जैविक श्रीविधि से खेती कर महिलाएं बन रहीं आत्मनिर्भर

टनकुप्पा जहां चाह वहां राह इस कहावत को महिलाएं प्रखंड क्षेत्र के बरसौना में हकीकत में बदल रही हैं। घर के चौखट के अंदर रहने वाली महिलाएं अपनी ²ढ़ इच्छा के बदौलत बंजर भूमि पर खेती कर हरियाली ला दी है।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 27 Sep 2020 08:53 AM (IST) Updated:Sun, 27 Sep 2020 08:53 AM (IST)
जैविक श्रीविधि से खेती कर महिलाएं बन रहीं आत्मनिर्भर
जैविक श्रीविधि से खेती कर महिलाएं बन रहीं आत्मनिर्भर

टनकुप्पा : जहां चाह वहां राह, इस कहावत को महिलाएं प्रखंड क्षेत्र के बरसौना में हकीकत में बदल रही हैं। घर के चौखट के अंदर रहने वाली महिलाएं अपनी ²ढ़ इच्छा के बदौलत बंजर भूमि पर खेती कर हरियाली ला दी है। महिलाएं इसके लिए एक समूह बनायी और सामूहिक निर्णय के तहत श्री विधि के जैविक तरीके को अपना कर फसल उगाना शुरू की। कुछ ही दिनों में स्थिति यह हो गयी कि आज बंजर भूमि पर न सिर्फ हरियालाी आयी है, बल्कि महिलाएं इससे आत्मनिर्भर हो रही है। जिसे दूसरे गांव की महिलाएं भी अपनाने लगी है। साथ ही महिलाओं के इस मेहनत से गांव जिला का रोल मॉडल बन गया है। यहां कृषि वैज्ञानिक व कृषि विश्वविद्यालय के छात्र श्रीविधि से महिलाओं द्वारा की जा रही खेती को देखने और उनका अनुभव साझा करने आते हैं। सबसे पहले 2011 में जैविक श्री विधि से खेती करने का प्रशिक्षण गांव की महिला साको देवी ने प्राण संस्था से ली थी। इसके बाद गांव की रीना देवी ने प्रशिक्षण ली। दोनो अपने-अपने खेतों में इस विधि से खेती करना शुरू की। तब इनके पति प्रदेश में काम करते थे। शुरूआती दौर में इन्हें आंशिक परेशानियों का सामना करना पड़ा। लेकिन इन दोनों महिलाएं पीछे मुड़कर नही देखी और अपने लक्ष्य की ओर कदम बढ़ाते रही। धीरे धीरे दोनों महिलाओं के जज्बे को देखकर गांव की अन्य महिलाओं ने इसे अपनाया और इस विधि बाद में 25 महिलाओं का एक समूह बनाया गया और सभी को प्रशिक्षित किया गया। इसके बाद गांव के पुरुष और महिलाएं एक साथ कंधे से कंधे मिलाकर खेती करने लगे। पहले धान और गेहूं की खेती की जाती थी। आय का स्त्रोत बढ़ाने के लिए महिलाएं सभी प्रकार की मौसमी फसल उपजाने लगे। खेतो में उर्वरक डालने के लिए खुद घरो में जैविक खाद्य और कीटनाशक दवाइयां बनाने लगे। खेतो में जैविक खाद्य और कीटनाशक दवाई का प्रयोग करने लगी। साथ ही शहर के मंडी में उक्त दो चीजों की थोक बिक्री करने लगे। जिससे उनके आय का स्त्रोत में बदलाव आया। दो महिलाओं का यह प्रयोग गांव की अन्य भूमिहीन महिलाओ में खेती करने का जनून सवार हुआ और खेती करने के लिए जमीन बंटाई पर लेकर खेती करने लगे।

जीविका की भूमिका सराहनीय

बरसौना गांव की महिलाओं को खेती करने के लिए बढ़ावा देने में जीविका संस्था की अहम भूमिका रही है। जीविका आर्थिक रूप से कमजोर महिलाओ को समूह से जोड़कर खेती करने के लिए आर्थिक सहायता प्रदान की। आज समूह की महिलाएं खेती के बदौलत खुशहाल है। अपने घर परिवार को चलाते हुए बच्चों को अच्छी शिक्षा दिला रहे है। महिलाओ को खेती करता देख दूसरे गांव आरोपुर, टनकुप्पा, उतलीबारा सहित अन्य गांव की महिलाएं खेती करने लगी है। प्रशिक्षित महिलाएं अब बिहार से बाहर यूपी, एमपी, जम्मू- कश्मीर, झारखंड सहित दूसरे राज्यो में जीविका समूह की महिलाओं को खेती करने का अनुभव साझा करने जाती है। इसके बदले संस्था पैसा देती है। गांव की साको देवी, माधुरी देवी, अन्नू देवी, मंजू देवी, गीता देवी, सुशीला देवी, बबिता देवी ने बताई की जब से घर की दहलीज को पार कर जैविक श्री विधि से खेती करने लगी हूँ, तब से जीवन मे खुशहाली आई है। पहले पति बाहर जाकर काम करते थे, उसी पैसे से फटेहाली की जिदगी गुजर करते थे। आज खेती के बदौलत दो पैसा बचत कर रही हूं। बच्चों को अच्छी शिक्षा दिला रही हूं। पति को काम के बास्ते पलायन को रोक दिया हूँ। घर के पुरुष फसल को बाजार में जाकर बेचते है। साथ ही खेतो में हाथ बटाते है। 2015 में जर्मनी देश के गोटीनजेन विश्वविद्यालय के ग्लोबल फूड के सोशल साइंटिस्ट बरसौना गांव आकर खेती करने वाली महिला समूह से अनुभव का साझा किया। केंद्र सरकार की भारत रूरल लाइवलीहुड फाउंडेशन की टीम बरसौना गांव पहुँचकर खेती करने वाली महिलाओं से मिली और खेती करने का तरीका को जाना। साको देवी एवं रीना देवी को डीएम और कृषि वैज्ञानिकों द्वारा रवि खरीफ महोत्सव में सम्मानित भी किया जा चुका है।

श्री विधि से खेती करने से फायदे

किसान ईश्वर प्रसाद बताते है कि जैविक श्री विधि से खेती करने पर फसल में पानी कम लगता है। हर मौसम से जुड़े फसल मे जैविक का प्रयोग करने से खेतों में लागत कम लगता है, वही फसल की उपज अच्छी होती है। जैविक खाद्य के प्रयोग से अनाज की गुणवत्ता में बेहतरी होती है। कम समय मे फसल तैयार हो जाती है। वे कहते हैं कि जैविक खाद्य से उपजी फसल अन्य उर्वरक से उपजी फसल से काफी फायदेमंद होती है। बाजार में इसकी कीमत ज्यादा होती है। लोग जैविक खाध से उपजी फसल को तरजीह नही देकर सस्ती दर और रसायनिक उर्वरक से उपजी फसल को खरीदकर प्रयोग करते है। बहुत कम लोग जैविक फसल का उपयोग कर पाते है। इसलिए अभी ज्यादा उपज नहीं करते। मंडी में भी जैविक फसल का रेट नही मिल पाता है। जैविक श्री विधि से खेती के बदौलत उपज दुगनी हो गई है। सालाना लाख रुपये खेती से बचत कर लिया जाता है।

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