जीर्णोद्धार की राह देख रहा सौ साल से पानी को सहेज रहा कुरवा पोखरा

गोपालगंज बैकुंठपुर प्रखंड मुख्यालय से सटे पूरब दिशा में दिघवां पंचायत के दिघवां गांव का क

By JagranEdited By: Publish:Mon, 05 Apr 2021 10:59 PM (IST) Updated:Mon, 05 Apr 2021 10:59 PM (IST)
जीर्णोद्धार की राह देख रहा सौ साल से पानी को सहेज रहा कुरवा पोखरा
जीर्णोद्धार की राह देख रहा सौ साल से पानी को सहेज रहा कुरवा पोखरा

गोपालगंज : बैकुंठपुर प्रखंड मुख्यालय से सटे पूरब दिशा में दिघवां पंचायत के दिघवां गांव का कुरवा पोखरा अपना जीर्णोद्धार करने की राह देख रहा है। सौ साल पुराने इस पोखरा में कभी साल भर लबालब पानी भरा रहता था। पोखरा के किनारे बाजार लगता था। इस पोखरा का पानी तब इतना स्वच्छ था कि बाजार में अपनी दुकानें लगाने वाले दुकानदार के साथ दूर दराज से बाजार आने वाले लोग इसके पानी से अपनी प्यास बुझाते थे, लेकिन देखरेख के अभाव में धीरे-धीरे यह पोखरा अपना अस्तित्व खोता जा रहा है। मिट्टी व गाद भरने से गहराई कम होते जाने से सौ साल से पानी को सहेजते आ रहे इस पोखरा का पानी गर्मी के दिनों में सूख जाता है।

दिघवां गांव में सौ साल पहले ग्रामीणों ने मिलकर सावर्जनिक पोखरा बनाया था। पहले इस पोखरा की देखभाल ग्रामीण करते थे। दिघवां गांव के ग्रामीण बताते हैं इस कुरवा पोखरा का पानी काफी स्वच्छ था। साल भर पानी से लबालब भरे रहने वाले इस पोखरा के बगल में बड़ा बाजार लगता था। हालांकि समय के साथ प्रखंड मुख्यालय के दिघवां बाजार का विकास होता गया तथा प्रखंड मुख्यालय नजदीक होने के कारण दूर दराज से आने वाले ग्रामीण यहां लगने वाले बाजार की जगह दिघवा बाजार जाने लगे। इस कारण 50 साल पहले पोखरा के बगल में लगने वाला बाजार बंद हो गया। इसी के साथ ही कुरवा पोखरा की उपेक्षा शुरू हो गई। अब यह सार्वजनिक पोखरा मत्स्य विभाग के जिम्मे है। ग्रामीण बताते हैं कि पिछले तीन दशक में इस पोखरा की साफ सफाई नहीं कराई है। दो साल पूर्व मनरेगा से इस पोखरा की सफाई कराने की पहल की गई। लेकिन सफाई के नाम पर खानापूर्ति की गई। इस पोखरा के किनारे एक एक कर लोगों ने घर बना लिया, जिससे पोखरा का रकबा सिकुड़ता जा रहा है। सफाई नहीं कराए जाने से गाद व मिट्टी भरने इस पोखरा की गहराई कम होती जा रही है। इससे पानी संग्रहण करने की इस पोखरा की क्षमता कम होते जा रही है। कभी साल भर पानी से भरा रहने वाले इस पोखरा का पानी गर्मी में सूख जाता है। सौ साल से पानी को सहेज रहे इस पोखरा का अस्तित्व देखरेख में अभाव में संकट में पड़ गया है। ग्रामीण बताते हैं कि अगर कुछ साल इस पोखरा की इसी तरफ से उपेक्षा की जाती रही तो इस पोखरा का नामोनिशान मिट जाएगा।

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