अकाल से बचाने वाली दरधा नदी का बुरा हाल

जहानाबाद। बिहार में जब अकाल पड़ा था तब जहानाबाद मगध प्रमंडल का एक अनुमंडल था।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 24 Jan 2021 10:30 PM (IST) Updated:Sun, 24 Jan 2021 10:30 PM (IST)
अकाल से बचाने वाली दरधा नदी का बुरा हाल
अकाल से बचाने वाली दरधा नदी का बुरा हाल

जहानाबाद। बिहार में जब अकाल पड़ा था तब जहानाबाद मगध प्रमंडल का एक अनुमंडल था। गया जिले का हिस्से में बूंद-बूंद पानी को लोग तरस रहे थे तब दरधा का जल काम आया था। दूर-दूर से लोग इसका पानी ले जाते थे। खेतों में मुरझाई फसल को इसी नदी के जल से बाली निकले थे।

सरकार जल, जीवन हरियाली अभियान के तहत पुराने जल स्रोत और नदी तालाब को पुनर्जीवित करने चली है लेकिन दरधा का मकसद पूरा नहीं हुआ।

जीवन के लिए पानी की बात हो और दरधा नदी का नाम नहीं आए ऐसा हो नहीं सकता है। जैसे ही जिले की जिक्र होती है यह नदी अन्यास ही यहां की भौगोलिक ऐतिहासिक और संस्कृतिक विरासत की कहानी बयां करने लगती है। अच्छे बुरे सभी दिनों में यह नदी सहभागी बनते हुए जिलेवासियों को मदद करती रही। विकास की इस दौर में लोगों की जरुरतें तेजी से बढ़ने लगी। इसी अंधी दौर में लोग इस कदर लीन हो गए कि अपने संस्कृतिक विरासत को संभालने की स्थिति में नहीं रहे। प्रगति तथा भौतिक सुख सुविधा की अभिलाषा लोगों को अपने नीति से इस कदर दूर कर दिया कि कई महत्वपूर्ण यादें किताबों के पन्नों में रह गई। जमीन से दूर हुए लोग इस पर कल-कल कर बहती नदी को किताबों में ढूंढने की पटकथा लिखने लगे हैं। जब 1964 में अकाल से लोग त्रस्त थे तो यही नदी प्यासे को पानी उपलब्ध कराने की मात्र एक सहारा थी। हालांकि नदी में पानी तो भीषण अकाल में नहीं था लेकिन हल्की खुदाई कर लोग नदी से पानी निकालते थे। उस समय इस नदी से प्यास बुझाने वाले लोग आज प्यासी इस नदी को व्याकुल जरूर हो रहे हैं। डिजिटल युग में युवा पीढ़ी पंपसेट, चापाकल और समरसेबल को ही पानी का एक मात्र साधन मान चुके हैं। ऐसे में उनलोगों के लिए यह नदी कोई खास महत्व नहीं रख रहा है। हालात यह है कि समाज में धन दौलत की प्रतिस्पद्र्धा इस कदर बढ़ी की एक दूसरे को नीचा दिखाने में बड़े इमारत बनाने की होड़ में कूद चुके हैं। उन इमारतों के नीचे जिले की संस्कृतिक धरोहर दरधा दबती जा रही है। 2005 में जब बहुचर्चित जेल ब्रेक कांड की घटना घटी थी तो यही दरधा नक्सलियों तक पहुंचने का सबूत भी पेश की थी। वारदात के दौरान नदी में ठिकाने बना चुके नक्सलियों के कारनामों का गवाह भी यह नदी बनी थी। इस तरह की घटनाओें से रक्तरंजीत हो चुकी नदी की तलहट्टी इंशानों की बेरहम चेहरे से रू-ब-रू हो चुकी है। नदी को लगा होगा कि विकास के बढ़ते रफ्तार में इंशानों का दिली भी विकसित होगा लेकिन इमारते उंची हुई। गाड़ियों का काफिला बढ़ा लेकिन दिल और संकीर्ण होता चला गया। बेजुवान इस नदी पर रहम की बजाए लोगों का शीतम बढ़ता ही जा रहा है। अब यह पुकार रही है कि तुम मुझे ही नहीं बल्कि मेरे साथ अपनी संस्कृति को भी समाप्त करने में तुले हुए हो। इनसेट

- दरधा की बदहाली दुखद : सांसद --

दरधा की बदहाली को देख मैं खुद दुखी हूं। यहां वर्षों से आना जा रहा है। मैं इस नदी को उस सबूत को देख चुका है जब यह काफी विकसित हुआ करती थी। प्रदेश की सरकार जल स्त्रोतों को संरक्षित करने के उद्देश्य से जल जीवन हरियाली योजना संचालित कर रही है। मैं इस नदी की समस्या को संबंधित विभाग के वरीय अधिकारियों के समक्ष रखकर निदान का भरसक प्रयास करूंगा। जरूरत पड़ी तो लोकसभा में भी इस समस्याको उठाउंगा।हालांकि इसके लिए व्यापक जनजागरण की भी जरूरत है। सभी लोग इसे संरक्षित रखने में अपना सहयोग प्रदान करें। जनप्रतिनिधि होने के नाते सरकार तथा विभाग से इस नदी को जीर्णोद्धार का हर संभव प्रयास मेरे स्तर से किया जाएगा।

चंद्रेश्वर प्रसाद चंद्रवंशी

सांसद

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