किसानों के गन्ने की मिठास को निगल रही बंद चीनी मिल

कुचायकोट के ढेबवा गांव निवासी संजय राय के खेतों में इस बार गन्ना की नई फसल नहीं लहलहाएगी। इस गांव के पिछले सीजन तक किसान गन्ने की व्यापक पैमाने पर खेती करते थे। सासामुसा चीनी मिल यहां से नजदीक होने के कारण ढेबवा तथा उसके आसपास के इलाके में नगदी फसल गन्ने की खेती को काफी बढ़ावा मिला। लेकिन अब इस मिल के संचालन पर संकट मंडराने को देखते हुए ढेबवा गांव के संजय राय जैसे गन्ने की व्यापक पैमाने पर खेती करने वाले सैकड़ों किसानों ने गन्ना की खेती करने से हाथ खींच लिया है।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 22 Oct 2020 04:15 PM (IST) Updated:Thu, 22 Oct 2020 09:50 PM (IST)
किसानों के गन्ने की मिठास को निगल रही बंद चीनी मिल
किसानों के गन्ने की मिठास को निगल रही बंद चीनी मिल

गोपालगंज : कुचायकोट के ढेबवा गांव निवासी संजय राय के खेतों में इस बार गन्ना की नई फसल नहीं लहलहाएगी। इस गांव के पिछले सीजन तक किसान गन्ने की व्यापक पैमाने पर खेती करते थे। सासामुसा चीनी मिल यहां से नजदीक होने के कारण ढेबवा तथा उसके आसपास के इलाके में नगदी फसल गन्ने की खेती को काफी बढ़ावा मिला। लेकिन, अब इस मिल के संचालन पर संकट मंडराने को देखते हुए ढेबवा गांव के संजय राय जैसे गन्ने की व्यापक पैमाने पर खेती करने वाले सैकड़ों किसानों ने गन्ना की खेती करने से हाथ खींच लिया है। नगदी फसल गन्ने की जगह सासामुसा चीनी मिल अंतर्गत आने वाले काफी संख्या में किसानों ने इस बार अपनी खेतों में गन्ना नहीं लगाया है। जिले में किसानों की नगदी फसल गन्ने की मिठास बंद चीनी मिल निगलती जा रही है। बंद चीनी मिल नकदी फसल गन्ना की खेती करने वाले किसानों के लिए साथ ही जिले के कारोबार के लिए एक बड़ा मुद्दा बन गया है। कभी गोपालगंज में उद्योग धंधे की स्थिति बेहतर थी। यहां चार चीनी मिल तथा डालडा फैक्ट्री होने से कारोबार को काफी बढ़ावा मिला। लेकिन, 15 साल पूर्व मीरगंज स्थित हथुआ चीनी मिल बंद हो गईं। इसके साथ ही हथुआ में डालडा फैक्ट्री भी बंद हो गया। चीनी मिल तथा डालडा फैक्ट्री बंद होने से इस इलाके में पनप रहा कारोबार भी संकट में फंसता चला गया। इस इलाके के किसानों ने नगदी फसल गन्ने की खेती करना छोड़ दिया। इसी बीच दिसंबर 2018 में कुचयकोट के सासामुसा में स्थित चीनी मिल का बॉयलर फटने से दस कामगारों की मौत के बाद यह मिल भी बंद हो गया। इस मिल में किसानों का करोड़ो रुपये का भुगतान बाकी है। अलगे सत्र में मिल चालू होगी कि नहीं, इसको लेकर भी किसानों के बीच संशय बना हुआ है। जिसे देखते हुए अब इस इलाके के अधिकांश किसानों ने अपने खेत में गन्ना नहीं लगाया है। पहले हथुआ चीनी मिल बंद होने और अब सासमुसा चीनी मिल के संचालक पर संकट के कारण किसानों की नगदी फसल गन्ना की खेती पर संकट आ गया है। जिसका असर खेती के साथ ही कारोबार पर भी पड़ रहा है। बंद हो गई चीनी मिल जिले का बड़ा मुद्दा बन गया है।

इनसेट

2. मुद्दा

अधिकाश छात्रों के पहुंच से दूर है उच्च शिक्षा

गोपालगंज : 14 प्रखंड तथा चार नगर निकाय वाले गोपालगंज जिले में उच्च शिक्षा अधिकांश छात्र-छात्राओं के पहुंच से दूर है। उच्च शिक्षा जिले का एक बड़ा मुद्दा है। पूरे जिले में सरकारी स्तर पर केवल चार महाविद्यालय हैं। गोपालगंज शहर में एक महिला महाविद्यालय सहित दो महाविद्यालय, हथुआ में एक महाविद्यालय तथा भोरे में एक महाविद्यालय है। हालांकि इंटर तक की पढ़ाई की व्यवस्था अब जिले में पहले से काफी बेहतर हो गई है। अब जिले की सभी पंचायतों में हाईस्कूल खुल गए हैं। इंटर तक की पढ़ाई की व्यवस्था में सुधार से स्कूली शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्र-छात्राओं की संख्या पहले से काफी बढ़ गई है। लेकिन, इंटर के आगे की पढ़ाई की स्थिति पहले जैसे ही बनी हुई है। पूरे जिले में सरकारी स्तर पर महज पांच विद्यालय हैं। इन विद्यालयों में भी केवल कुछ विषयों की स्नातक तक की ही पढ़ाई की व्यवस्था है। ऐसे में इंटर पास करने के बाद छात्र-छात्राओं को दूसरे जिलों तथा पड़ोसी उत्तर प्रदेश के महाविद्यालयों में पढ़ने के लिए जाना पड़ता है। जिसके कारण खास कर अधिकांश छात्राओं की इंटर के बाद आगे की पढ़ाई की राह बंद हो जाती है।

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3. मुद्दा

विकास को तबाह कर रही गंडक नदी की बाढ़

गोपालगंज : जिले के लोगों के लिए हर साल आने वाली बाढ़ एक बड़ा मुद्दा है। बाढ़ विकास को हर साल तबाह कर रही है। जिले की पांच प्रखंड तथा तीन विधानसभा क्षेत्र बैकुंठपुर, बरौली तथा गोपालंगज तथा कुचायकोट का दियारा इलाका बाढ़ से प्रभावित क्षेत्र हैं। इस बार 23 जुलाई को सारण तटबंध टूटने से मांझा, बरौली, सिधवलिया तथा बैकुंठपुर में गंडक नदी के बाढ़ ने व्यापक तबाही मचाई। डेढ़ महीना तक बाढ़ से विस्थापित होने के बाद इस इलाके के लोग अपने गांव लौटे ही थे कि सितंबर माह में फिर तटबंध टूट जाने से यह इलाका फिर बाढ़ की चपेट में आ गया। इस बाढ़ से अभी भी इस इलाके लोग उबर नहीं पाए हैं। दो साल पूर्व भी सारण तटबंध टूटने से बाढ़ ने भारी तबाही मचाई थी। हर साल गंडक नदी में बाढ़ आने से दियारा के निचले इलाके के लोगों को विस्थापित होना पड़ता है। हालांकि तटबंधों की मरम्मत तथा बाढ़ से बचाव के लिए सरकारी स्तर पर हर साल करोड़ों रुपये खर्च किए जाते हैं। लेकिन बाढ़ से बचाव को स्थाई निदान अब तक नहीं निकल सका है। बाढ़ जिले का एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है।

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4.

किसानों को गच्चा दे रहे सिचाई के सरकारी संसाधन

गोपालगंज : जिले के अधिकांश लोगों के जीविका का साधन खेतीबाड़ी पर निर्भर है। किसानों के खेत में लगी फसलों की सिचाई के लिए नहरों का जाल बिछा है। मुख्य गंडक नहर के साथ ही इससे निकलने वाली नहरें व वितरणी जिले के सभी प्रखंडों से होकर गुजरती हैं। नहरों का जाल बिछा होने के बाद भी किसान फसलों की सिचाई करने के लिए निजी संसाधन या मानसून पर अब भी निर्भर हैं। नहरों में सिचाई के समय पानी नहीं छोड़ा जाता है। पानी छोड़ने के बाद भी टेल तक पानी नहीं पहुंचता है। नहरों तथा वितरणी से खेतों तक पानी पहुंचाने की व्यवस्था नहीं है। पहले नहरों से खेतों में पानी पहुंचाने के लिए बनाई गई नालियों का अब अस्तित्व मिट गया है। यही हाल सरकारी नलकूप का भी है। जिसे के सभी प्रखंड में सरकारी नलकूप लगाए गए हैं। लेकिन, अधिकांश नलकूप किसी ने किसी कारण से बंद पड़े हुए हैं। जिले में सिचाई के लिए बदहाल सरकारी संसाधन एक बड़ा मुद्दा है।

इनसेट

5.

स्वास्थ्य सेवाओं में बाधक बनी हुई है चिकित्सकों की कमी

गोपालगंज : सरकारी स्तर पर स्वास्थ्य सुविधाएं बेहतर करने की तरफ काफी ध्यान दिया गया है। लेकिन इसके बाद भी स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं मिल पाना एक बड़ा मुद्दा है। पहले सदर अस्पताल से लेकर सभी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तथा रेफरल व अनुमंडलीय अस्पताल की दशा काफी खराब थी। मरीज अपना इलाज कराने तक सरकारी अस्पताल में नहीं आते थे। लेकिन अब सदर अस्पताल से लेकर सभी सरकारी अस्पताल संसाधन के मामले में पहले से काफी बेहतर स्थिति में हैं। जिसके कारण सरकारी अस्पताल में इलाज कराने आने वाले मरीजों की संख्या भी काफी बढ़ गई है। लेकिन इसके बाद भी मरीजों का समुचित इलाज नहीं हो पाता है। सरकारी अस्पतालों में चिकित्सकों की भारी कमी बनी हुई है। सदर अस्पताल तक में विशेषज्ञ चिकित्सक नहीं है। ऐसे में सरकारी अस्पतालों में गंभीर रूप से बीमार मरीजों को बाहर रेफर कर दिया जाता है। स्वास्थ्य सुविधाओं में चिकित्सकों की कमी बाधक बनी हुई है।

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