया के माध्यम से मछली पालन की बायोफ्लाक विधि की जानकारी मिली। यह तालाब में मछली पालन की तुलना में काफी सस्ता था। उन्होंने गहन अध्ययन के साथ विभाग के अधिकारियों से संपर्क किया। इस काम के लिए उन्हें ऋण मिल गया। अब अभय के सपने को पंख लग गए और उन्होंने राजनंदनी फिश फार्मिंग इंटरप्राइजेज नामक कंपनी की स्थापना की। ये है बायोफ्लाक विधि से मछली पालन की तकनीक

बायोफ्लाक विधि में समतल जमीन पर प्रोटेक्टिव कवर और तारपोलिन के सहारे आर्टिफिशियल टैंक का निर्माण कराया जाता है। टैंक में प्राकृतिक वातावरण कायम करने के लिए पानी के साथ-साथ अन्य सामग्री भी डाली जाती है। लागत का ढाई गुना लाभ इस विधि से मछली पालन में होता है। साल में दो बार मछली का उत्पादन किया जा सकता है। तालाब खुदाई कर मछली पालन करने से बेहतर तकनीक बायोफ्लाक विधि है। इस बारे में अभय ने बताया कि तालाब खुदाई में ज्यादा लागत आती है और इस तकनीक की तुलना में उत्पादन भी 10 फीसद कम होता है। उन्होंने बायोफ्लाक के लाभ के बारे में बताया कि इसे री सेटअप करना काफी आसान है। कम जगह में चाहें तो छत पर भी इस विधि से मछली पालन कर सकते हैं। एक सीजन में 50 टन मछली उत्पादन की है क्षमता अभय बताते हैं की पांच दोस्त मिलकर छह डिसमिल जमीन पर 10 टैंक बनवाए। उसमें लगभग सात लाख का खर्च आया। प्रति टैंक पांच टन मछली उत्पादन की संभावना है। उन्होंने बताया कि पहले सीजन की मछली लगभग तैयार है। इस बार रोहू और जासर मछली का जीरा डाले थे। इसका जीरा मुजफ्फरपुर से मंगाया गया था। 20 प्रोजेक्ट और स्थापित करने का है लक्ष्य

अभय का अभियान इसी तक सीमित नहीं है। स्वरोजगार को बढ़ावा देने के उद्देश्य से वे जहानाबाद के साथ-साथ अरवल जिले में 20 और प्रोजेक्ट स्थापित करने की योजना बना रहे हैं। उनका कहना है कि हैचरी को लेकर भी प्रयास चल रहा है ताकि जीरा मंगाने का भी झंझट नहीं रहे। मछली के बाजार की तलाश भी हो रही है। वे बताते हैं की हुलासगंज बाजार में मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए एक ऑफिस खोला जाएगा। यहां उत्पादन, मार्केटिग से जुड़े हर काम की सुविधा उपलब्ध रहेगी।

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