विश्व धरोहर दिवस उद्भव और ज्ञान दोनों को आत्मसात करने का अवसर : कुलपति

गया विश्व धरोहर दिवस के मौके पर उदभव औऱ ज्ञान दोनों को समन्वित करके आत्मसात करने का अवसर है जो धर्म के ²ष्टिकोण से देखा जाय तो बहुत ही महत्वपूर्ण है।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 18 Apr 2021 05:38 PM (IST) Updated:Sun, 18 Apr 2021 05:38 PM (IST)
विश्व धरोहर दिवस उद्भव और ज्ञान दोनों को आत्मसात करने का अवसर : कुलपति
विश्व धरोहर दिवस उद्भव और ज्ञान दोनों को आत्मसात करने का अवसर : कुलपति

गया : विश्व धरोहर दिवस के मौके पर उदभव औऱ ज्ञान दोनों को समन्वित करके आत्मसात करने का अवसर है, जो धर्म के ²ष्टिकोण से देखा जाय तो बहुत ही महत्वपूर्ण है। पिछले सदी में दुनिया ने दो विश्व युद्ध के साथ कई और युद्ध देखा, लेकिन उसका फलाफल सबके सामने है। आज पूरी दुनिया कोरोना महामारी से त्रस्त है। ऐसे में बुद्ध की करूणा का संदेश प्रासंगिक प्रतीत होता है। बोधगया में सिद्धार्थ को साधना से ज्ञान की प्राप्ति हुई और बुद्धत्व प्राप्त करने के बाद उन्होंने बुद्धत्व बांटने का कार्य किया। उक्त बातें रविवार को मगध विश्वविद्यालय के जन संचार समूह द्वारा कपिलवस्तु-बोधगया समागम: सिद्धार्थ से तथागत तक की यात्रा विषय आयोजित वेबिनार के अध्यक्षीय संबोधन में कुलपति प्रो राजेंद्र प्रसाद ने कही। उन्होंने कहा कि बौद्ध धर्म की शिक्षा दुनिया के अंदर मानवता के संरक्षण और संवर्धन का कार्य करती है। यही कारण है कि अनेक धर्म के मानने वाले बोधगया आते हैं और नत मस्तक होते हैं। कपिलवस्तु और बोधगया मानवता के संरक्षण और संवर्धन के लिए सेतु का कार्य कर सकती है। मुख्य वक्ता नव नालंदा महाविहार के कुलपति प्रो. वैद्यनाथ लाभ ने कहा कि कपिलवस्तु से निकलकर केसरिया, वैशाली,राजगीर होते हुए बोधगया तक पहुंचे सिद्धार्थ को अपने जिज्ञासा का अंत होता है और तत्व ज्ञान की प्राप्ति होती है। बुद्ध का ज्ञान अध्यात्मिक ज्ञान था। बुद्ध हमारे थे और यहीं से उनके करुणा के संदेश का विस्तार हुआ। कपिलवस्तु से बोधगया के बीच अंतर संबंध था इस संबंध पर और शोध करने की आवश्यकता है। हाल के दिनों में पड़ोसी देश नेपाल द्वारा कपिलवस्तु को नेपाल में होने की बात को प्रो लाभ ने सिरे से खारिज किया और कई सारगर्भित तथ्यों से अवगत कराया। बौद्ध धर्म और दर्शन हमारे संस्कृति के अंग हैं। मुख्य अतिथि सिद्धार्थ विश्वविद्यालय सिद्धार्थनगर के कुलपति डॉ सुरेंद्र दुबे ने कपिलवस्तु से बोधगया तक सिद्धार्थ के यात्रा की विषद वर्णन करते हुए कहा कि बुद्ध कोई समाज सुधारक नहीं थे वे महा भीष्ण का वैद्य थे जो समाज के रोग को खोज कर निदान बताया। विशिष्ट अतिथि महाबोधि मंदिर के भिक्षु डॉ मनोज ने कहा कि भगवान बुद्ध का संदेश आज के कठिन दौर में सबों के लिए लाभदायक है। वेबिनार में सूत्त पाठ कर प्राणी मात्र के कल्याण की कामना की। जन संचार समूह के समन्वयक डॉ शैलेंद्र मणि त्रिपाठी ने कहा कि विश्व धरोहर दिवस के ऐतिहासिक अवदान को कैसे संरक्षित किया जाय तथा विश्व के पटल पर पर्यटन स्थल के रूप में परोसा जाय इसके लिए यह गोष्ठी महत्वपूर्ण है। प्रो सुशील कुमार सिंह ने अतिथियों का स्वागत किया और बौद्ध अध्ययन विभाग के प्रभारी प्रो बीआर यादव ने वेबिनार में शामिल सबों के प्रति आभार प्रकट किया।

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